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फिल्म

फारसी में डब हुई पीके, यूट्यूब पर मचाया धमाल

अशोक कुमार
२५ जुलाई २०१७

यह तो आपने सुना होगा कि आमिर खान की दंगल चीन में धूम मचा रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी फिल्म पीके भी यूट्यूब पर कमाल कर रही है और वह भी फारसी भाषा में.

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Bollywood PK Schauspieler Aamir Khan
तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images

यूटयूब पर अगर आप पीके इन फारसी टाइप करेंगे तो सबसे ऊपर आपको इस पूरी फिल्म का लिंक नजर आयगा, जिसे फारसी डब में किया गया है. आप पायेंगे कि चंद हफ्तों के भीतर इस फिल्म को लाखों बार देखा गया है. इसके अलावा फारसी सबटाइटल्स के साथ पीके के कई और लिंक भी आपको दिख जायेंगे.

यूं तो हिंदी फिल्में दुनिया भर में कई भाषाओं में डब होती हैं. लेकिन धर्मिक आडंबरों पर चोट करने वाली इस फिल्म को ईरानी दर्शकों के बीच पसंद किया जाना ध्यान खींचता है. धार्मिक तौर पर रुढ़िवादी सोच रखने वाले ईरान में ऐसी फिल्म को आधिकारिक तौर पर रिलीज किये जाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता. ऐसे में, इंटरनेट के जरिए ही यह फिल्म ईरानी दर्शकों तक पहुंच सकी है. डॉयचे वेले के फारसी विभाग में वरिष्ठ संपादक डॉ जमशेद फारूकी कहते हैं, "चंद हफ्तों के भीतर किसी फिल्म को 1.7 लाख बार देखे जाने से पता चलता है कि यह विषय ईरानी लोगों को कितना पसंद आया है. मैं तो कहूंगा कि इंटरनेट पर इतना ज्यादा उत्साह तो ईरानी फिल्मों को लेकर भी नहीं देखा जाता."

जाहिर तौर पर यह फिल्म आधिकारिक अनुमति के साथ डब नहीं की गयी है. लेकिन इसे खासे पेशेवर तरीके से किया गया है. डॉ फारूकी कहते हैं, "यह तो मैं नहीं कह सकता कि इसे ईरान में रहने वाले लोगों ने तैयार किया है या फिर विदेश में रहने वाले लोगों ने, लेकिन इतना तय है कि यह सरकारी तौर पर नहीं किया है क्योंकि फिल्म में कुछ ऐसे विषयों की आलोचना की गयी है जो हमें ईरान में भी देखने को मिलते हैं. फिल्म धर्म को आलोचनात्मक नजरिये से देखती है. लेकिन यह किसी एक धर्म को निशाना नहीं बनाती है."

साबिर अमानयान नाम के एक यूजर ने यूट्यूब पर कमेंट किया, "मैंने अपनी 37 साल की जिंदगी में इतनी कमाल की फिल्म नहीं देखी. बहुत बहुत शुक्रिया." एक अन्य यूजर आमिर महमूदी ने भी लिखा, "बड़े जमाने के बाद मैंने ऐसी शानदार फिल्म देखी है." वहीं हेलेन मोज्तबा ने लिखा, "सारे धर्म झूठे हैं. सच है तो सिर्फ ईश्वर. इसके अलावा सब कुछ अंधविश्वास और कारोबार है और लोग अब इसे समझ रहे हैं."

China indischer Schauspieler Aamir Khan in Peking - Film "Dangal"
तस्वीर: picture-alliance/Imaginechina/Niu Daqing

डॉ. फारूकी कहते हैं कि ईरान में आम लोग और समाज उतने धार्मिक नहीं हैं जैसा कि सरकार चाहती है. उनके मुताबिक, "धर्म को लेकर ईरान में आलोचनात्मक रवैया कोई नयी बात नहीं है और इसीलिए जो सब कुछ ईरानी सरकार कहती है उसे लोग चुपचाप स्वीकार नहीं कर लेते हैं."

हिंदी फिल्में दशकों से ही दुनिया के अलग अलग हिस्सों में देखी और पसंद की जाती रही हैं. लेकिन ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद हिंदी फिल्मों पर एक तरह से रोक लग गयी. डॉ. फारूकी बताते हैं, "इस्लामी क्रांति से पहले सभी भारतीय फिल्में फारसी में भी डब होती थीं और ईरानी सिनेमाघरों में दिखायी जाती थीं. लेकिन पिछले चार दशकों में ऐसा नहीं देखने को मिला है क्योंकि ईरानी सरकार नहीं चाहती है कि लोग ऐसी फिल्मों को देखें. उन्हें भारतीय फिल्मों से कोई राजनीतिक समस्या नहीं है, लेकिन आपत्ति उनमें होने वाले गीतों और डांस से होती है. हॉलीवुड फिल्मों में इतना गीत और संगीत नहीं होता तो ईरान में उनके रिलीज होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन भारतीय फिल्मों के साथ ऐसा नहीं है."

यानी जिस गीत संगीत के दम पर भारतीय फिल्में दुनिया भर में पहचान रखती हैं, उसी के चलते ईरान में उन्हें रिलीज नहीं किया जा सकता. लेकिन इंटरनेट ने कुछ हद तक चीजें आसान की हैं और फिल्मों को नये दर्शक दिये हैं. खुद डॉ. फारूकी को भी पीके बहुत पसंद आयी और वह बड़े उत्साह के साथ कहते हैं, "मैं अपने सारी ईरानी दोस्तों को कहूंगा कि इस फिल्म को देखो."