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"फांसी देकर कसाब को शहीद न बनाएं"

१५ दिसम्बर २०१०

पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब के वकीलों ने बॉम्बे हाई कोर्ट से अनुरोध किया है कि कसाब को फांसी देकर उसे शहीद नहीं बनाया जाना चाहिए. 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमलों के दौरान कसाब को पकड़ा गया. इन हमलों में 166 लोग मारे गए.

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कसाब के लिए उम्र कैद की मांगतस्वीर: AP

बचाव पक्ष के वकील अमीन सोल्कर और फरहाना शाह ने अपनी दलील में कहा, "मुंबई हमलों की साजिश रचने के पीछे कसाब का हाथ नहीं था. उसे उम्र कैद की सजा दिया जाना पर्याप्त रहेगा लेकिन मौत की सजा के जरिए उसे शहीद बना दिया जाएगा. कसाब मुंबई में मरने के लिए आया और उसे मौत की सजा देकर शहीद बना दिया जाएगा."

लेकिन सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने कहा कि निर्दोष लोगों को बेरहमी से मारने के लिए कसाब को मौत की सजा देना ठीक रहेगा. कसाब कामा अस्पताल में निर्दोष मरीजों को भी मारना चाहता था लेकिन समय रहते ताला लगा दिए जाने से वह अस्पताल में नहीं घुस पाया. उज्ज्वल निकम के मुताबिक कामा अस्पताल उनकी साजिश में शामिल नहीं था लेकिन लोगों को मारने के मकसद से ही वे अस्पताल में घुसे.

कसाब के वकीलों की दलील है कि वह साजिश रचने वाला नहीं बल्कि एक तरह से भाड़े का हत्यारा है. आतंकी हमले करने की साजिश रचने वालों ने उसका ब्रेनवॉश कर दिया. वे कहते हैं, "उसे फांसी पर मत लटकाओ बल्कि उम्र कैद की सजा दे दो. और लोगों को फिदायीन बनने से रोकने के लिए यही एक सजा उदाहरण के लिए काफी है."

यह दलील सुनकर जस्टिस रंजना देसाई ने पूछा कि क्या बचाव पक्ष को लगता है कि उम्र कैद दिए जाने से भविष्य में आतंकी हमलों को टाला जा सकेगा. इससे समाज को क्या संदेश जाएगा. कसाब को फांसी की सजा पर मुहर लगाने के मामले की सुनवाई मंगलवार को पूरी हो गई. विशेष अदालत कसाब को मौत की सजा सुना चुकी है लेकिन इस फैसले के खिलाफ अपील पर बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई हो रही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार

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