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बांग्लादेश के नामी जल्लाद हैं बाबुल मिया

२९ जून २०११

"मैं कैदी को फांसी के तख्ते तक ले जाता हूं, उसके गले में फंदा डालता हूं और पैर के नीचे से तख्ता हटाने के लिए बटन दबाता हूं." यह कहानी है बाबुल मिया की जो बांग्लादेश में जल्लाद हैं. मिली जेल में ही विशेष ट्रेनिंग.

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तस्वीर: Fotolia/Gina Sanders

किशोर बाबुल मिया को हत्या के लिए जेल भेजा गया था. लेकिन बाबुल मिया दावा करते हैं कि यह हत्या उन्होंने की ही नहीं. बहरहाल जब उन्हें रिहा किया गया तब तक वह 17 साथी कैदियों को फांसी पर चढ़ा चुके थे.

जेल में ट्रेनिंग

बाबुल मिया उन 15 कैदियों में से हैं जिन्हें जल्लाद बनने की ट्रेनिंग दी गई है और वह बांग्लादेश की जेलों में जल्लाद का काम करते हैं. जब पड़ोसी देश भारत में 2004 के बाद पहली बार फांसी की सजा देने की बारी आई तो देश में जल्लाद ही नहीं मिले. जबकि बांग्लादेश इसके लिए हमेशा तैयार है. बाबुल मिया बताते हैं, "मुझे नहीं मालूम की गार्ड्स ने मुझे क्यों चुना. जेल प्रमुख ने मुझे कहा कि अगर मैं जल्लाद बन जाऊं तो वह हर फांसी पर मेरी सजा के दो महीने कम कर देंगे. और उन्होंने कहा कि यह आसान काम होगा तो मैंने मान लिया." बाबुल को हत्या के लिए 31 साल जेल की सजा सुनाई गई. उनका दावा है कि हत्या उन्होंने नहीं उनके बड़े भाई ने की थी.

मुश्किल काम

बांग्लादेश में फांसी की सजा ब्रिटिश और पाकिस्तानी शासन के बाद आई. यहां 1971 से अब तक करीब 420 लोगों को फांसी की सजा दी जा चुकी है और 1,000 को मृत्युदंड सुनाया गया है.

बांग्लादेश में सिंगापुर, जापान, ईरान जैसे कुछ देशों की तरह फांसी के लिए जल्लाद का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे ही एक जल्लाद बाबुल मिया हैं जिन्हें इसकी ट्रेनिंग दी गई है.

बाबुल मिया 40 साल के हैं और पिछले साल रिहा हुए हैं. वह कहते हैं, "अगर आप भावुक और कमजोर हैं तो यह काम नहीं कर सकते. आप गलतियां भी नहीं कर सकते क्योंकि जेलर बहुत नाराज होते हैं."

मिया 14 साल जेल में रहे. उन्हें इस दौरान जल्लाद बनने का प्रशिक्षण दिया गया. उन्हें बताया गया कि कैसे फांसी का तख्ता तैयार करना है और कैसे फंदा बनाना है. और सबसे अहम बात कि फांसी चढ़ने वाले की आंखों में कभी नहीं देखना है. बांग्लादेश की परंपरा के हिसाब से फांसी की सजा हमेशा आधी रात को बारह बज कर एक मिनट पर दी जाती है. इस बारे में कैदी और उसके परिजनों को एक दो दिन पहले सूचना दे दी जाती है.

रोंगटे खड़े करने वाला अनुभव

सामान्य तौर पर फांसी की सजा बिना किसी मुश्किल के पूरी हो जाती है. लेकिन मिया कहते हैं कि जल्लाद के तौर पर उन्हें भयंकर अनुभव भी हुए हैं. खास तौर पर तब जब फांसी का फंदा तैयार करने में कैदी की ऊंचाई, वजन को नहीं देखा गया. ऐसी स्थिति में बहुत अकल्पनीय भयंकर स्थिति पैदा हो जाती है.

2010 जनवरी में मिया ने पांच पूर्व सैन्य अधिकारियों को 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के मामले में फांसी दी. "उनमें एक पूर्व मेजर था और विकलांग हो गया था जब मैं उसे फांसी पर चढ़ाने के लिए लेने गया तो वह रो रहा था. एक अन्य पूर्व कर्नल ने मेरी ओर देखा और पूछा कि क्या वक्त हो गया है..."

टीवी पर भी मिया

फांसी की सजा का सत्ताधारी पार्टी आवामी लीग पुरजोर समर्थन करती है. मुजीबुर्रहमान के हत्यारों को सजा देने के कारण बाबुल मिया रातोंरात मशहूर हो गए. मुझे मुजीब के हत्यारों को फांसी देते समय गर्व हुआ. "मुझे इन लोगों के लिए कोई पश्चाताप नहीं होता. क्योंकि इन्होंने देश के लिए पितृतुल्य व्यक्ति और परिवार के कई लोगों की हत्या की." इसके बाद बाबुल मिया पर टीवी में डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई. "मैं टीवी कार्यक्रम का इस्तेमाल जेल के जीवन को दिखाने के लिए करना चाहता था. कि जेलों में कितने ज्यादा कैदी हैं और कैदियों को कितनी मुश्किल का सामना करना होता है. यहां इस्तेमाल हो रही ड्रग्स के बारे में बताना चाहता था. इन मुद्दों पर कोई बात ही नहीं करता."

लेकिन जेल प्रमुख का कहना था कि इस डॉक्यूमेंट्री से बांग्लादेश की जेलों की छवि खराब हुई है, इसे दिखाना बंद किया जाए.

मानवाधिकार ग्रुपों ने बांग्लादेश की जेलों की आलोचना की है. देश की 67 जेलों में सिर्फ 27 हजार कैदी रह सकते हैं लेकिन वहां 80 हजार कैदी भरे हुए हैं. बाबुल मिया कहते हैं, "अगर कैदी रईस होते हैं तो वे जेल में मोबाइल, खाना, शराब और ड्रग्स सब चुपचाप ले आते हैं. और इसके लिए उन्हें सजा भी नहीं मिलती. लेकिन गरीबों के लिए यह नरक से कम नहीं. जेलें इतनी भरी हुई हैं कि यहां शिफ्ट में सोना पड़ता है."

वक्त खोने का गम

मिया कहते हैं कि उन्हें उन हालात पर बहुत दुख होता है जिनकी वजह से वह जेल में पहुंचे. उनके बड़े भाई ने निजी लड़ाई के कारण पड़ोसी को मार दिया और परिवार वालों ने दबाव डाला कि 17 साल के बाबुल मिया इस अपराध को अपने सिर लें. उन्होंने सोचा कि मैं छोटा हूं जज मुझे बख्श देंगे. लेकिन मुझे 31 साल की सजा मिली और मेरे भाई को 12 की और एक और भाई को 10 साल कैद की सजा मिली.

पिछले साल बाबुल मिया को क्षमादान मिला और वह रिहा हुए. अपने गांव लौटे खेती बाड़ी शुरू की, शादी की और पिता बनने वाले हैं. वह कहते हैं, "मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे का जीवन मेरी तरह हो. मैं मेहनत करूंगा और उसके लिए बेहतर हालात बनाऊंगा. मेरी तरह उसका जीवन होने की कल्पना से ही मुझे तकलीफ होती है."

रिपोर्टः एएफपी/आभा एम

संपादनः महेश झा