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बांग्लादेश में फतवा फिर से जायज

१२ मई २०११

बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए फतवे पर प्रतिबंध को समाप्त कर दिया. लेकिन अदालत के फैसले में कहा गया है कि इस्लाम के नाम पर सजा देना गैर कानूनी बना रहेगा.

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***Zu Ayari, Sollten Frauen zurückschlagen? Fatwa zu Gewalt gegen Frauen*** A woman holds the holy Koran book, as estimated 500,000 fundamentalists demonstrate in Casablanca, Morocco, over a government plan to reform women's status, Sunday March 12, 2000. The plan would fully replace the practice of repudiation with court divorce and would also support a literacy program for rural women. Another rally called by women's groups and political parties marched in the capital city Rabat in support of the plan. (AP Photo/Abdeljalil Bounhar)
तस्वीर: AP

2001 में बांग्लादेश के हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि फतवे के आधार पर दी गई सभी सजाएं गैर कानूनी हैं. तथाकथित हिला शादी के बारे में एक जनहित याचिका पर यह फैसला दिया गया था. हिला के अनुसार एक तलाकशुदा औरत तब तक अपने पुराने शौहर से दुबारा शादी नहीं कर सकती, जब तक कोई तीसरा व्यक्ति उससे शादी करने के बाद उसे तलाक न दे दे. साथ ही यह फैसला फतवे के आधार पर कई महिलाओं को मारने पीटने की घटनाओं की पृष्ठभूमि में सुनाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को उद्धृत करते हुए बांग्लादेश के महाधिवक्ता महबूबे आलम ने कहा कि सिर्फ पर्याप्त रूप से शिक्षित व्यक्ति ही धार्मिक मसलों पर फतवा जारी कर सकेंगे और स्वेच्छा से उन्हें स्वीकार किया जा सकता है. उन्होंने इस पर जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक "फतवे के आधार पर किसी व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक यातना सहित किसी प्रकार की सजा नहीं दी जा सकेगी."

An Acehnese woman kneels to be caned by Shariah law authorities Friday, Jan. 12, 2007 in Banda Aceh, Indonesia. The caning is stipulated in the Koran, Islam's holy book, and carried out in some Islamic countries. The Indonesian government agreed to allow Shariah law in Aceh four years ago as part of negotiations to end the 29-year war between separatist rebels and the military. The province is slowly introducing elements of the legal code. (AP Photo/Binsar Bakkara)+++ Bitte nicht für Flash-Galerien verwenden+++
तस्वीर: AP

मानव अधिकार के खिलाफ फतवे

मुफ्ती मोहम्मद तैयब और मौलाना अबुल कलाम आजाद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका पेश की गई थी. उनके वकील इमरान सिद्दीकी ने कहा कि इस फैसले में यह साफ तौर पर नहीं किया गया है कि किसे "पर्याप्त रूप से शिक्षित व्यक्ति" माना जाए. उन्होंने कहा कि अदालत बाद में इनकी बारीकियों पर विचार करेगी.

मानव अधिकार संगठनों की ओर से हमेशा फतवों पर आम प्रतिबंध की मांग की जाती रही है, क्योंकि इनके आधार पर व्यभिचार, बिना शादी के गर्भ, यहां तक कि किसी दूसरे धर्म के अनुयायी से बात करने तक को "अपराध" घोषित किया जाता रहा है. कुछ मामलों में बलात्कार के पीड़ितों को भी यह कहकर चाबुक मारा गया है कि उनकी मर्जी से ऐसा हुआ था.

लगभग 90 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक प्रणाली कायम है, लेकिन सालिश के रूप में जाने जाने वाली गांव सभाओं की ओर से स्थानीय तौर पर मनमाने ढंग से फतवे जारे किए जाते रहे हैं. प्रेक्षकों को डर है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसी रुझानें और बढ़ सकती हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ईशा भाटिया

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