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फ्रांस का राष्ट्रपति चुनाव और जर्मनी

क्रिस्टॉफ हासेलबाख
५ मई २०१७

जर्मनी और फ्रांस दशकों से ईयू के इंजन रहे हैं. ये चुनाव भविष्य तय करेगा. यदि मारीन ले पेन जीतती हैं तो जर्मनी के लिए अत्यंत मुश्किल परिस्थिति होगी. उदारवादी इमानुएल माक्रों भी जर्मनी के लिए मुश्किल सहयोगी होंगे.

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Deutschland Emmanuel Macron trifft Sigmar Gabriel in Berlin
तस्वीर: Getty Images/M. Tantussi

जर्मन सरकार को एक साल के अंदर दो गंभीर विदेश नैतिक झटके लगे हैं. ब्रिटेन का यूरोप संघ छोड़ने का फैसला और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत. लेकिन फ्रांस में मारीन ले पेन की जीत से क्या होगा, इसके बारे में बर्लिन में कोई सोचने को भी तैयार नहीं. इतना साफ है कि यदि राष्ट्रपति के रूप में मारीन ले पेन अपने देश को यूरो और यूरोपीय संघ से बाहर निकालती हैं तो जर्मनी और फ्रांस के संबंधों में भी वह सब कुछ बिखर जायेगा जो पीढ़ियों के प्रयासों से तैयार हुआ है. फ्रांस के बिना यूरोपीय संघ की भी कल्पना नहीं की जा सकती. ब्रेक्जिट ने ईयू को बहुत नुकसान पहुंचाया है, फ्रेक्जिट के बाद पहले जैसा कुछ भी नहीं बचेगा.

चुनाव सर्वेक्षण में इमानुएल माक्रों साफ तौर पर आगे हैं. लेकिन चूंकि ब्रेक्जिट और अमेरिकी चुनाव दोनों में चुनावी सर्वे के नतीजे गलत साबित हुए, बर्लिन में बेचैनी है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने यह कहकर थोड़ी बहुत चुनावी मदद भी दी है, "यह फ्रांस की जनता का फैसला है और रहेगा, जिसमें मैं हस्तक्षेप नहीं करूंगी." साथ ही उन्होंने कहा, "लेकिन मुझे खुशी होगी यदि इमानुएल माक्रों जीतते हैं क्योंकि वे यूरोप समर्थक नीति के दृढ़ पक्षधर हैं."

विभाजित वामपंथी

माक्रों ने जनवरी में ही जब उन्हें गंभीर उम्मीदवार नहीं समझा जा रहा था, अपने बर्लिन दौरे पर हुम्बोल्ड यूनिवर्सिटी में कहा था, "मैं और ज्यादा यूरोप चाहता हूं और मैं इसे जर्मनी के साथ चाहता हूं. मुझे जर्मनी पर भरोसा है." मार्च में चांसलर अंगेला मैर्केल ने उनसे अपने दफ्तर में मुलाकात की थी. लेकिन इससे किसी खास संबंध का पता नहीं चलता. कंजरवेटिव फ्रांसोआ फियों और सोशलिस्ट बेनोआ आमोन ने भी उनसे मुलाकात की थी. साल के शुरू में चांसलर मैर्केल की सीडीयू पार्टी फियों को भावी फ्रेंच राष्ट्रपति के तौर पर देख रही थी, लेकिन जाली नौकरी के कांड ने उनका भविष्य खराब कर दिया.

मारी ले पेन भी साल के शुरू में जर्मनी आई थीं, लेकिन मैर्केल से बहुत दूर कोबलेंज शहर में यूरोपीय कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों के सम्मेलन में भाग लेने. जर्मनी की सरकार प्रमुख से अपने गहरे वैर भाव को वह लंबे समय से छुपा भी नहीं रही हैं. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति के रूप में "अंगेला मैर्केल की उप चांसलर" नहीं बनना चाहतीं. उन्होंने माक्रों पर आरोप लगाया कि वे फ्रांस को जर्मनी को सौंप देंगे.

बर्लिन की पसंद

अब जबकि फैसला ले पेन और माक्रों के बीच है, 39 वर्षीय माक्रों जर्मन राजनीतिक दलों की पहली पसंद बन गये हैं. एएफडी को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां चाहती हैं कि वे जीतें. यहां तक कि वामपंथी डी लिंके पार्टी के प्रमुख बैर्न्ड रीसिंगर माक्रों को कामगारों के खिलाफ संघर्ष का आह्वान कहते हैं लेकिन फिर भी उन्होंने माक्रों को चुनने की अपील की है. एसपीडी के विदेश मंत्री जिगमार गाब्रिएल को तो वह इतना पसंद हैं कि पहले चरण के चुनाव से पहले ही उन्होंने सोशलिस्ट उम्मीदवार के बदले माक्रों का समर्थन किया, जिन्हें वह असली सोशल डेमोक्रैट मानते हैं.

Deutschland Emmanuel Macron trifft Angela Merkel in Berlin
चांसलर कार्यालय में मैर्केल के साथतस्वीर: Getty Images/AFP/J. MacDougall

फ्रांस विशेषज्ञ क्लेयर डेनेस्मे का कहना है कि माक्रों सभी मध्यमार्गी जर्मन पार्टियों के अनुकूल हैं. ले पेन के विपरीत वह जर्मनी के अनुकूल हैं. जर्मन सरकार के लिए महत्वपूर्ण यह बात है कि वे शेंगेन और यूरो पर जर्मन नीति के करीब हैं. लेकिन बर्लिन से मिल रहा समर्थन फ्रांस में माक्रों के लिए संवेदनशील है. टीवी बहस में ले पेन ने माक्रों की आलोचना करते हुए कहा कि माक्रों ने मैर्केल का आशीर्वाद चाहा है. वे उनके बिना कुछ नहीं करते. ले पेन ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, चुनाव के बाद फ्रांस में "हर हाल में एक महिला का शासन होगा, या तो मेरा या मैर्केल का." माक्रों की इस बात के लिए भी आलोचना हुई कि 11 उम्मीदवारों में वे अकेले थे जिसने मैर्केल की शरणार्थी नीति को उचित ठहराया.

अपमानित राष्ट्र

लेकिन यदि माक्रों राष्ट्रपति बन जाते हैं तो वे बर्लिन के लिए एक रचनात्मक सहयोगी होंगे, हां में हां मिलाने वाले सहयोगी नहीं. वे यूरोपीय कर्ज को सामूहिक बनाने के समर्थक हैं, जिसका जर्मन सरकार विरोध करती रही है. वे जर्मनी के व्यापार संतुलन फायदे को बर्दाश्त न करने लायक और जर्मन निवेश को बहुत कम मानते हैं.लेकिन यूरोपीय संसद की उदारवादी सदस्य सिल्वी गुलार्ड का कहना है कि सबसे बड़ी बात यह है कि "उनके मन जर्मनी के प्रति विद्वेष नहीं है." चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने दूसरे उम्मीदवारों के विपरीत जर्मनी को आर्थिक आदर्श बताया है.

यदि इमानुएल माक्रों एलिजी पैलेस की दौड़ में सफल रहते हैं तो जर्मन सरकार राहत की सांस लेगी. कुछ राजनीतिज्ञ तो सोचने लगे हैं कि क्या बर्लिन ने अतीत में अपरिहार्य साथी फ्रांस के साथ उचित व्यवहार किया है. बर्लिन से सरकार के प्रतनिधियों ने उसे बार बार बजट घाटे, कमजोर अर्थव्यवस्था और ऊंची बेरोजगारी पर चेतावनी दी है और कुछ हद तक तरस दिखाया है. इसने भी मारीन ले पेन की मदद ही की है. विदेश मंत्री जिगमार गाब्रिएल ने पिछले दिनों फ्रांसीसी दैनिक ले मोंद में लिखा कि जर्मनी को फिर से "ईमानदार मध्यस्थ" की भूमिका निभानी चाहिए और "शिक्षक जैसी हेकड़ी से बचना चाहिए." लेकिन ये एक तरह से माक्रों की चुनावी मदद थी.