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फेक न्यूज के दौर में अब हम 'वेबकूफ' बन रहे हैं

२५ जून २०१८

स्मार्टफोन क्या वाकई हमें स्मार्ट बना रहे हैं या हम अब 'वेबकूफ' बन रहे हैं. सोशल मीडिया में फेक न्यूज की बाढ़ के बाद तो ऐसा ही लगता है. गलत सूचना ने लोगों को न सिर्फ भटकाया है बल्कि कइयों की जान भी ली है.

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India Mumbai - Surfen auf dem Handy
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
India Mumbai - Surfen auf dem Handy
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

पिछले दिनों असम के कार्बी-आंग्लोंग जिले में भीड़ ने दो युवकों की पीट-पीटकर हत्या कर दी क्योंकि उसे संदेह था कि ये दोनों युवक 'बच्चा चोर' हैं. यह मामला अभी ठंडा नहीं हुआ था कि पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश के दो लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया.

बालाघाट, सिवनी और छिंदवाड़ा जिलों में एक व्हाट्सऐप वीडियो सर्कुलेट हुआ जिसमें दिखाया गया कि दो लोग किसी जिंदा आदमी के शरीर से अंग निकाल रहे हैं. इस अफवाह के बाद 50-60 गांवों के लोगों ने दोनों व्यक्तियों को घेर लिया और पीट-पीटकर घायल कर दिया. पुलिस ने किसी तरह दोनों को बचाया वरना उनकी जान जा सकती थी. 

मध्य प्रदेश में सर्कुलेट हुए इस फेक वीडियो के साथ मैसेज भी आया जिसमें लिखा था कि 500 लोग आसपास के जिलों में घूम रहे हैं जो इंसानों को मारकर उनके अंग निकाल लेते हैं. पुलिस का कहना है कि यह फेक मैसेज 3 हफ्ते से वायरल हो रहा था. अफवाह उड़ी कि दो लोग किडनी चुराकर बालाघाट की ओर आ रहे हैं. गुस्साए ग्रामीणों ने बिना सोचे-समझे दोनों को बेरहमी से पीट दिया और उनकी एक न सुनी.

ऐसा पता लगाए वीडियो फेक है या असली

पुलिस ने वहां पहुंचकर पीड़ितों को बचाया और अस्पताल में भर्ती कराया. बालाघाट के पुलिस प्रमुख जयदेवन का कहना है कि पुलिस अफसरों ने लोकल व्हाट्सऐप ग्रुप को जॉइन किया तो मालूम चला कि तीन लोग इस फेक मैसेज को फैला कर रहे थे. व्हाट्सऐप पर ऐसे फेक मैसेज नए नहीं हैं. 

सोशल मीडिया से बिखरता सामाजिक ताना-बाना

इससे पहले बेंगलुरु में अफवाह फैली की शहर में 400 बच्चा चोर घूम रहे हैं. इसका खामियाजा एक 26 वर्षीय प्रवासी मजदूर को भुगतना पड़ा क्योंकि भीड़ ने उसे ही अपहरणकर्ता समझ लिया और जमकर पीटा.इस साल अब तक फेक मैसेज की वजह से एक दर्जन से ज्यादा लोगों को पीटा गया है और इनमें से कम से कम 3 की जान जा चुकी है.

फेसबुक की पोल खोलने वाला शख्स

 

सिरदर्द बना फेक मैसेज

भारत में 20 करोड़ लोग व्हाट्सऐप इस्तेमाल करते हैं जिसमें कई मैसेज, फोटो या वीडियो फेक होते हैं जो देखते ही देखते वायरल हो जाते हैं. प्राइवेसी विवाद से जूझ रही कंपनी फेसबुक के लिए व्हाट्सऐप पर फेक सामग्री सिरदर्द बन चुकी है. भारत में हिंदू बनाम मुस्लिम या उच्च जाति बनाम निचली जाति जैसे मुद्दे पहले से मौजूद हैं. ऐसे में फेक सामग्री आग में घी का काम करती है.

Mark Zuckerberg
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/J. Sanchez

केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में सांप्रदायिक हिंसा के 822 मामले सामने आए जिनमें करीब 2,384 लोग घायल हुए और 111 की जान गई. यह साफ नहीं है कि ऐसी घटनाओं को हवा देने में व्हाट्सऐप के फेक या भड़काऊ मैसेज का कितना रोल था.

व्हाट्सऐप के अधिकारी घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक मानते हैं. उनका कहना है कि अब वे एजुकेशन और लोगों में समझ पैदा करने के लिए काम कर रहे हैं जिससे ऐप में सेफ्टी फीचर्स के बारे में लोगों को पता चले और वे फेक खबर पर विश्वास न करें. 

ट्रोल्स से कैसे बचें?

केंद्र सरकार की दो सीनियर अफसरों के मुताबिक, व्हाट्सऐप के साथ इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है. भारतीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में एक ऐसी कंपनी बनाने के लिए टेंडर जारी किया जिससे भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स और फेक न्यूज पर नजर रखी जा सके.

वीसी/एके (रॉयटर्स)