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बचपन की यादें

९ अप्रैल २०१२

स्कूल में पढ़ी हुई कौन सी कविता याद आती है आपको...फेसबुक पर हमें बहुत से यूजर्स ने लम्बी लम्बी सुंदर सुंदर कविताएं भेजी.

https://p.dw.com/p/14Zjj
तस्वीर: AP

बचपन के दिनों में सभी अक्सर लौट कर जाना चाहते हैं. स्कूल, दोस्त, शिक्षकों की यादें अक्सर आती हैं. हमने कुछ ही दिन पहले फेसबुक पर अपने मित्रों से पूछा कि " स्कूल में पढ़ी हुई कौन सी कविता याद आती है आपको....हमें याद आ रही है, यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमुना तीरे मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे..." हमें बहुत से लोगों ने बचपन में पढ़ी कविताएं भेजी, जिनमें से कुछ एक आप भी पढ़े....

1.

चन्दन है इस देश की माटी

तपोभूमि हर ग्राम है

हर बाला देवी की प्रतिमा

बच्चा बच्चा राम है.

जहां के सैनिक समरभूमि में

गाया करते गीता है

जहां खेत में हल के नीचे

खेला करती सीता है

ज्ञान जहां का गंगाजल सा

निर्मल हर अभिराम है...

प्रेषक: गौरव चौहान

2.

पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं.
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं.
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जाएं वीर अनेक

प्रेषकः पंकज नेमा

3.

अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !
वृक्ष हों भले खड़े , हों घने , हों पड़े,
एक-पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !
तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी ! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !
यह महान दृश्य है - चल रहा मनुष्य है ,
अश्रु-स्वेद -रक्त से, लथपथ, लथपथ , लथपथ ,
अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! -

प्रेषकः मनोज कामत

4.

बिगुल बज उठा आजादी का, हर मजदूर किसान उठा,

धरती जागी अम्बर जागा, सारा हिन्दुस्तान जगा.

धरती अपनी शासन अपना, एक यही बस नारा था,

पराधीनता के हर दुःख से, पाना अब छुटकारा था......

प्रेषक: दीपक चांदवानी

5.

भिक्षुक

वह आता--
दो टूक कलेजे के करता
पछताता, पथ पर आता.
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक..
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को.
मुंह फटी पुरानी झोली का फैलाता..
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता.
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए
बाएं से वे मलते पेट को चलते,
और दाहिना दयादृष्टि पाने की ओर बढ़ाए..
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता भाग्य विधाता से क्या पाते..
घूंट आंसुओं के पीकर रह जाते..
चाट रहे हैं जूठी पत्तल कभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए..

प्रेषकः अनवर जमाल अशरफ