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बयान से फंसे सीबीआई प्रमुख

१३ नवम्बर २०१३

बलात्कार पर विवादित बयान के लिए रंजीत सिन्हा की माफी के बाद भी मानवाधिकार संगठन चुप नहीं बैठ रहे हैं. उनका कहना है कि वे सीबीआई प्रमुख के इस्तीफे से कम पर नहीं मानेंगे.

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तस्वीर: Central Bureau of Investigation

सीबीआई निदेशक ने बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि अगर उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची है, तो उन्हें इसका अफसोस है. लेकिन नागरिक अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ता और विपक्षी दल उनका इस्तीफा मांग रहे हैं. इन लोगों का कहना है इससे बलात्कार के महत्वहीन होने का खतरा है और इससे गंभीर यौन हमले के मामलों की जांच करने में सीबीआई की क्षमता पर भी सवाल उठा है. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की कविता कृष्णन ने रंजीत सिन्हा के इस्तीफे की मांग की है. उनका कहना है, "आखिर कैसे वह भारत की प्रमुख जांच एजेंसी के प्रमुख बने रह सकते हैं." प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता निर्मला सीतारामन ने सिन्हा के बयान को "शर्मनाक" कहा है. बीजेपी प्रवक्ता ने ट्विटर पर लिखा है, "हैरानी है कि ब्यूरो में उनके साथी, उनका परिवार और उनका भला चाहने वाले लोग उनके विचार पर कैसे राजी होते हैं."

विवादित बयान

रंजीत सिन्हा ने क्रिकेटर राहुल द्रविड़ और वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता की मौजूदगी वाले पैनल डिस्कशन में खेल में सट्टे के बारे में कहा, "क्या हम इसे रोक पा रहे हैं. यह कहना बहुत आसान है कि अगर आप मनवा नहीं सकते तो, ठीक वैसे ही जैसे यह कह दिया जाता है कि अगर आप बलात्कार को रोक नहीं सकते तो इसका मजा लीजिए."

रंजीत सिन्हा ने समाचार चैनलों में खबर चलने के बाद बयान जारी कर कहा, "मुझे इस वजह से हुई तकलीफों पर अफसोस है. मैंने अपनी राय दी थी कि सट्टेबाजी को कानूनी बना दिया जाना चाहिए अगर कानून इसे रोक नहीं सकता, इसका मतलब यह नहीं है कि कानून नहीं बनना चाहिए." सिन्हा का कहना है, "यह कहना गलत है कि अगर बलात्कार न रोक सकें तो उसका मजा लेना चाहिए. मैं महिलाओं के प्रति लिहाज और सम्मान की भावना रखता हूं और लैंगिक मामलों के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराता हूं."

हजारों बलात्कार

2011 में भारत में कुल 24,000 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए लेकिन समाजिक कार्यकर्ताओँ का कहना है कि असल संख्या इससे कई गुना ज्यादा है. पिछले साल दिल्ली में चलती बस में एक लड़की के सामूहिक बलात्कार के बाद मचे बवाल ने भारत सरकार को इसके लिए कठोर कानून बनाने पर मजबूर किया. इन कानूनों में अपराध दोहराने वालों और पीड़ितों को कोमा की स्थिति में पहुंचा देने वाली घटनाओं के दोषियों को मौत की सजा देने तक का प्रावधान है.

सीबीआई का नाम सुनते ही भारत में हड़कंप मच जाता है लेकिन देश की प्रमुख जांच एजेंसी के लिए शायद यह मुश्किल की घड़ी है. बीते कुछ सालों में इस पर सत्ताधारी दल के लिए काम करने के आरोपों तो लगे ही हैं, खुद इसकी वैधता को ही कोर्ट में चुनौती दी गई है. यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.

एनआर/एजेए (रॉयटर्स, पीटीआई)

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