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नावाल्नी की गिरफ्तारी से ज्यादा गरीबी से परेशान हैं रूसी

१५ फ़रवरी २०२१

रूस में बीते कुछ समय से विरोध प्रदर्शन खूब हो रहे हैं. नावाल्नी तो इन प्रदर्शनों का चेहरा और एक वजह हैं लेकिन देश में बढ़ती गरीबी और आय का संकट भी लोगों को इसके लिए मजबूर कर रही है.

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Russland Moskau Nawalny-Proteste mit Taschenlampen (Archiv)
मोबाइल टॉर्च के साथ विरोध प्रदर्शन करते लोग.तस्वीर: Evgeny Feldman/Meduza/AP/picture alliance

कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के बाद से ही मॉस्को के मार्था एंड मैरी कॉन्वेंट में लोगों की भीड़ बढ़ गई है. सफेद दीवारों वाली इस मोनेस्ट्री में कई समाजसेवी संस्थाओं के केंद्र हैं. ये संस्थाएं दूसरे कार्यक्रमों के अलावा यहां लोगों को मुफ्त में खाने के पैकेट बांटती हैं.

मिलोसेर्डी नाम की संस्था में समाज सेवा करने वाली येलेना तिमोश्चुक बताती हैं, "महामारी से पहले हमारे यहां हर रोज 30-40 लोग आते थे. अब 50-60 लोग आने लगे हैं, काम बहुत ज्यादा बढ़ गया है." तिमोश्चुक की टेबल पर सूरजमुखी के तेल के ढेर सारे पैकेट रखे हैं.

कतार में खड़े हो कर कूटू, चीनी, चाय और दूसरी चीजें लेने आने वाले लोगों में ज्यादातर रिटायर लोग हैं. हालांकि इनके साथ ही उनमें ऐसे भी लोग शामिल हो रहे हैं जिनकी या तो नौकरी चली गई है या फिर जिनका वेतन काटा गया है.

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खाने के पैकेट लेने के लिए कतार में रूसी लोग.तस्वीर: NATALIA KOLESNIKOVA/AFP/Getty Images

कोरोना वायरस की महामारी ने रूस की खराब अर्थव्यवस्था का और बुरा हाल कर दिया है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, तेल की घटती कीमतें और कमजोर कारोबारी निवेश के चलते हालात और बिगड़ते जा रहे हैं. विशेलेषकों का कहना है कि बढ़ती गरीबी, घटती कमाई और महामारी के दौर में पर्याप्त सरकारी सहयोग के अभाव में राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के लिए समर्थन घट रहा है. प्रचंड बहुमत के साथ दो दशकों से रूस की सत्ता पर पुतिन काबिज हैं लेकिन अब उनके विरोधी मजबूत हो रहे हैं. 

जेल में बंद पुतिन के प्रमुख विरोध की एक पुकार पर बीते कुछ हफ्तों हजारों की संख्या में लोग रूस में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सितंबर में होने वाले संसदीय चुनाव से पहले नावाल्नी की टीम और ज्यादा प्रदर्शनों की योजना बना रही है.

रूस में लोगों के पास मौजूद मुद्रा बीते करीब आधे दशक में 3.5 फीसदी सिकुड़ चुकी है. इसी बीच खाने पीने की चीजों के दाम बहुत बढ़ गए हैं. गिरते जीवन स्तर से लोगों के बढ़ते गुस्से को भांप कर बीते दिसंबर में राष्ट्रपति पुतिन ने मंत्रियों को कीमतों की वृद्धि रोकने के लिए आपातकालीन उपाय करने के आदेश दिए. इसके बावजूद जनवरी में चीनी की कीमत एक साल पहले की तुलना में करीब 64 फीसदी ज्यादा थी. 66 साल की सांड्रा ने बताया कि उन्होंने सुपरमार्केट जाना छोड़ दिया है और इसकी बजाय मुफ्त में बंटने वाला खाना लेने समाजसेवी संगठनों के पास जा रही हैं. पेंशन पर गुजारा करने वाली सांड्रा का कहना है, "आप कुछ नहीं खरीद सकते. पहले तो मैं चिड़ियों को भी दाना डाल देती थी लेकिन अब तो अनाज खरीदना भी मुश्किल हो गया है."

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समाजसेवी संस्था के दफ्तर में खाने पीने की चीजों का ढेर.तस्वीर: NATALIA KOLESNIKOVA/AFP/Getty Images

एफबीके ग्रांट थॉर्नटन में स्ट्रैटजिक एनालिसिस के प्रमुख इगोर निकोलायेव कहते हैं, "राजनीतिक नतीजों के लिहाज से मौजूदा स्थिति अच्छी नहीं लग रही है. अधिकारियों के लिए जोखिम बढ़ गया है." निकोलायेव का कहना है कि बुजुर्ग रूसी खास तौर से बढ़ती कीमतों को लेकर बहुत "संवेदनशील" हैं. इन लोगों ने महंगाई का वो दौर देखा है जिसके बाद 1991 में सोवियत संघ का विघटना हुआ. निकोलायेव मानते हैं कि लोगों की नाराजगी को देखते हुए रूसी सरकार संसदीय चुनावों से पहले कोई नया आर्थिक पैकेज ले कर आ सकती है.

हाल ही में एक स्वतंत्र एजेंसी लेवाडा सेंटर के कराए सर्वे में 43 फीसदी रूसियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि मौजूदा विरोध प्रदर्शनों को आर्थिक मांगों की वजह से प्रेरणा मिल रही है. इससे पहले यह स्तर 1998 में दिखा था. सर्वे में यह भी पता चला कि जवाब देने वालों में 17 फीसदी लोग खुद प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए तैयार थे.

लेवाडा के उपनिदेशक डेनिस वोल्कोव का कहना है कि हाल में हुए प्रदर्शन ये दिखाते हैं कि अधिकारियों के प्रति लोगों में गुस्सा केवल हाशिए पर खड़े विपक्षियों में ही नहीं बल्कि बहुत सारे प्रदर्शनकारी आर्थिक मुश्किलों की वजह से बाहर आ रहे हैं.

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खाने पीने की चीजों का पार्सल तैयार करती कार्यकर्ता. तस्वीर: NATALIA KOLESNIKOVA/AFP/Getty Images

फोर्ब्स पत्रिका के रूसी संस्करण में वोल्कोव ने लिखा है, "अधिकारियों के पास उन लोगों को देने के लिए कुछ नहीं है जो नीतियों से नाखुश हैं." इसके साथ ही उन्होंने रूसी रईसों की बढ़ती संपत्ति और समाज में बढ़ते विभाजन की ओर भी इशारा किया है.

नावाल्नी के समर्थन में होने वाली व्लादीवोस्तोक के पैसिफिक पोर्ट की रैली में शामिल येकातेरिना निकिफोरोवा ने कहा कि देश ठहरा हुआ है. राजनीति शास्त्र की इस छात्रा ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि उन्हें किसी तरह के आर्थिक मौके या राजनीतिक विकास नजर नहीं आता. 22 साल के आर्सेनी दमित्रियेव सेंट पीटर्सबर्ग की रैली में शामिल हुए और उनकी भी यही राय है. समाज शास्त्र के इस छात्र ने कहा, "आंकड़ों को देख कर मैं समझ गया हूं कि हाथ में आने वाला आय घटती जा रही है और जीवन के स्तर में सुधार नहीं हो रहा है."

एनआर/आईबी (एएफपी)

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