बढ़ रहा है फेमिसाइड का संकट
भारत महिलाओं के खिलाफ हिंसा, बलात्कार और गैंग रेप जैसे मामलों पर सुर्खियों में रहता है. लैटिन अमेरिकी देशों में भी ये गंभीर समस्या है. अब महिलाएं खुद हिम्मत जुटा रही हैं और हिंसा के खिलाफ आवाज उठा रही हैं.
पार्टनर ही हमलावर
मायरा मैदाना उन सैकड़ों महिलाओं में शामिल हैं जिन्हें अकसर अपनों के पागलपन की कीमत चुकानी पड़ती है, कभी जान देकर तो कभी गंभीर रूप से घायल हो कर. मैदाना भाग्यशाली थी कि जीवित बच गयी. अव वह महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरोध में आवाज उठा रही है. अभी भी बहुत से देशों में फेमिसाइड यानि महिलाओं की लैंगिक वजह से हत्या अपराध नहीं है.
बढ़ती गई हिंसक प्रवृति
मायरा मैदाना को उसके पार्टनर ने ही पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी थी. वह उससे 15 साल की उम्र में स्कूल में मिली थी. दो साल बाद उसने पहली बार हाथ उठाया, फिर ये रोजमर्रा की बात हो गयी. दोस्तों ने चेतावनी भी दी लेकिन उसने सोचा कि ऐसा फिर नहीं होगा. मगर स्थिति लगातार खराब होती गयी. इसका अंत हुआ जब किसी बात पर गुस्से में आकर उसने मायरा को आग लगा दी.
डर या शर्म
मायरा मैदाना को इस हालत में आने के लिए 59 ऑपरेशनों से होकर गुजरना पड़ा. उसने किसी को नहीं बताया कि उसके साथ क्या हुआ है. या तो डर से या शर्म से. बोलने की हिम्मत तब हुई जब अर्जेंटीना में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए नी ऊना मेनोस आंदोलन शुरू हुआ. उसने लिखा, ”डर, मुझे सोचने नहीं दे रहा था, कुछ करने नहीं दे रहा था कि मैं मदद मांगू, या भागूं.“मैदान
मां से ली मदद
मायरा मौदाना को धीरे धीरे सब कुछ सीखना पड़ा कि कैसे खाना है, कैसे चलना फिरना है. एक बार फिर बच्चे की तरह अपनी मां की मदद से. वह चार महीने अस्पताल में रही, लेकिन इस डर से कि बाप बच्चों को कुछ कर न दे, पुलिस में रिपोर्ट नहीं की. उसने परिवार वालों और पुलिस से यही कहा कि उसने खुद दारू छिड़क कर आत्महत्या की कोशिश की थी.
हिंसा का विरोध
मायरा मैदाना अर्जेंटीना की राजधानी ब्युनस आयर्स में नी ऊना मेनोस यानि नॉट वन लेस आंदोलन की रैली में बैनर उठाये हुए. 29 वर्षीया मायरा बतायी है कि अब महिलाएं छिपती नहीं. महिलाएं सड़कों पर उतर रही हैं और अपने खिलाफ हो रही हिंसा का विरोध कर रही है. फेमिसाइड यानि महिलाओं की लैंगिक वजह से हत्या कई देशों में अपराध नहीं माना जाता.