1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बांग्लादेशी नेता को उम्र कैद

५ फ़रवरी २०१३

पाकिस्तान से अलग होने के दौरान बांग्लादेश में जो हिंसक अपराध हुए, उन मामलों में देश के एक प्राधिकरण ने प्रमुख इस्लामी नेता को उम्र कैद की सजा दी है. यह युद्ध 1971 में लड़ा गया था.

https://p.dw.com/p/17Y8f
तस्वीर: AP

प्राधिकरण ने मंगलवार को अपने फैसले में अब्दुल कादर मुल्ला को यह सजा सुनाई. ढाका की एक अदालत में जिस वक्त यह फैसला सुनाया जा रहा था, वहां लोगों की भीड़ जमा थी. मुल्ला की जमाते इस्लामी पार्टी ने पहले ही देश में आम हड़ताल का एलान कर दिया है, जिसकी वजह से स्कूल और दुकानें बंद हैं, जबकि सड़क पर गाड़ियां भी नहीं दिख रही हैं.

बांग्लादेश की मीडिया का कहना है कि जमात के कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर देसी बम फोड़े और पुलिस के साथ उनकी झड़पें हुईं, जिसमें कई लोग घायल भी हो गए.

मुल्ला और उनकी पार्टी के पांच सदस्यों पर ढाका की इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल में मुकदमा चला. यह प्राधिकरण पूरी तरह बांग्लादेश का है और नाम में इंटरनेशनल होने के बावजूद इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई लेना देना नहीं है. इन आरोपियों पर नौ महीने लंबे चले युद्ध के दौरान अपराध के आरोप लगे. 40 साल पुराने इस मामले में पार्टी के एक सदस्य को पिछले महीने मौत की सजा दी गई है.

Pakistan Bangladesh Bürgerkrieg
तस्वीर: AP

प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने 2010 में इन मामलों की जांच शुरू की थी. पिछली सरकार के प्रमुख घटक जमाते इस्लामी का कहना है कि उनके सदस्यों के खिलाफ राजनीति से प्रेरित होकर आरोप लगाए गए हैं. जमाते इस्लामी ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ अभियान चलाया था और उन पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तान की सेना की मदद की थी. यह भी आरोप है कि कई ग्रुप बनाए गए, जिनकी वजह से पाकस्तानी सेना ने हत्या, बलात्कार और आगजनी की घटनाएं कीं.

भारतीय सेना की मदद से आजादी पाने से पहले 1971 तक बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. बांग्लादेश सरकार का दावा है कि इस युद्ध में 30 लाख लोग मारे गए और कम से कम दो लाख महिलाओं का बलात्कार हुआ.

मुल्ला पर छह मामलों में मुकदमे चले, जिनमें 381 निहत्थे लोगों की हत्या के मामले भी शामिल हैं. पिछले महीने प्राधिकरण ने जमाते इस्लामी के सदस्य अबुल कलाम आजाद को मौत की सजा सुनाई थी. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने प्राधिकरण के अधिकारों पर सवाल उठाए हैं. इसमें अदालत परिसर के बाहर से गवाहों के गायब होने के मुद्दों को भी उठाया गया है.

खालिदा जिया की पिछली सरकार में जमात एक महत्वपूर्ण पार्टी थी. जिया और शेख हसीना राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं और पिछले कई चुनावों से प्रधानमंत्री पद पर इनकी अदला बदली चल रही है.

एजेए/ओएसजे (एपी, एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी