फटने को तैयार कांपी फ्लेगराई
१४ अक्टूबर २०१७इटली के खूबसूरत शहर नेपल्स के करीब एक ऐसी अजीबो गरीब जगह है, जहां दिन रात धुआं उठता रहता है. यहां हर वक्त ज्वालामुखी के फटने का खतरा बना रहता है. वैज्ञानिक समझना चाह रहे हैं कि यहां की जमीन के नीचे आखिर ऐसा क्या है, जो इस इलाके को इतना खतरनाक बनाता है. वे अक्सर आने वाले भूकंपों पर नजर रखते हैं और सैटेलाइटों की मदद से विशाल ज्वालामुखी की ऊपरी सतह पर होने वाले बदलावों की जांच करते हैं. पिछले 10 सालों में कांपी फ्लेगराई करीब आधा मीटर ऊंचा हो गया है.
वैज्ञानिक जानना चाहते हैं कि क्या ज्वालामुखी फटने के करीब है. इसके लिए वे ज्वालामुखी के अंदर से निकलने वाली गैसों का भी अध्ययन कर रहे हैं. अंदर से निकलने वाली कार्बन मोनोक्साइड की मात्रा पिछले 15 सालों में बढ़कर चौगुनी हो गयी है.
भूगर्भ विज्ञानी जोवानी चियोदिनी कहते हैं, "हमें कार्बन मोनोक्साइड का बढ़ना चिंतित कर रहा है. क्योंकि यह गैस तापमान पर निर्भर करती है. तापमान जितना ज्यादा होगा, उतनी ही गैस बनेगी. कार्बन मोनोक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा यह भी दिखाती है कि सिस्टम गर्म हो रहा है."
यहां कार्बन मोनोक्साइड का बढ़ना चिंता की एकमात्र वजह नहीं है. अंदर से बाहर निकलने वाली भाप की मात्रा भी काफी बढ़ गयी है. और गैसों का तापमान भी बहुत बढ़ गया है. जोवानी चियोदिनी का मानना है कि गैसों के व्यवहार में बदलाव का कारण मैग्मा हो सकता है, "हम समझते हैं कि यहां मैग्मा की गैसों की हलचल का मामला है. इस समय हम एक ऐसे चरण में हैं जब मैग्मा बड़ी मात्रा में तरल छोड़ता है. यह तरल हाइड्रोथर्मल सिस्टम में आता है जो ज्वालामुखी के ऊपरी हिस्से में होता है और यहां से बाहर निकलता है."
(कितना जानते हैं आप ज्वालामुखी के बारे में)
ये हाइड्रोथर्मल सिस्टम पत्थरों और पानी की परत होती है जो ज्वालामुखी के ऊपरी हिस्से, काल्डेरा का निर्माण करती है. मैग्मा यदि ऊपर चढ़ता है तो दबाव कम होता है. इस दौरान गैस बाहर निकलती है और मैग्मा ऊपरी सतह की ओर आता है. ज्वालामुखी फटेगा या नहीं, ये मैग्मा से निकली गैसों के बर्ताव पर निर्भर करता है.
जोवानी चियोदिनी इसे समझाते हुए कहते हैं, "गैस के बाहर निकलने की प्रक्रिया को सोडा वाटर की बोतल से समझा जा सकता है. जब उसे खोला जाता है तो दबाव खत्म होने की वजह से गैस पानी से निकल कर बाहर जाने लगती है. यहां भी हम यही प्रक्रिया देखते हैं. यहां तरल पानी नहीं है बल्कि मैग्मा है."
एक कंप्यूटर मॉडल की मदद से जोवानी पता करते हैं कि मैग्मा से निकली गैस, ऊपरी सतह पर पानी और पत्थरों के सिस्टम पर कैसा असर डालती है. मॉडल में ऊपर चढ़ता मैग्मा एक क्रिटिकल प्वाइंट पर पहुंचता है जहां से वह रुक रुक कर धक्के के साथ बड़ी मात्रा में सतह की ओर भाप छोड़ता है. पत्थरों की परत लगातार गर्म होती जाती है, इसके साथ वह कमजोर और अस्थिर होती जाती है. मॉडल में अंत में यह परत टूट पड़ती है और ज्वालामुखी फूट जाता है.
कांपी फ्लेगराई के बारे में चियोदिनी कहते हैं, "यहां इसका फूटना तबाही भरा हो सकता है, क्योंकि पिछले समय में यूरोप या भूमध्य सागर के इलाके में कुछ बड़े धमाके हुए हैं. और ये ज्वालामुखियों पर काम करने वाले लोगों के समुदाय का बड़ा प्रयास है कि ज्वालामुखी के संकेतों को बेहतर तरीके से समझा जा सके."
कोई नहीं बता सकता है कि कांपी फ्लेगराई में अगला विस्फोट कब होगा. लेकिन रिसर्चरों को लगता है कि खतरा काफी करीब सामने है.
(यूं बनती हैं गुफाएं)
याकोब क्नेसर/एमजे