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बच्चों के खिलाफ अपराधों में तेजी

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ मार्च २०१८

भारत में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2015 से 2016 के बीच देश में ऐसे मामलों में 11 फीसदी की वृद्धि हुई है.

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Indien Kinderarbeit, Thema - Moderne Sklaverei
तस्वीर: picture-alliance/dpa/zpress/Keystone/P. Pattisson

भारत में रोजाना 290 बच्चे विभिन्न अपराधों के शिकार हो रहे हैं. बीते दो वर्षों के दौरान तो ऐसे मामलों में चार गुनी वृद्धि हुई है. सामाजिक और गैर-सरकारी संगठनों ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की बात कही है. उनका दावा है कि ऐसे हजारों मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पाते. असली स्थिति और ज्यादा गंभीर है.

आंकड़े

एनसीआरबी की ओर से जारी ताजा आंकड़े बच्चों के खिलाफ अपराधों की भयावह तस्वीर पेश करते हैं. वर्ष 2015 में जहां ऐसे कुल 94,172 मामले दर्ज किए गए थे वहीं 2016 में यह बढ़ कर 1.07 लाख तक पहुंच गए. इससे पहले एक गैर-सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने भी अपने एक अध्ययन में कहा था कि वर्ष 2006 से 2016 के बीच एक दशक के दौरान ऐसे मामलों में पांच सौ फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. क्राई की निदेशक कोमल गनोत्रा कहती हैं, "इन आंकड़ों से साफ है कि हाल के वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध की प्रवृत्ति बढ़ी है."

एनसीआरबी के आंकड़ों में कहा गया है कि पूरे देश में दर्ज होने वाले ऐसे कुल मामलों में से आधे से ज्यादा महज पांच राज्यों में हुए हैं. उनमें पश्चिम बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व दिल्ली शामिल हैं. ऐसे मामलों में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में से लगभग आधे अपहरण और बाल तस्करी से संबंधित हैं. उसके बाद बलात्कार का नंबर है. इनमें से 33 फीसदी मामले पास्को अधिनियम के तहत दर्ज किए गए हैं. इस अधिनियम के तहत बलात्कार, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से संबंधित मामले दर्ज किए जाते हैं.

Kinderarbeit - Bangladesch
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A.Abdullah

राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग की अध्यक्ष स्तुति कक्कड़ कहती हैं, "बच्चों की तस्करी के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं. वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में ऐसे मामलों में 27 फीसदी वृद्धि हुई है. देश में मानव तस्करी की कुल घटनाओं में से 60 फीसदी बच्चों से संबंधित हैं." गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि असली आंकड़े कहीं और ज्यादा हैं. बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले एक संगठन की कार्यकर्ता सोमलता कहती हैं, "ऐसी ज्यादातर घटनाएं पुलिस तक नहीं पहुंच पातीं. खासकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में तो यह आम है. अगर तमाम मामले पुलिस तक पहुंचने लगें तो आपराधिक आंकड़े आसमान छूने लगेंगे."

अंकुश के उपाय

गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि इस समस्या की कोई एक वजह नहीं है. इसलिए इस पर अंकुश लगाने के उपायों का भी बहुआयामी होना जरूरी है. इसके अलावा समाज में ऐसे अपराधों के प्रति जागरुकता पैदा करना जरूरी है. स्तुति कक्कड़ कहती हैं, "गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक व लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों पर ध्यान देकर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है. इसके लिए संबंधित सरकारों को सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर काम करना होगा."

कोमल गनोत्रा कहती हैं, "महज कानून और दिशा-निर्देश बना कर इस समस्या पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता. ऐसे अपराधों के मामले में शून्य सहिष्णुता की नीति को कठोरता से लागू करना होगा." वह कहती हैं कि तमाम सरकारी एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच बेहतर तालमेल के जरिए इस नीति को लागू कर ऐसे मामले कम किए जा सकते हैं.