बंगाल में यौन शिक्षा पर बवाल
१२ अगस्त २०१२सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) की पहल पर अब पश्चिम बंगाल उच्च शिक्षा परिषद (डब्ल्यूबीसीएचएसई) ने इस मुद्दे पर सैद्धांतिक तौर पर अपनी सहमति दे दी है. परिषद अब इस मसले पर अगला कदम उठाने की तैयारी में है. परिषद के अध्यक्ष मुक्तिनाथ चटर्जी कहते हैं, ‘केंद्र सरकार की तरफ से मिले प्रस्ताव को हमने मंजूरी दी है. इसके मुताबिक नौवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल किया जाएगा.'
वह बताते हैं कि अब पाठ्यक्रम के मसविदे पर विचार किया जा रहा है. यह कैसा होना चाहिए और छात्रों को इस मामले में कितनी जानकारी देनी चाहिए, यह और इन जैसे कई सवालों पर शिक्षाविदों के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा. इसके अलावा पाठ्यक्रम समिति के सदस्यों के साथ भी चर्चा की जाएगी. चटर्जी कहते हैं कि एक खास उम्र के बच्चों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए. इससे उन छात्रों को यौन कुंठाओं से मुक्त करने में सहायता मिलेगी. इससे वह लोग एक बेहतर नागरिक बन सकते हैं. उनकी दलील है कि यौन मसलों पर ज्ञान की कमी के चलते छात्रों के मन में तरह-तरह की भ्रांतियां हैं. स्कूलों में इस विषय की पढ़ाई अनिवार्य होगी. लेकिन इसकी कोई अलग से परीक्षा नहीं होगी.
पहले भी हुआ था प्रयास
बंगाल के स्कूलों में यौन शिक्षा शुरू करने का यह पहला प्रयास नहीं है. तीन साल पहले भी लाइफस्टाइल एजुकेशन नाम से इसे शुरू करने का प्रयास किया गया था. उस समय शिक्षकों ने इसका विरोध किया था. विभिन्न स्तरों पर होने वाले विरोध को ध्यान में रखते हुए सीपीएम की अगुवाई वाली तत्कालीन सरकार ने इस मामले को ठंढ़े बस्ते में डाल दिया था. उस समय उसकी दलील थी कि छात्रों को पर्यावरण विज्ञान नामक एक अनिवार्य अतिरिक्त विषय की पढ़ाई करनी होती है. ऐसे में लाइफस्टाइल पर अलग पाठ्यक्रम शुरू करने से उन पर बोझ बढ़ जाएगा. लेकिन अब पर्यावरण विज्ञान पाठ्यक्रम में शामिल नहीं होने की वजह से परिषद उसकी जगह यौन शिक्षा की पढ़ाई की तैयारी कर रही है.
विरोध शुरू
राज्य में परिषद के इस फैसले का विरोध शुरू हो गया है. छात्र संगठन इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्र नेता सुरेंद्र मजुमदार कहते हैं, ‘कच्ची उम्र में यौन शिक्षा की पढ़ाई से बच्चे पढ़ाई छोड़ कर इसी की ओर आकर्षित होंगे. इस वजह से स्कूल परिसरों में यौन अपराध बहुत ज्यादा बढ़ने का अंदेशा है. उनकी दलील है कि अगर सरकार ऐसी कोई शिक्षा देना ही चाहती है तो इसकी पढ़ाई ग्रेजुएट स्तर पर शुरू की जानी चाहिए. उस समय तमाम छात्र परिपक्व हो जाते हैं और अपना भला-बुरा समझने लगते हैं. वह कहते हैं कि जीवनशैली के बहाने यौन शिक्षा की पढ़ाई को छात्र कभी स्वीकार नहीं करेंगे.
शिक्षाविद सुनंद सान्याल कहते हैं, "सरकार और परिषद को इस मामले में कोई भी फैसला करने से पहले इसके विभिन्न पहलुओं और नतीजों पर बारीकी से विचार-विमर्श कर लेना चाहिए. जल्दबाजी में किया गया कोई भी फैसला खतरनाक साबित हो सकता है. यह हमारी भावी पीढ़ी के भविष्य का सवाल है." एक गृहिणी कामिनी भट्टाचार्य कहती हैं, "हर चीज की एक उम्र होती है. कम उम्र में बच्चों को यौन शिक्षा देना उनको पढ़ाई-लिखाई से विमुख कर सकता है. सरकार को इस पर समाज के विभिन्न तबके के लोगों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई फैसला करना चाहिए."
समर्थन भी
परिषद के अध्यक्ष मुक्तिनाथ चटर्जी कहते हैं, "सही जानकारी के अभाव में छात्रों को कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझना पड़ता है. कई बार वह अवसाद की स्थिति में चले जाते हैं. हम इस पाठ्यक्रम में इन तमाम चीजों को शामिल करेंगे ताकि छात्रों को किसी से पूछे बिना ही अपनी मानसिक उलझन का समाधान मिल सके." जाने-माने मनोचिकित्सक डा. भवेन घोष कहते हैं, "इसमें कोई बुराई नहीं है. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि स्कूलों में इस पाठ्यक्रम के तहत क्या और कैसे पढ़ाया जाता है. छात्रों को यौन शिक्षा देना जरूरी है. लेकिन उनको इसकी कितनी खुराक दी जाए, यह तय करने में काफी सावधानी बरतनी होगी."
पक्ष और विपक्ष की तमाम दलीलों के बीच परिषद इस मामले में आगे बढ़ रही है. चटर्जी कहते हैं कि पाठ्यक्रम का प्रारूप तैयार करने के बाद हम इसे मंजूरी के लिए सरकार के समक्ष पेश करेंगे. उनकी दलील है कि बदलते समय के साथ बदलना जरूरी है. केबल टीवी और इंटरनेट के प्रसार ने छात्रों को यौन शिक्षा के मामले में और भ्रमित कर दिया है. हम इस पाठ्यक्रम जरिए उनको सही राह दिखा सकते हैं.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा