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पूर्व नात्सी युद्ध अपराधी के ख़िलाफ़ सुनवाई

३० नवम्बर २००९

जर्मनी में आज 89 वर्ष के एक ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा शुरू हुआ, जिस पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान करीब 28 हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार देने में शामिल होने का आरोप है.

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तस्वीर: picture-alliance / dpa

हो सकता है कि किसी भूतपूर्व नाज़ी युद्ध अपराधी के विरुद्ध यह अब तक का अंतिम मुकदमा साबित हो. संदिग्ध नाज़ी युद्ध अपराधी यान देम्यान्युक पर यह मुकदमा बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में शुरू हुआ. उसे वर्षों लंबी खींचतान के बाद इसी वर्ष अमेरिका से जर्मनी लाया गया था.

नाज़ी कालीन अपराधियों का पता लगाने के लिए कोलोन में बना केंद्रीय कार्यालय इस समय केवल एक और संदिग्ध नाज़ी युद्ध अपराधी का सुराग पाने में लगा है. नाम है आलोइस ब्रुनर. यदि वह ज़िंदा है, तो उसकी आयु 97 साल होनी चाहिये. यान देम्यान्युक मूल रूप से यूक्रेनी है. उस पर आरोप है कि जब मार्च से लेकर सितंबर 1943 तक वह सोबिबोर यातना शिविर में पहरेदार था, तब उसने 27.900 लोगों को मौत के घाट उतार देने में हाथ बंटाया था. मुकदमे की मुख्य अभियोजक बर्बरा स्टोकिंगर ने उस के बारे में कहाः

देम्यान्युक सोबिबोर यातनाशिविर के पहरेदार के तौर पर यहूदियों का सफ़ाया कर देने के अभियान से जुड़ा हुआ था. यहूदियों से भरी गाड़ियां जब भी वहां पहुंचती थीं, तब बिना किसी झंझट के उनको मारने के लिए बने गैस चैंबरों में उन्हें पहुंचाना उसका काम था. सोबिबोर शिविर यहूदियों को केवल मौत के घाट उतार देने के लिए बना था, जब कि आउशवित्स जैसे कई दूसरे शिविर बंदियों से कड़ी मेहनत कराने और काम करा करा कर मार डालने के लिए बने थे.

देम्यान्युक युद्ध के बाद अलग-अलग देशों में नाम बदल कर लुकता-छिपता रहा. यहां तक कि वह इस्राएली न्यायविभाग को भी चकमा देने और वहां एक मुकदमें में बरी हो जाने में सफल हो गया और उसके बाद अमेरिका में रहने लगा. वहां फोर्ड कार कारख़ाने में काम करता था, चर्च में बाकायदा प्रार्थना करने जाया करता था और अपने तीन बच्चों को पाल कर बड़ा कर रहा था.

89 वर्ष का देम्यान्युक अब पहियाकुर्सी से लग गया है लेकिन अपना कोई अपराध मानने के लिए अब भी तैयार नहीं है. बहुत से लोग उसकी ऊँची आयु पर तरस खा कर उसे क्षमा कर देने का समर्थन करते हैं, पर उसके हाथ मारे गये लगों के परिवार कहते हैं, जिसने हमारे लोगों की उम्र छीन ली, उसकी ऊंची उम्र पर भला हम कैसे तरस खायें!

रिपोर्ट: एजेंसिंया/राम यादव

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य