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समाज

बच्चा चोरी के शक में हिंसक बनती भीड़

समीरात्मज मिश्र
३० अगस्त २०१९

उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में बच्चा चोरी की अफवाहों में कई निर्दोष लोग हिंसक भीड़ का शिकार हो रहे हैं. यूपी में ऐसी अफवाहों को फैलाने का दोषी पाए जाने पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी.

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Symbolbild Kidnapping
तस्वीर: Colourbox

उत्तर प्रदेश के कई जिलों से पिछले एक महीने के दौरान ऐसी दर्जनों घटनाओं की खबरें आई हैं जिनमें भीड़ ने बच्चा चोरी का आरोप लगाते हुए अनजान लोगों को पीटना शुरू कर दिया. ऐसी पिटाई में कई लोगों की जान भी जा चुकी है. इस अफवाह के संबंध में अब तक करीब सौ मामले दर्ज किए जा चुके हैं और दर्जनों लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है.

संभल में पिछले चार दिन में दो लोगों की इसी संदेह में पिटाई के दौरान मौत हो गई. बच्चा चोरी के शक में अमरोहा के आदमपुर थाना क्षेत्र के देहरी खादर गांव के पास भीड़ ने एक मंदबुद्धि व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला. जानकारी के मुताबिक, नलकूप पर सो रही महिला ने इस व्यक्ति पर अपने छह वर्षीय बच्चे को छीनकर भागने का आरोप लगाया. शोर सुनकर भीड़ इकट्ठा हुई, चालीस वर्षीय उस मंदबुद्धि व्यक्ति को पीटने लगी और फिर इसी दौरान उसकी मौत हो गई.

उसके अगले ही दिन संभल जिले के ही रजपुरा इलाके में भी इसी संदेह ने एक व्यक्ति को पकड़ कर पीटना शुरू किया और फिर बाद उसकी भी मौत हो गई. मुरादाबाद मंडल के रामपुर, अमरोहा और संभल जिलों में एक हफ्ते के भीतर बच्चा चोरी के शक में तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या की जा चुकी है जबकि बच्चा चोरी के आरोप में लोगों को पकड़ने, पीटने और फिर पुलिस के हवाले करने की करीब डेढ़ दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं.

क्या केवल यूपी प्रभावित?

ये घटनाएं सिर्फ यहीं नहीं, बल्कि पूरे राज्य में या यूं कहें कि आस-पास के राज्यों मसलन बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी सुनने में आ रही हैं. इन सभी मामलों में ज्यादातर अनजान लोग ही भीड़ की हिंसा का शिकार हुए हैं. पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर बच्चा चोरी की आशंकाओं वाली अफवाहें सही हैं या फिर इनके पीछे कुछ शरारती तत्वों का दिमाग है.

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में तो बच्चा चोरी करने वाले गिरोह की आशंका में बुधवार को ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम को ही बंधक बना लिया. यही नहीं, भीड़ ने पुलिस को भी दौड़ाते हुए पथराव कर दिया जिसमें दारोगा, सिपाही समेत तीन लोग घायल हो गए. बाद में पहुंची पुलिस टीम ने सभी स्वास्थ्यकर्मियों को ग्रामीणों के बंधन से मुक्त कराया.

वहीं रायबरेली में एक इंजीनियर पर भीड़ इस आशंका में टूट पड़ी कि वो किसी बच्चा चुराने वाले गिरोह का सदस्य है. हालांकि कुछेक जगहों से ऐसे गिरोह के होने की आशंका भी जताई जा रही है. पिछले दिनों बरेली में बच्चा ले जाते समय एक व्यक्ति को पुलिस ने गिरफ्तार किया था जिसने पूछताछ में बताया कि वह ऐसे ही एक गिरोह का सदस्य है. बरेली के नगर पुलिस अधीक्षक अभिनंदन सिंह ने बताया कि गिरोह के अन्य सदस्यों की भी तलाश की जा रही है.

रासुका लगाने की चेतावनी

अफवाहों की वजह से भीड़ की हिंसा इस कदर भयावह होती जा रही है कि राज्य के डीजीपी को अपील जारी करनी पड़ी. यूपी के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने गुरुवार को कहा, "लोग ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दें और किसी आशंका की स्थिति में सीधे पुलिस को सूचना दें. अफवाह फैलानों वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी और उनके खिलाफ रासुका भी लगाई जा सकती है.”

वहीं, जिलों की पुलिस इन अफवाहों को रोकने और भीड़ हिंसा से आम और अनजान लोगों को बचाने में कड़ी मशक्कत कर रही है. कहीं जगह-जगह लाउड स्पीकर से लोगों को सावधान करने की अपील जारी की जा रही है तो कहीं पुलिस वाले खुद ये जिम्मा संभाले हुए हैं. कुछ जगहों से मस्जिदों से भी ऐलान कराया जा रहा है कि बच्चा चोरी की घटनाएं सिर्फ अफवाह हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है.

राज्य के डीजीपी के मुताबिक, अब तक की जांच में किसी भी घटना में बच्चा चोरी की पुष्टि नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि अब तक ऐसी अफवाहों में शामिल 82 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और कई लोगों से पूछताछ की जा रही है.

क्या पहले नहीं फैलती थीं ऐसी अफवाहें

दरअसल, अफवाहों का फैलना और फिर उनकी वजह से हिंसा होना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी विभिन्न तरीकों की अफवाहें उड़ती रही हैं और उनसे शांति व्यवस्था भंग होती रही है. अफवाहें भले ही बहुत ही तेजी से दूर-दूर तक फैलती हैं लेकिन अक्सर देखने में आया है कि सच्चाई जैसी चीज उनसे कोसों दूर रहती है. इससे पहले भी मुंहनोचवा, चोटीकटवा जैसी अफवाहें फैल चुकी हैं और देखते ही देखते ये देश भर को अपने गिरफ्त में ले लेती हैं.

कुछ समाजशास्त्री ऐसी अफवाहों के पीछे सोशल मीडिया को भी जिम्मेदार मानते हैं लेकिन यह भी सही है कि जब सोशल मीडिया नहीं था, ऐसी अफवाहें तब भी तेजी से फैलती थीं. करीब एक दशक पहले पूर्वी यूपी के तमाम इलाकों में ‘मुंहनोचवा' जैसी अफवाह लोग अभी भी नहीं भूले हैं.

दिल्ली के एक कॉलेज में में समाजशास्त्र पढ़ाने वाले सर्वेश कुमार कहते हैं, "सवाल यह है कि यदि ऐसी अफवाहें किसी षड़यंत्र का हिस्सा हैं तो आखिर उससे फायदा किसे है. दरअसल, ऐसा कुछ माहौल कहीं न कहीं से बनाया जाता है और फिर उससे जुड़ी बातों को लोग ऐसी अफवाहों से जोड़ने लगते हैं. बच्चा चोरी में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. मोहल्ले में या गांव में किसी अनजान व्यक्ति या महिला के पास बच्चा दिखा तो लोग उसे चोर ही समझने लग रहे हैं. पहले ऐसा नहीं था लेकिन जब से अफवाह उड़ रही है लोग आशंकित होने लगे हैं.”

बहरहाल, पुलिस इन अफवाहों और इनकी वजह से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं लेकिन यह भी सही है कि इसे रोकना सिर्फ पुलिस के हाथ में नहीं है. जब तक अफवाहों से लोग खुद दूर नहीं रहेंगे, सोशल मीडिया के दौर में तब तक इसे रोक पाना मुमकिन नहीं है.

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