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बर्लिन में कार्निवाल की धूम

२६ मई २०१२

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 25 से 28 मई तक संस्कृतियों का कार्निवाल चल रहा है. रंग बिरंगी पोशाको में गर्मी का मौसम और ठंडी बीयर का मजा उठा रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

कार्निवाल की बात होती है तो ब्राजील की याद आती है. लेकिन खूब मेहनती और संजीदा कहलाने वाले जर्मन भी इस में पीछे नहीं. यहां दो शहरों में, दो अलग अलग मौसमों का मजा लेते हुए कार्निवाल मनाया जाता है. हालांकि फरवरी में मनाया जाने वाला कोलोन का कार्निवाल देश का सबसे बड़ा कार्निवाल है, लेकिन राजधानी बर्लिन में गर्मियों का स्वागत करते हुए 'कार्नेवाल डेयर कुलटूयरन' यानी संस्कृति का कार्निवाल अलग ही रंगों में डूबा होता है.

मई के अंत में जब यह कार्निवाल आयोजित किया जाता है तब जर्मनी में गर्मियों के मौसम की शुरुआत हो रही होती है. कई महीनों बाद आखिरकार जब लोगों को सूरज के दर्शन होते हैं तो मस्ती मजे का मन दोगुना हो जाता है. इस साल 25 डिग्री से अधिक तापमान और तेज धूप में तो लोगों को शिकायत का कोई मौका ही नहीं मिल रहा.

Flash-Galerie Karneval der Kulturen 2010
तस्वीर: AP

इस कार्निवाल का नाम 'कार्नेवाल डेयर कुलटूयरन' इसलिए पड़ा क्योंकि इसकी शुरुआत इस विचार के साथ हुई कि सभी संस्कृतियों को एक साथ लाया जा सके और सब मिल कर उनका लुत्फ उठा सकें. करीब 35 लाख की आबादी वाले बर्लिन में पांच लाख से अधिक विदेशी रहते हैं. ऐसी बहुसांस्कृतिक राजधानी में इस तरह के कार्निवाल का मनाया जाना कोई हैरानी की बात नहीं. बर्लिन का कार्निवाल न ही किसी धर्म से जुड़ा है और न ही इसमें सदियों पुराने कोई रीति रिवाज हैं. इसकी शुरुआत 1996 में समेकन के विचार से हुई. यहां किस भी धर्म, किसी भी जाति, किसी भी देश और किसी भी उम्र के लोग आ सकते हैं. कोई रोक टोक नहीं, कोई मनाही नहीं, सिवाए एक के. कार्निवाल आयोजित करने वाली वासिलिकी गॉरत्सास ने डॉयचे वेले को बताया, "उग्र दक्षिणपंथी, धर्म परिवर्तन कराने वाले लोग और राजनैतिक दल इसमें हिस्सा नहीं ले सकते."

इस साल इस कार्निवाल में 13 लाख लोगों के आने की उम्मीद है. जैज, रॉक, इलेक्ट्रॉनिक, टेक्नो, ब्लू जैसे कई तरह के संगीत का यहां लोग मजा ले सकते हैं. साथ ही दुनिया भर के स्वादिष्ट पकवान भी चख सकते हैं. बर्गर से ले कर कबाब तक, पैनकेक से ले कर वॉफल तक यहां सब मिल रहा है, वह भी दोस्ताना अंदाज में.

रिपोर्ट: ऍन थॉमस / ईशा भाटिया

सम्पादन: ओंकार सिंह जनौटी

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