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बर्लिन में आज मैर्केल और मोदी की मुलाकात

२० अप्रैल २०१८

इस मुलाकात को दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा हो सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक ब्रेक्जिट के बाद यूरोपीय संघ में जर्मनी और फ्रांस पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है.

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Deutsch-indische Regierungskonsultationen in Berlin | Angela Merkel & Narendra Modi
तस्वीर: Reuters/H. Hanschke

प्रधानमंत्री मोदी लंदन से बर्लिन आ रहे हैं और वह जर्मन राजधानी में सिर्फ चंद घंटे ही रहेंगे. लंदन में उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों के सम्मेलन में हिस्सा लिया जबकि इससे पहले वह स्वीडन गए. बतौर चांसलर चौथी बार कार्यभार संभालने के बाद मैर्केल की यह मोदी से पहली मुलाकात होगी.

भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि मोदी की यात्रा "उच्च स्तरीय आदान प्रदान की गति को बनाए रखने की दोनों देशों की प्रतिबद्धता" को दिखाती है. भारतीय प्रधानमंत्री के इस दौरे से पहले पिछले महीने जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने भारत का दौरा किया था. उस दौरे में भी आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाने पर जोर था. जर्मनी यूरोपीय संघ में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.

भारत के पूर्व राजनयिक जी पार्थसारथी कहते हैं कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने के बाद यूरोपीय संघ में जर्मनी और फ्रांस व्यापक भूमिका निभाएंगे. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "सच्चाई यही है कि अगर भारत को अपनी आर्थिक प्रगति को जारी रखना है तो उसे जर्मनी पर ज्यादा निर्भर रहना होगा. छोटे यूरोपीय देशों की उतनी ज्यादा भूमिका नहीं है."

वहीं नई दिल्ली में सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज में प्रोफेसर राजेंद्र जैन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति के लिए जर्मनी बहुत ही अहम है और इसकी वजह है दुनिया पर जर्मनी का आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "बुनियादी ढांचे, अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं, दक्षता विकास और जल प्रबंधन में निवेश के लिए भारत को जर्मनी की जरूरत है."

जर्मनी और भारत के बीच लगातार आर्थिक सहयोग बढ़ रहा है. 2016-17 में द्विपक्षीय व्यापार 18.76 अरब डॉलर था. इसमें भारत ने जर्मनी को 7.18 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया जबकि जर्मनी से 11.58 अरब डॉलर का सामान मंगाया. एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में लगभग 80 कंपनियों ने 2016 में कुल मिलाकर 14 अरब डॉलर का राजस्व हासिल किया.

जर्मनी ने भारत में गंगा की सफाई के राष्ट्रीय मिशन में भी निवेश किया है. 2016 में जर्मन सरकार ने गंगा की सफाई के लिए डाटा मैनेजमेंट और प्रशिक्षण के लिए 30 लाख यूरो देने की प्रतिबद्धता जताई. मोदी की "मेक इन इंडिया" मुहिम के लिए विदेश निवेश बहुत जरूरी है, जिसका मकसद भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना है. इसके जरिए सरकार नौकरियों के नए अवसर भी पैदा करना चाहती है.

मुरली कृष्णन, नई दिल्ली