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फ़ोटोग्राफ़ी में 'क्रांति' लाने वालों को नोबेल

६ अक्टूबर २००९

इस बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं चार्ल्स काओ, विलर्ड बॉयल और जॉर्ज स्मिथ. इन तीनों को ऐसी खोजों के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है जिन्होंने फ़ोटोग्राफ़ी में क्रांति ला दी है.

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चार्ल्स काओतस्वीर: AP

75 वर्ष के चार्ल्स काओ का जन्म शंघाई में हुआ था, नागरिकता ब्रिटेन और अमेरिका दोनों की है और अब रहते हांगकांग में हैं. विलर्ड बॉयल कनाडा में पैदा हुए थे, 85 साल के हैं और अमेरिका तथा कैनडा दोनों के नागरिक हैं. जॉर्ज स्मिथ जन्म और नागरिकता से अमेरिकी हैं और अब 79 साल के हो गये हैं. बॉयल को जब नोबेल पुरस्कार पाने की ख़बर मिली तो उन्होंने कहा, "मैंने अभी सुबह की कॉफ़ी तक नहीं पी है."

तीनों पुरस्कार विजेताओं की उनकी खोजों को भी काफ़ी समय हो गया है. चार्ल्स काओ ने 1966 में ग्लास फ़ाइबर यानी कांच के रेशे में से प्रकाश के प्रसरण का मार्ग प्रशस्त किया था. उन्हीं की खोज के आधार पर आज ऐसे ग्लास फ़ाइबर केबल बनाना संभव हो सका है, जो तांबे के तार वाले केबल के मुक़ाबले हज़ारों गुना अधिक कुशलता के साथ डिजल सूचना संकेत आगे बढ़ा सकते हैं. कंप्यूटर और इंटरनेट के लिए जब ब्रॉडबैंड केबल की बात होती है, तब आशय ग्लास फ़ाइबर केबल से ही होता है. समय के साथ यही केबल सूचना तकनीक की रीढ़ बन जायेगा. आधी पुरस्कार राशि चार्ल्स काओ को अकेले मिलेगी.

बाक़ी आधी धन राशि, यानी 7 लाख 10 हज़ार डॉलर विलर्ड बॉयल और जॉर्ज स्मिथ के बीच बांट दिए जायेंगे. दोनों ने एक ऐसे सेमीकंडक्टर चित्रांकन सर्किट का विकास किया, जिसके आधार पर 1969 में प्रकाश को बिजली के संकेतों में बदलने वाले सीसीडी सेंसर का निर्माण संभव हुआ. सीसीडी का पूरा नाम है चार्ज-कपल्ड डिवाइस. वह इलेक्ट्रॉनिक "आंख" के समान एक ऐसी चिप है, जो आजकल के हर डिजिटल कैमरे या वीडियो कैमरे में लगी होती है और लेंस से आ रहे प्रकाश को चित्रबिंदुओं में बदलती है. सीसीडी के चलते ही कैमरे लगातार छोटे, हल्के और अधिकाधिक सक्षम होते गए हैं.

स्वीडन की नोबेल पुरस्कार समिति ने अपनी घोषणा में तीनों विजेताओं को प्रकाश का ऐसा माहिर बताया है, जिनकी खोजों ने "फ़ोटोग्राफ़ी में क्रांति ला दी" है. समिति के एक सदस्य प्रो. लार्स बेर्ज़श्ट्रौएम ने कहा, "हमारे लिए केवल वह प्रभाव निर्णायक था, जो इन तीनों ने अपनी खोजों से पैदा किया है."

रिपोर्टः एजेंसियां/राम यादव

संपादनः ए कुमार