फैशन के जरिए रक्तदान को बढ़ावा
११ अप्रैल २०११बहुत से यूरोपीय देशों की तरह नीदरलैंड्स में भी उम्रदराज आबादी लगातार बढ़ रही है जिसका सीधा असर रक्तदान और ब्लड बैंकों पर पड़ रहा है. ऐसे में वहां नौजवानों को फैशन के जरिए रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इस पहल की जरूरत इसलिए भी पड़ी क्योंकि डच युवा रक्तदान से कतराते हैं.
2010 में एम्सटरडम फैशन वीक के दौरान एक खास शो हुआ जो बाकी चकाचौंध से कुछ हट कर था. 18 डच युवा डिजाइनरों ने एक कलेक्शन पेश किया, जिसका मकसद देश में रक्तदान करने वालों की घटती संख्या को लेकर जागरूकता पैदा करना था. उन्होंने मिल कर रेड रेल नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसके तहत फैशन के जरिए इस तरह के मुद्दों उठाया जाता है. इस पहल के पीछे श्टिष्टिंग नोबेल फाउंडेशन की अहम भूमिका रही है. फाउंडेशन की निदेशक यास्मीन एंद्रिग्ना बताती हैं, "इसका रिस्पॉन्स बहुत अच्छा रहा. मुझे ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. यह बहुत ही अच्छा रहा. लोग इस शो और उसमें पेश कपड़ों को लेकर बहुत उत्साहित दिखे. सब कुछ अच्छा रहा."
रक्तदाताओं की कमी
श्टिष्टिंग नोबल से बहुत से कम्युनिकेशन एक्सपर्ट जुड़े हैं. यह रक्तदान जैसे सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए खास मुहिम चलाता है. वे युवा डच फैशन डिजाइनरों को प्रेरित करते हैं. फिर उनके डिजाइनर कपड़ों को रक्तदान करने वाले नौजवानों में लॉटरी से वितरित किया जाता है. इन कपड़ों को डिजाइन करने के लिए 48 में 18 डिजाइनर चुने गए. बारबरा फान डेर जांडेन भी इन्हीं में से एक हैं. वह बताती हैं, "जब मैं रक्त के बारे में सोचती हूं तो इस तरह बूंदें गिरते हुए देखती हूं. और जब नीचे रखे तरल पदार्थ के कुंड में कोई बूंद गिरती है तो आप देखते हैं कि उन बूंदों से द्रव की पूरी सतह हिल जाती है. सतह की इसी हलचल को मैं अपने डिजाइनर कपड़ों में पेश करना चाहती हूं. बूंद गिरने से पानी की सतह पर बनने वाले गोले धीरे धीरे बड़े होते जाते हैं, यही बात आपको मेरे बनाए इन ब्लाउजों में गर्दन से कमर की तरफ दिखती है. ट्राउजर में भी मैंने इस बात को उभारने की कोशिश की है. गोले बड़े होते जा रहे हैं."
नीदरलैंड्स में लगभग चार लाख रक्तदान करने वाले हैं. लेकिन इस संख्या में हर साल 10 प्रतिशत की कमी देखी जा रही है जिसकी खास वजह देश की उम्रदराज होती जनसंख्या है. रक्तदान करने वालों पर 2009 में यूरोपीय आयोग की तरफ से करवाई गई एक स्टडी में नीदरलैंड्स को यूरोपीय संघ के औसत से नीचे रखा गया है. और जिन लोगों की रक्तदान में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, उनमें अकसर 15 से 24 साल की उम्र के लोग होते हैं. इस उम्र के एक चौथाई से भी कम लोगों को रक्तदान का अनुभव है.
फैशन से मिली मदद
ऐसे में रक्तदान के लिए मुहिम चलाने वालों को हर साल 40 हजार नए रक्तदाता तलाशने पड़ते हैं. और यास्मीन एंद्रिग्ना कहती हैं कि नौजवान पीढ़ी फैशन की भाषा सबसे ज्यादा समझती हैं. उनके शब्दों में, "रक्तदाताओं की किल्लत की सबसे बड़ी वजह यह है कि युवा लोग रक्तदान नहीं कर रहे हैं. इसका मतलब है कि 18 से 35 साल के लोग रक्त नहीं दे रहे हैं. या फिर बहुत ही कम युवा इस बारे में सोचते हैं. तो युवाओं को इस बारे में जागरूक करने के लिए कुछ करना होगा. और फैशन ऐसी चीज है जिसमें इस उम्र के सब लोगों की दिलचस्पी होती है. फैशन के जरिए लोगों को इस बारे में बताना वाकई कारगर साबित हो रहा है."
102 लोग रेड रेल प्रोजेक्ट से जुड़े हैं. मतलब वे नए रक्तदाता बन गए हैं. इन्हीं में 23 साल की सुजाने शुइटमेकर भी शामिल हैं. वह यास्मीन के साथ ही काम कर रही हैं और खुद देखना चाहती थीं कि रक्त देने के क्या क्या करना पड़ता है. वह बताती हैं, "श्टिष्टिंग नोबेल में आने से पहले मैंने कभी खून देने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि यह मेरे सिस्टम में था ही नहीं. फिर मैं श्टिष्टिंग नोबेल में आई और इस प्रोजेक्ट की वजह से मैंने सोचा क्यों न मैं भी रक्त दान करूं. पहले तो मैंने इस बारे में सोचा ही नहीं."
सफल रही मुहिम
सुजाने के दोस्तों को भी यह आइडिया पसंद आया. शायद इसलिए भी कि इस तरह उनके पास कुछ डिजाइनर कपड़े जीतने का मौका है. सुजाने बताती हैं, "कुछ लोग शो में गए और उन्होंने सोचा, हां मुझे भी खून देना है. लेकिन कुछ बोले कि रक्तदान के बदले जो कपड़े दिए जाने हैं, उनकी संख्या बहुत कम है. और फिर मुझे कहना ही पड़ा, देखो यह तो एक जागरुकता मुहिम है."
यह मुहिम जुलाई 2010 में शुरू हुई और इस हफ्ते इसका समापन हो गया. 20 नए भाग्यशाली रक्तदाताओं को डिजाइनर कपड़े मिले जिनकी कीमत चार सौ यूरो यानी 25 हजार रुपये के आसपास है. आयोजकों का कहना है कि यह मुहिम खासी सफल रही. यह बात सही है कि एक करोड़ 60 लाख की आबादी वाले नीदरलैंड में सौ सवा सौ लोगों ने ही इसमें हिस्सा लिया, लेकिन इसके जरिए रक्तदान को लेकर जागरूकता फैलाने में अच्छी खासी कामयाबी मिली. रेड रेल की वेबसाइट पर लगभग तीन लाख लोग आए. अब आयोजकों का इरादा अमेरिका और जर्मनी में भी इसी तरह की मुहिम शुरू करने का है.
रिपोर्टः डीडब्ल्यू/ए कुमार
संपादनः आभा एम