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पूर्वाग्रहों में दबे सिंती रोमा बंजारे

२४ अक्टूबर २०१२

जर्मन सरकार ने नाजी जनसंहार में मारे गए सिंती और रोमा समुदाय के लोगों के लिए एक स्मारक बनाया है. बंजारों के इन समुदायों के दर्द को इस तरह मान्यता देने की कोशिश की जा रही है.

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तस्वीर: Pf. F.-M. Theuer/H. Schmeck

"अगर स्मारक अब खुलता है तो इसमें दुख की बात यह होगी कि उस वक्त के पीड़ितों में जिंदा बचे लोग इसे निजी तौर से नहीं देख पाएंगे." यह शब्द सिल्वियो पेरितोरे के हैं जो जर्मनी में सिंती और रोमा समुदायों के संगठन के वरिष्ठ प्रतिनिधि है. जर्मन सरकार ने नाजियों द्वारा सिंती और रोमा समुदायों के जनसंहार को बहुत देर से स्वीकार किया. कुछ लोगों के लिए यह वक्त कुछ ज्यादा ही था. मिसाल के तौर पर फ्रांत्स रोजेनबाख के लिए जिन्हें नाजी यातना शिविर आउशवित्स भेजा गया और उसके बाद से वे स्मारक के लिए अपनी आवाज उठाते रहे हैं. आज रोजेनबाख मौत के कगार पर हैं.

हाइडेलबर्ग की प्रदर्शनी सिंती और रोमा लोगों के जनसंहार की कहानी बताती है. 1997 से चल रही प्रदर्शनी में एक साल बाद पेरितोरे शामिल हुए और दस्तावेजों पर काम किया. "कई स्मारकों में सिंती और रोमा के जनसंहार को यहूदियों के जनसंहार के दौरान एक छोटे हादसे के रूप में पेश किया गया है क्योंकि इस मुद्दे पर शोध भी नहीं किया गया और कई बार जानबूझकर अनदेखी की गई." बात वैसे जनसंहार में मारे गए लोगों की संख्या की नहीं है. यूरोप के 60 लाख यहूदी मारे गए और वहीं सिंती और रोमा की संख्या पांच लाख थी. तो फिर स्मारक में खास बात क्या है?

Denkmals für die Sinti und Roma
स्मारकतस्वीर: dapd

कठिन सवाल, जटिल जवाब

पेरितोरे कहते हैं कि इस स्मारक में पीड़ितों को मान्यता मिली है, यह उस इतिहास के प्रति जिम्मेदारी दिखाता है जो नाजियों के कत्ल ए आम से बना. लेकिन पहले ही की तरह सिंती और रोमा अब भी एक अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं जिन्हें मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाता है. उसलिए इस समुदाय के पीड़ितों को पीड़ितों के रूप में मान्यता नहीं दी गई. फ्रांत्स रोजेनबाख जैसे लोगों को यही सवाल परेशान कर रहा था, "वह अपने आप से पूछते हैं, वह ऐसा क्यों नहीं चाहते." यह वह लोग हैं जो जर्मनी में मुख्यधारा का हिस्सा हैं.

हर साल करीब 15,000 लोग जनसंहार की प्रदर्शनी को देखने हाइडेलबर्ग आते हैं. स्कूल के बच्चे, छात्र और यहां तक कि पुलिसकर्मी भी, जिन्हें अपने काम के दौरान "आपराधिक" बंजारों का सामना करना होता है. आर्मिन उल्म दस्तावेज केंद्र में काम करते हैं. उनका कहना है कि सिंती और रोमा बंजारों के खिलाफ पूर्वाग्रह बहुत पुराने हैं. यह 14वीं और 15वीं शताब्दी से है जब से यह बंजारे यूरोप में आना शुरू हुए. उनकी कुछ सकारात्मक छवि भी बनी, ओपेरा और किताबों के जरिए, लेकिन अब भी बंजारों को चोरों और ज्योतिषियों के रूप में देखा जाता है.

Sinti in Köln
संगीत प्रेमतस्वीर: DW

आधुनिक समाज में बंजारे

सिल्वियो पेरितोरे यह जानना चाहते हैं कि जर्मनी जैसे प्रगतिशील समाज में लोग अब भी बंजारों के बारे में पुराने पूर्वाग्रहों को कैसे पाल सकते हैं. यूरोप में करीब 20 लाख सिंती औऱ रोमा लोग रहते हैं और आज भी कई देशों में उन्हें समाज से अलग रखने की कोशिश की जाती है. पेरितोरे के मुताबिक हंगरी, रोमानिया, चेक गणराज्य और स्लोवाकिया जैसे देशों में आज भी उनके खिलाफ मानवाधिकार हनन होते हैं. वे स्वास्थ्य, शिक्षा और नौकरी जैसी सुविधाओं का फायदा नहीं उठा सकते हैं. जहां तक यूरोपीय संघ से सहयोग का सवाल है, उन पैसों को मूलभूत संसाधनों में तो लगाया नहीं जाता और वह कहां जाते हैं, इसका भी पता नहीं.

पेरितोरे का कहना है कि जहां भी रोमा और सिंती को बाकी लोगों की तरह सामान्य अधिकार और मौके मिले हैं, वहीं वह समाज के सदस्य बने हैं. "यह उन लोगों के पूर्वाग्रहों को गलत साबित करता है जो कहते हैं कि सारे प्रोग्राम और प्रोजेक्ट बेकार हैं क्योंकि इन लोगों की संस्कृति इसके खिलाफ है. इससे इन दावों को खत्म किया जा सकेगा क्योंकि लोग देखेंगे कि जब लोगों को एक मौका मिलता है तो वह कैसे आगे बढ़ते हैं."

रिपोर्ट: बिर्गिट गोएर्ट्स/एमजी

संपादन: महेश झा

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