बदहाली का सबूत है कलकत्ता हाई कोर्ट
२७ फ़रवरी २०१८इस अदालत में बीते लगभग 40 महीनों से किसी भी नए जज की नियुक्ति नहीं हुई है जबकि इस दौरान कई जज रियाटर हो चुके हैं. इसकी वजह से लंबित मामलों की तादाद लगातार बढ़ रही है. अब हाई कोर्ट के वकील जजों के खाली पदों पर शीघ्र बहाली की मांग में बीती 20 फरवरी से ही कामबंद आंदोलन कर रहे हैं. उन्होंने अपना आंदोलन पांच मार्च तक बढ़ाने का फैसला किया है. इससे मुवक्किलों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
आधे से भी कम हैं जज
हाई कोर्ट में जजों के 72 अनुमोदित पदों के मुकाबले महज 30 जज हैं. उनमें से भी दो जज बारी-बारी से हाईकोर्ट की अंडमान निकोबार सर्किट बेंच में काम करते हैं. बीते तीन साल से बीच के तीन महीनों को छोड़ कर यहां कोई स्थायी मुख्य न्यायधीश भी नहीं रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 तक हाईकोर्ट में 2.22 लाख मामले लंबित थे. जजों की कमी से मामलों की सुनवाई प्रभावित होने और मुवक्किलों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए अब वकीलों के तीन संगठनों ने बीती 20 फरवरी से कामबंद आंदोलन शुरू कर रखा है. पांच दिनों के आंदोलन के बावजूद केंद्रीय विधि मंत्रालय की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने की वजह से इन संगठनों ने अलग-अलग प्रस्ताव पारित कर अपना आंदोलन पांच मार्च तक बढ़ा दिया है. कलकत्ता हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष उत्तम मजुमदार कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने यहां जजों के तौर पर बहाली के लिए पांच नए नामों की सिफारिश की है. लेकिन विधि मंत्रालय ने अब तक इनको हरी झंडी नहीं दिखाई है." वह कहते हैं कि कलकत्ता हाई कोर्ट में एक स्थायी मुख्य न्यायाधीश की भी नियुक्ति की जानी चाहिए. बीते तीन साल के दौरान महज तीन महीने के लिए इस अदालत को एक स्थायी मुख्य न्यायाधीश मिला था. वह भी तब जब कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गिरीश गुप्ता को रिटायर होने से पहले तीन महीने के लिए स्थायी मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था.
हाई कोर्ट बार लाइब्रेरी क्लब के अध्यक्ष जयंत मित्र कहते हैं, "देश की शीर्ष अदालतों में शुमार कलकत्ता हाई कोर्ट में जजों की बहाली की वैध मांग में वकीलों के कामबंद आंदोलन के बावजूद विधि मंत्रालय के कानों पर जूं नहीं रेंगी है. उसकी यह चुप्पी आश्चर्यजनक है." वकीलों के संगठन ने इस मुद्दे पर बातचीत के लिए केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक पत्र भेजा था. लेकिन अब तक सका भी कोई जवाब नहीं मिला है. हाई कोर्ट में वकीलों के एक अन्य संगठन इन्कॉर्पोरेटेड ला सोसायटी के सचिव परितोष सिन्हा कहते हैं, "जजों की भारी कमी की वजह से मुवक्किलों को न्याय नहीं मिल रहा है."
पहले भी किया था आंदोलन
इससे पहले बीत साल सितंबर में भी हाई कोर्ट के वकीलों ने इसी मांग में आंदोलन किया था. उस समय आंदोलनकारी वकीलों ने हाई कोर्ट में न्यायिक प्रणाली को ध्वस्त होने से बचाने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक याचिका भेज कर उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी. वरिष्ठ वकील विकास भट्टाचार्य ने बताया कि कलकत्ता हाई कोर्ट में जजों की बहाली की दिशा में तत्काल कदम उठाने की मांग में लगभग छह सौ वकीलों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए थे. राष्ट्रपति को भेजी याचिका में कहा गया था कि अदालत से न्याय का इंतजार करने वाले लोगों का धैर्य अब खत्म हो रहा है. कानूनी तरीके से न्याय नहीं मिलने की वजह से लोग अब असंवैधानिक तरीकों का सहारा ले रहे हैं. इसमें कहा गया था कि परिस्थिति अब खतरनाक हो गई है. अब शांति व न्याय के बीच संतुलन बनाने के लिए इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाना जरूरी है. लेकिन राष्ट्रपति को भेजी गई उक्त याचिका के बावजूद हालात जस के तस हैं.
उससे पहले अगस्त, 2017 में हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश निशीथा म्हात्रे ने जजों की बहाली नहीं हो पाने पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि अदालत आधे से भी कम जजों के साथ काम करने पर मजबूर है. इससे पहले 12 जुलाई को हाईकोर्ट की एक अन्य खंडपीठ ने जजों की बहाली में देरी के लिए केंद्र की आलोचना करते हुए चेताया था कि अगर इस मामले में तत्काल कदम नहीं उठाया गया तो अदालत समुचित कार्रवाई कर सकती है. लेकिन अब तक इस मामले में नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है.
परेशान हैं मुवक्किल
दूसरी ओर, वकीलों के कामबंद आंदोलन की वजह से फिलहाल हाई कोर्ट में मामलों की सुनवाई बंद है. यहां जज रोजाना अपने कक्ष में तो बैठते हैं, लेकिन कोई भी वकील बहस के लिए मौजूद नहीं रहता. इससे राज्य के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सात सौ किमी का सफर तय कर उत्तर बंगाल के कूचबिहार जिले से यहां आए दिलीप सरकार कहते हैं, "यहां आने पर पता चला कि मामले की सनवाई नहीं हो सकेगी. छह महीने बाद तो तारीख मिली थी. अब पता नहीं क्या होगा ?" मेदिनीपुर से आए नरेश जाना कहते हैं, "न्यायपालिका में जजों के खाली पदों से मामलों की सुनवाई में देरी हो रही है. इसके अलावा वकीलों के कामबंद से भी लंबित मामले बढ़ते जा रहे हैं."
एक अन्य वकील रविशंकर चटर्जी कहते हैं, "रोजाना वकीलों को आम लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ता है. लोगों को लगता है कि वकील अपने काम में दक्ष नहीं हैं. लेकिन असली समस्या जजों के खाली पद हैं."
पर्यवेक्षकों का कहना है कि हाई कोर्ट में लंबित मामलों के बढ़ते आंकड़े को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने कलकत्ता हाई कोर्ट में शीघ्र नए जजों की बहाली नहीं की तो हालात और गंभीर हो सकते हैं. इससे बरसों से न्याय की आस लगाए इंतजार कर रहे लाखों लोगों का धैर्य जवाब दे सकता है. एडवोकेट विकास भट्टाचार्य एक पुरानी लेकिन चर्चित कहावत के हवाले कहते हैं, "जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड यानी देरी से न्याय मिलना भी न्याय नहीं मिलने के समान है. ऐसे में केंद्र सरकार को देश की शीर्ष अदालतों में शुमार कलकत्ता हाई कोर्ट की स्थिति में सुधार की दिशा में शीघ्र ठोस पहल करनी चाहिए."