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बर्लिनाले में 'गांडु' का जलवा

१७ फ़रवरी २०११

बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में बंगाली फिल्म गांडु' दिखाई गई है जिसे बेहद सराहा जा रहा है. विस्फोटक नाम और संवादों वाली इस फिल्म के निर्देशक इसे युवाओं के मन की अभिव्यक्ति करार दे रहे हैं. जर्मन मीडिया ने फिल्म को पसंद किया.

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तस्वीर: AP

कोलकाता में हावड़ा ब्रिज के पास रहने वाला नायक एक दिन अचानक एक रिक्शे से जा टकराता है. रिक्शे वाले से उसका झगड़ा होता है. झगड़े के वक्त गांडु' को हॉलीवुड अभिनेता ब्रुस ली याद आता है, और फिर कोलकाता की एक गली में गांडु' रिक्शेवाले को ब्रूस ली की नकल करते हुए पांव लहराकर डराने की कोशिश करता है.

विशुद्ध देसी अभद्र भाषा के साथ दोनों में मामूली झपटा झपटी होती है. और इसके बाद ऐसी दोस्ती हो जाती है कि अंधकार की दुनिया ही खुल जाती है.

गांडु' की मां और एक स्थानीय कारोबारी एक दूसरे से प्यार नहीं करते हैं. लेकिन कारोबारी गांडु' की मां को रहने के लिए घर देता है, इसके बदले कारोबारी अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करता है. दिन में वह अक्सर घर आता है और गांडु' की मां के साथ वक्त बिताता है. ऐसी स्थिति में खुद को लाचार समझकर 20 साल का नायक कारोबारी की पॉकेट से पैसे चुराता है.

Berlinale Berlin 2011 Jury NO FLASH
बर्लिनाले ज्यूरीतस्वीर: picture-alliance / schroewig

इस पैसे से वह अपने दोस्त के साथ कोकेन पीता है. अश्लील फिल्में देखने और सेक्स के प्रति प्रयोगवादी जुनून के चलते इंटरनेट पर नंग धड़ंग सामग्री ही खोजता रहता है. इसमें भी खीझने के बाद दोनों लड़के कुछ देर के लिए आध्यात्म की ओर जाने का प्रयोग करते हैं. लेकिन धीरे धीरे सभी किरदार एक ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं, जहां उनके सामने कोई विकल्प नहीं बचता.

खुद को क्यू कहलावाना पसंद करने वाले फिल्म के निर्देशक मुखर्जी कहते हैं, "मैं फिल्म के जरिए कोई संदेश नहीं देना चाह रहा हूं. यह कोलकाता के लड़के की नहीं बल्कि पूरे भारत के युवाओं की कहानी है. सेक्स के बारे में वह बड़ों से खुलकर बात नही़ कर सकते हैं. आखिर ऐसे में वो मनचाहे प्रयोग नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे. गांडु बताती है कि सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक स्तर पर युवा कितनी खीझ महसूस कर रहे हैं. उनके मन में कई विचार हैं लेकिन समाज उन्हें बच्चा समझकर खारिज कर देता है."

फिल्म में तीन किरदार निभाने वाली री कहती हैं, "यह एक विस्फोटक किस्म की फिल्म है. इसमें मेरे कई सेक्स सीन हैं. हमारी कोशिश थी कि हम समाज के सेक्स नाम के शर्मीले धब्बे को सामने लाएं. फिल्म ऐसा करने में सफल भी हुई है." जर्मनी के बड़े अखबार टागे स्पीगल ने भी फिल्म को शानदार बताया है. अखबार का कहना है कि एक ऐसे वक्त में जब दुनिया भर में सिनेमा व्यावसायिक फिल्मों के पीछे भाग रह है, गांडु' फिल्म बताती है, सिनेमा का आधार क्या है.

टागे स्पीगल के अलावा जर्मन मीडिया के अन्य धड़े भी स्लमडॉग मिलेनियर के बाद इसी फिल्म की चर्चा ज्यादा कर रहे हैं. टॉलीवुड बॉलीवुड से अलग अपनी छवि को बरकरार रखता दिखाई पड़ रहा है. लेकिन युवा फिल्म निर्माता क्यू के सामने अभी एक चुनौती बाकी है.

भारतीय सेंसर बोर्ड फिल्म के नाम और उसके डॉयलॉग्स को पचा पाएगा या नहीं, यह पता नहीं है. क्यू को उम्मीद है कि बर्लिन में मिली कामयाबी भारतीय सेंसर बोर्ड के सामने उनकी राह आसान करेगी. इसके बाद ही भारत में गांडु' रिलीज होगी.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी, बर्लिन

संपादन: एस गौड़

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