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क्या पाकिस्तान वाकई बदल रहा है?

२९ अप्रैल २०१९

आर्थिक मोर्चे पर कमजोर स्थिति से गुजर रहा पाकिस्तान दुनिया के सामने एक साफ-सुथरी छवि पेश करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है. वहीं जानकार पाकिस्तान के दावों और इरादों पर संदेह जता रहे हैं. जानते हैं संदेह के कारण.

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China Imran Khan beim Second Belt and Road Forum
तस्वीर: Pakistan Prime Minister Press Office

पाकिस्तान सरकार ऐसा भरोसा दिलाना चाहती है कि देश किसी बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार विदेशी पत्रकारों के हालिया पाकिस्तान दौरे के दौरान देश के प्रधानमंत्री इमरान खान, सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और अन्य सरकारी अधिकारी अपने बयानों और संदेशों में यही कहने की कोशिश करते रहे. कुछ टिप्पणियों को आधिकारिक रूप से छापा गया तो कुछ नहीं छापी गईं. लेकिन सारे बयानों में एक ही संदेश था. यही कि पाकिस्तान विवादों से थक गया है, पाकिस्तान चरमपंथ के खिलाफ है, पाकिस्तान शांति वार्ताओं के लिए तैयार है और ही पाकिस्तान भ्रष्टाचार से लड़ रहा है.

जोर इस बात पर दिया गया कि पाकिस्तान की सत्ता को सेना नहीं, बल्कि राजनीतिज्ञ चला रहे हैं और इसमें सेना उनका साथ दे रही है. सुनने में यह बेहद अच्छा लगता है. लेकिन बस एक समस्या है. जो भी पाकिस्तान और उसके मुद्दों को करीब से जानते हैं, वे ऐसे बदलावों और पहल पर भरोसा करने में कतराते हैं.

भारत भी पकिस्तान पर यकायक भरोसा कर लेगा, ऐसा तो नहीं लगता. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "पाकिस्तान को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में चल रहे आतंकवादी गुटों पर विश्वसनीय और तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए." उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, आतंकवादी गुटों द्वारा भारत में आतंकवादी हमलों के बाद अमूमन एक सी बात कहता है, जिसका मकसद सिर्फ अंतरराष्ट्रीय दबाव को कम करना होता है. इसके बाद वह वापस अपने ढर्रे पर लौट आता है और आतंकवादी गुट पाकिस्तान से ऑपरेट करते रहते हैं.

क्या है मजबूरी

अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या है जो पाकिस्तान को इस बदलाव के लिए मजबूर कर रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इस्लामाबाद को फौरी तौर पर दोस्तों की जरूरत है. पाकिस्तानी अधिकारी कहते हैं कि भारत पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स से ब्लैकलिस्ट करवाने के लिए पैरवी कर रहा है. यह टास्क फोर्स इस बात की निगरानी करती है कि क्या देश मनी लॉड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास हो रहे हैं. अगर पाकिस्तान ब्लैकलिस्ट हो जाता है तो उसकी बैंकिंग व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है.

Pakistan Fastenbrechen Eid al-Fitr
तस्वीर: DW/I. Jabeen

पाकिस्तान की मजबूरी के अगर और कारण खंगाले जाएं तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भूमिका भी इसमें अहम नजर आती है. दरअसल पाकिस्तान देश में बढ़ रहे बजट और चालू खाते के घाटे से निपटने के लिए आईएमएफ से मिलने वाले बेलआउट पैकेज के करीब है. हालांकि पाकिस्तानी अधिकारी कहते हैं कि दुनिया जिन बदलावों की बात कर रही है, उसका आईएमएफ के पैकेज से कोई खास लेना-देना नहीं है. इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार लगातार कह रही है कि वह हर मोर्चे पर शांति कायम करने के लिए प्रतिबद्ध है.

अफगानिस्तान मसले पर तालिबान और अमेरिका को एक टेबल पर लाने में पाकिस्तान की भूमिका अहम है. ईरान यात्रा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का सीमावर्ती इलाकों के लिए एक संयुक्त बल बनाने जैसे मुद्दे पर सहमति बनाना इसी शांति पहले के उदाहरण बताए जा रहे हैं.

शांति प्रक्रिया की ओर कदम

पाकिस्तान प्रशासन लगातार दावा कर रहा है कि वह अपनी जमीन पर चरमपंथी ताकतों पर नकेल कस रहा है, क्योंकि भविष्य में चरमपंथ उसके लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है. इसी मुहिम के तहत देश के 32 हजार ऐसे मदरसों पर भी कार्रवाई की गई जो भविष्य में चरमपंथियों को पैदा कर सकते थे. प्रधानमंत्री इमरान खान का कहना है, "अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते नहीं, बल्कि देश के भविष्य के लिए हम अपनी जमीन पर आंतकी गुटों को पनाह नहीं देंगे. इस काम में सेना और खुफिया एजेंसी सरकार का पूरा साथ दे रही हैं."

वहीं सेना भी कह रही है कि वह 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को गरीबी के दलदल से बाहर लाना चाहती है इसके लिए इंजीनियरिंग और शिक्षा पर खर्च अहम है. पाकिस्तान यात्रा के दौरान विदेशी पत्रकारों को सेना की ओर से बनाए गए मॉर्डन स्कूलों में घुमाया गया. साथ ही एक रिहेबिटिलेशन सेंटर भी दिखाया गया जो टीनएजर्स में फैल रही चरमपंथी सोच से निपटने के लिए बनाया गया है.      

इमरान खान द्वारा पेश की जा रही बदलाव की तस्वीर उस वक्त कुछ अटपटी लगने लगती है जब असद उमर को देश के वित्त मंत्री के पद से हटा दिया जाता है. वहीं एजाज शाह को देश का नया गृह मंत्री बनाया जाता है, जो सैन्य ताकतों के करीबी माने जाते हैं. लंबे वक्त से उनका नाम कई चरमपंथियों गुटों के साथ भी जोड़ा जाता रहा है.

विशेषज्ञों की राय

पाकिस्तान के ये कदम विशेषज्ञों को पाकिस्तान की नीतियों पर भरोसा करने से रोकते हैं. जानकार अब भी मानते हैं कि पाकिस्तानी सत्ता में अब भी सेना का बराबर का दखल है. पाकिस्तान में सुरक्षा मामलों से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र ने रॉयटर्स को बताया कि सरकार के पास चरमपंथी गुटों के खिलाफ कार्रवाई की कोई भी ठोस योजना नहीं है.

पाकिस्तान में 2013 से 2015 तक भारत के उच्चायुक्त रहे टीसीए राघवन कहते हैं, "पाकिस्तान सरकार की कैबिनेट फेरबदल, नए पाकिस्तान की अवधारणा को धुंधला करती है." इस मसले पर पाकिस्तान गृह मंत्रालय कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है. जानकार मानते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों में अगर पाकिस्तानन वाकई बदल रहा है, तो दुनिया को यह भरोसा दिलाने के लिए उसे काफी कुछ करना होगा. इसमें विदेशी पत्रकारों की पाकिस्तान यात्रा को बस एक शुरुआत ही माना जा सकता है.

एए/आईबी (रॉयटर्स)

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