1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

"बचपन की यादें साझा की"

१६ मार्च २०१३

डीडब्ल्यू हिंदी के रेडियो श्रोता जिनसे कुछ समय पहले साथ छूट सा गया था, अब फिर से फेसबुक व मंथन के जरिए हमसे जुड़ रहे है. लेखों,कार्यक्रमों पर पाठकों ने अपने विचार दिए है. आइए जाने क्या लिखते हैं...

https://p.dw.com/p/17z1n
तस्वीर: Africa Studio/Fotolia

किधर जाएंगे अनचाहे बच्चे - आपकी रिपोर्ट पढ़ी और दिल पसीज उठा. हालांकि जर्मनी की स्थिति तो काफी कुछ सुधरी हुई है. भारत के बच्चों का दुर्भाग्य है कि मां बाप अक्सर अपने बच्चों को 500 रूपये के लिए भी बेचने को कम नहीं करते. आगे जाकर उन्हें ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार होना पड़ता है. कई अनाथालयों से अनाथ बच्चे विदेशों में भेजे जाते हैं. मां तो जन्म देते वक़्त परिस्थिति से विवश होकर बच्चे को कहीं फेंक देती हैं. आज मैं उस मां को सलाम करता हूं जो ऐसे बच्चों को अपनाकर बड़ा करती है.

मनोज कामत, पुणे

----

मैं बचपन से DW हिंदी का श्रोता रहा हूं. फिर बीच में प्रोफेशनल पढाई के चलते रेडियो से संबंध छूट गया. एक दिन अचानक फेसबुक पर DW का लोगो दिखाई दिया तो मानो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ. झट से लाईक किया और फिर से जुड़ गए DW से. एक दिन अचानक DW से फोन आया, कुछ बचपन की यादें साझा की. ऑनलाइन रेडियो पर अपना रिकार्डेड फोन सुना तो लगा मानो गुजरा वक्त वापिस आ गया हो कुछ क्षणों के लिए. अब अधिक वक्त नहीं मिलता पर फिर भी आते जाते आपकी रिपोर्ट्स पढ़ लेता हूं. आप से आग्रह है कि जर्मनी की चिकित्सा प्रणाली व व्यवस्था पर कुछ अवश्य बताएं. अगर हर सप्ताह एक जर्मन डिश (food preparation) की विधि सांझा करें तो बहुत आनंद आएगा .

डॉ. दिनेश पाहवा, हिसार, हरियाणा

----

मैं आपका कार्यक्रम मंथन हर शनिवार को देखता हूं. इसमें मुझे काफी कुछ जानने को मिलता है. इस कार्यक्रम से हम जैसे युवा पीढ़ी को काफी लाभ मिलेगा. इसका तो मैं बहुत बड़ा फैन हूं.

आशिष कुमार अकुभाई पटेल, गुजरात

----

गुमनामी में महिला क्रांतिकारी - यह आर्टिकल पढ़ कर मुझे बहुत अच्छा लगा सबसे बड़ी बात यह है कि इसके बारे में मैं पहली बार पढ़ रहा हूं, ऐसी अच्छी जानकारी मुझे डीडब्ल्यू पर ही मिलती है. धन्यवाद डीडब्ल्यू मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या इस बार डीडब्ल्यू बुक फैयर में दिल्ली आ रहा है.
गुरदीप सिंह दौद्पुरी, कपूरथला, पंजाब

----
मेघालय में महिला राज - विश्व महिला दिवस के मौके पर "मेघालय में महिला राज्य" खबर पढ़ कर डॉयचे वेले की जय करने का मन हो रहा था. भारत में रहकर हम इस तरह की खास खबरों से पता नहीं क्यों हम महरूम रह जाते हैं. खैर,खबर बेहद दिलचस्प और खास लगी. जहां समूचे देश में लिंग अनुपात के भारी होते जा रहे अंतर पर न्यायालय चिंता जता रहे हों वहां मेघालय जैसे राज्य किसी बड़े उदाहरण से कम नहीं. हो सकता है मातृसत्तात्मक अधिकारों वाले इस खासी जाति के सदियों से चली आ रही परम्परा से वहां के पुरुषों को कुछ मामलों में तकलीफों का सामना करना पड़ता हो बावजूद इसके इस व्यवस्था के होने से कम से कम स्त्रियों के अधिकारों को बल मिलता है. लड़कियों को अपना उत्तराधिकारी बनाने से माता-पिता भी सुरक्षित रहते हैं, क्योंकि कुछ भी हो लड़कियां आज भी पुरुषों की तुलना में अधिक भरोसे की साथी होती हैं. डॉयचे वेले की सभी महिला सहयोगियों को मेरी तरफ से महिला दिवस के पावन मौके पर हार्दिक बधाईयां, अभिनन्दन और श्रद्धानमन भी.
जहरीले सांपों से चलता जीवन - विषयक जानकारी पूर्ण लेख पढ़ने के बाद महसूस हुआ कि सांपों का भी एक बड़ा कारोबार है. वकीरा जैसे न जाने कितने ही लोग इस कारोबार से जुड़े हैं. इण्डोनेशिया में सबसे अधिक सांपों की प्रजातियां पाए जाने के कारण शायद वकीरा के लिए ये पेशा आसान होगा लेकिन बहुत ही जोखिम भरा और चुनौती पूर्ण है. लेख के साथ जुड़ी तस्वीरें बहुत डरावनी हैं. इस लेख के जरिए पहली बार कुछ ऐसी जानकारियां मिली जिनसे मैं पूरी तरह अनभिज्ञ था.
रवि श्रीवास्तव, इंटरनेशनल फ्रेंडस क्लब, इलाहाबाद

----

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः आभा मोंढे