फैशन की चमक के पीछे...
सस्ते कारीगर, घंटों मेहनत और कम भत्ते के रास्ते गुजर कर आप तक पहुंचते हैं, आपके पसंदीदा ब्रांड वाले कपड़े. बांग्लादेश में हुई कई फैक्ट्री दुर्घटनाओं ने सारी दुनिया का ध्यान इन कारीगरों की तरफ खींचा था.
वैश्विक उद्योग
ज्यादातर कपड़ों की बनवाई विकासशील देशों के सस्ते कारीगरों के हाथों होती है. बड़ी कंपनियां अक्सर दक्षिण एशियाई और लातिन अमेरिकी देशों से कपड़ों का निर्माण करवाती हैं, जहां भत्ता कम देना पड़ता है. फिर माल सस्ता होने के आगे मजदूरों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा पर किसी का ध्यान कहां जाता है.
औद्योगिक उत्पादन
औद्योगिक उत्पादन की शुरुआत 18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति के समय ब्रिटेन में हुई थी. लंदन और मैनचेस्टर के इलाकों में 1859 तक 100 से ज्यादा सूती मिलें आ चुकी थीं. बाल श्रम, घंटों काम और कम मजदूरी के अलावा मजदूरों की गिरती सेहत आम बात हो गई थी.
आज का नहीं दुर्व्यवहार
मजदूरों के साथ ज्यादती सिर्फ ब्रिटेन तक ही सीमित नहीं रही. 1911 में न्यूयॉर्क की एक कपड़ा फैक्ट्री में आग लगने से 146 मजदूर मारे गए. फैक्ट्री के निकास द्वार मालिकों ने बंद कर रखे थे. इस फैक्ट्री में काम करने वाली ज्यादातर युवा महिलाएं थीं.
मेड इन चाइना
ज्यादा से ज्यादा कारोबार की होड़ में देशों के बीच सस्ते उत्पादन की दौड़ शुरू हो गई. 1970 में निर्माण का ज्यादातर काम अमेरिका और एशिया से चीन और लातिन अमेरिका पहुंच गया. चीन में फिलहाल भत्ता दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले ज्यादा है जिसके चलते फैक्ट्री मालिकों ने चीन के पड़ोसी देशों की तरफ रुख किया है.
शोषण की हद तक
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में सुमंगली की लड़कियों के लिए कपड़े के कारखाने में काम करना कोई नई बात नहीं. तमिल भाषा में सुमंगली का मतलब होता है वह वधू जो घर में समृद्धि लाती है. वहां करीब एक लाख बीस हजार लड़कियां इन कारखानों में चार साल की ट्रेनिंग के लिए भेजी जाती हैं जिसमें मिलने वाले पैसे उनके दहेज में काम आते हैं. उन्हें 12 घंटे काम करने के बदले करीब 50 रुपये मिलते हैं.
पैसों की कशमकश
कंबोडिया में तीन लाख से ज्यादा महिलाएं बदतर हालत में कपड़ा फैक्ट्रियों में काम कर रही हैं. वे महीने में 4000 रुपये कमाती हैं. कई मजदूरों ने भत्ता बढ़वाने के लिए विरोध प्रदर्शन किए तो उन पर गोली चला दी गई. इसमें कई लोगों की जान गई. बांग्लादेश में करीब 40 लाख लोगों का जीवन कपड़ा उद्योग पर निर्भर है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं.
दर्दनाक हादसे
इन मजदूरों की दर्दनाक कहानी की तरफ दुनिया का ध्यान हाल में तब गया जब बांग्लादेश की एक कपड़ा फैक्ट्री के ढह जाने से 1100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. इस त्रासदी के बाद जर्मनी की किक और मेट्रो जैसी 80 बड़ी कंपनियों ने फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के लिए करार किया.
उस दुनिया से अलग
दुकानों के कांच में चमकते दमकते कपड़े देख कर तो हमें इनके बनने की कहानी का पता नहीं चलता. विकासशील और गरीब देशों में कम मजदूरी पर काम करवाने वाले देशों में जर्मनी सहित कई देश शामिल हैं.