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बहुध्रुवीय दुनिया की मांग करते रूस चीन

५ जून २०१२

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन में हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य होने के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया जैसे संवेदनशील मुद्दों पर दोनों साझेदारों के बयान के इंतजार में.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

पुतिन कहते हैं कि चीन और रूस के बीच कूटनीतिक साझेदारी की वजह से मुश्किल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों का सामाधान ढूंढने में आसानी हुई है. बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति हू जिनताओ ने पुतिन का स्वागत ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल में किया जहां दोनों ने द्विपक्षीय संबंधों और केंद्रीय एशियाई मुद्दों पर बात की. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पत्रिका पीपल्स डेली में पुतिन ने कहा है कि इन अतंरराष्ट्रीय मुद्दों में अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, मध्यपूर्व और उत्तर अफ्रीका शामिल हैं. बीजिंग विश्वविद्यालय की शी यिनहोंग का कहना है कि कम से कम सीरिया के मुद्दे पर चीन और रूस करीब हैं. पिछले साल सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को रोकने के बाद इस साल दोनों ने सीरिया के लिए योजना को सहमति दी है. चीन के संयुक्त राष्ट्र को राजदूत ली बाओदोंगे ने भी कहा है कि सीरिया में हूला जनसंहार की जांच को स्वतंत्र रूप से करना होगा. साथ ही, चीन ने कहा है कि हूला जनसंहार में अगर वहां की सरकार का हाथ है तो वह सीरिया के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन करेगा.

Hu Jintao Wladimir Putin China Beijing Treffen
तस्वीर: picture-alliance/dpa

चीन की सरकार शिनहुआ न्यूज एजेंसी ने कहा है कि रूसी राष्ट्रपति की यात्रा चीन के लिए बहुत अहम है और इससे दोनों देशों के बीच संबंध नई ऊंचाइयों पर पहुंचेंगे. एक विश्लेषण में लिखा है, विश्व में उभरती ताकतों को जगह देने और नए राजनीतिक और आर्थिक ढांचो को खड़ा करने में चीन और रूस की अहम भूमिका रहेगी. शिनहुआ के मुताबिक दोनों देश शीत युद्ध के दौरान हुए दुनिया के विभाजन का विरोध करते हैं और चाहते हैं कि आने वाले सालों में नए संबंध बने, लेकिन समानता और इज्जत के आधार पर. हांगकांग के पत्रकार विली लाम कहते हैं, "चीन बहुत दबाव में है और पश्चिमी देशों से उसे बहुत आलोचना झेलनी पड़ेगी. इसलिए चीन रूस के साथ अच्छे संबंधों में बहुत दिलचस्पी ले रहा है." साथ ही, दक्षिण चीन सागर और एशिया प्रशांत महासागर में अमेरिका के युद्धपोतों के तैनात होने के एलान के बाद चीन रूस के साथ साझेदारी में अपने फायदे देख रहा है.

पुतिन की यात्रा के दौरान दोनों देश ऊर्जा, उद्योग और तकनीक से संबंधित समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे हालांकि इसमें कुछ मतभेद हैं. लाम कहते हैं कि चीन रूस से तेल और गैस के आयात में दिलचस्पी ले रहा है लेकिन दामों पर दोनों देश एकमत नहीं हो पा रहे हैं. साथ ही, चीन रूस से कम हथियार आयात करने लगा है और हो सकता है कि इस पर दोनों देशों का असर पड़े. सुरक्षा परिषद में भारत को लेकर भी रूस और चीन में मदभेद खड़े हो रहे हैं. रूस सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सदस्यता और कम से कम पर्यवेक्षक की हैसियत का समर्थन करता है जबकि चीन ने इसका विरोध किया है.

बुधवार को पुतिन शंघाई कोऑपरेशन के शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं जिसमें कजाकिस्तान, किरगिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रमुख भी हिस्सा लेंगे. शंघाई कोऑपरेशन संगठन के यह देश तकनीक और सांस्कृतिक साझेदारी बढ़ाने के लिए मिल रहे हैं.

रिपोर्टः क्रिस्टोफ रिकिंग/एमजी(डीपीए)

संपादनः आभा मोंढे