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समाज

बच्चे मरते हैं तो मरे, कंपनियों को नहीं पड़ता फर्क

१४ मार्च २०१८

माइका के खनन में कई बच्चों के मारे जाने से खूब हो हल्ला मचा. लेकिन टीवी, स्मार्टफोन और चमचमाते पेंट के चक्कर में आज भी बड़ी संख्या में गरीब बच्चे मारे जा रहे हैं.

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Kinderarbeit in Goldminen
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Sanogo

टीवी, मोबाइल और अन्य तकनीक आज इंसानी जीवन का अटूट हिस्सा बन गई है. लेकिन जैसे-जैसे दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री का विस्तार हो रहा है तकनीकी कंपनियां माइका (अभ्रक) का इस्तेमाल बढ़ा रही हैं. अभ्रक की खुदाई बाल मजदूरी के लिए बदनाम है. वैश्विक स्तर पर तकनीकी क्षेत्र ही माइका का सबसे बड़ा खरीदार है. समाजसेवी संस्था टैरे देस होमेस (टीडीएच) का दावा है कि कई कंपनियों को इस खनिज की सोर्सिंग का अंदाजा तो है लेकिन वे इस ओर कोई खास ध्यान नहीं देती.

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तस्वीर: imago/Jochen Tack

टीडीएच की तकनीकी सलाहकार आयजल सबाहोग्लू के मुताबिक बाल मजदूरी सबसे अधिक इलेक्ट्रानिक उत्पादों और कार उद्योग में होती है. थॉमसन रॉयटर्स फांउडेशन की एक रिसर्च मुताबिक भारत में अवैध अभ्रक खनन के चलते अगस्त 2016 में कई बच्चों की जान चली गई थी लेकिन इन मौतों को दबा दिया गया. हालांकि ऐसे मामले सामने आने के बाद मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपने आपूर्ति तंत्र को सही ढंग से चलाने और वैध तरीके से माइका मंगाने को लेकर प्रतिबद्धता जताई थी. वहीं अधिकारियों और प्रशासन ने भी इस क्षेत्र के नियमन की शपथ ली थी लेकिन हालात बहुत अधिक सुधरे हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता.

भारत में निर्माण कंपनियों से लेकर कॉस्मेटिक कंपनियां बड़े पैमाने पर माइका का प्रयोग करती है. जिसे बड़े स्तर पर ब्राजील, चीन, पाकिस्तान, पेरू, श्रीलंका और सूडान से आयात भी किया जाता है. टीडीएच के मुताबिक इन देशों में बच्चों से खनन का काम करवाया जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री ने सबसे अधिक माइका खरीदा और इसकी मांग 3.2 फीसदी की दर से हर साल बढ़ रही है.

इस खनिज का प्रयोग सिर्फ ब्यूटी प्रॉडक्ट्स में ही नहीं बल्कि कार पेंट बनाने के लिए भी किया जाता है. हालांकि इस दिशा में पिछले साल बड़ी कंपनियों की ओर से रिस्पॉन्सिबल माइका इनिशिएटिव (आरएमआई) की स्थापना की गई थी. इसका मकसद भारत की माइका खनन के इस तंत्र से बाल मजदूरी को साल 2022 तक पूरी तरह खत्म करना था. आरएमआई से जुड़े एक अधिकारी कहते हैं कि अगर इलेक्ट्रॉनिक, ऑटो, प्लास्टिक उद्योग आरएमआई के साथ अब तक नहीं जुड़े हैं तो जाहिर है इसका इकलौता कारण यही है कि वे अब तक माइका के अवैध खनन के खिलाफ साथ नहीं आना चाहते. वहीं बिजेनस एंड ह्यूमन रिसोर्स सेंटर की प्रमुख बॉबी मारिया कहती हैं कि इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र ने इस ओर कुछ सुधार जरूर किया है लेकिन इस मामले को गंभीरता से लेने वाली कंपनियां और उदासीनता भरा रुख रखने वाली कंपनियों के बीच एक बड़ा अंतर अब भी है.

एए/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)