पाकिस्तान में संकटः आगे क्या होगा
३ जनवरी २०११सत्ताधारी गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही एमक्यूएम का कहना है कि उसने पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए जाने के विरोध में सरकार से समर्थन वापस लिया है. अब संसद में प्रधानमंत्री गिलानी की सरकार 172 के जादुई आंकड़े से काफी पीछे चली गई है. अगर नए सहयोगी नहीं तलाशे गए तो सरकार की छुट्टी हो सकती है. इस नई राजनीतिक उथल पुथल ने कई सवालों को जन्म दिया है.
विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव
एमक्यूएम के विपक्ष में बैठने से सरकार नेशनल असेंबली में अल्पमत में आ गई है. ऐसे में विपक्ष संसद में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए दबाब बना सकता है. हालांकि इसका दारोमदार पूरी तरह विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) पर है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक हैं. लेकिन दूसरी ज्यादातर पार्टियों के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा रहता है. ऐसे में मौजूदा विपक्ष के नेतृत्व में नई सरकार के गठन की संभावना बेहद कम दिखाई देती है.
खासकर एमक्यूएम और पीएमएल (एन) के बीच तनाव बढ़ रहा है. मौजूदा सरकार का नेतृत्व कर रही पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) दूसरी छोटी पार्टियों को रिझाने की कोशिश कर सकती है ताकि बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा जुटाया जा सके. लेकिन फिलहाल इसकी संभावना भी कम ही दिखती है. ऐसे में समय से पहले चुनावों के आसार बनते हैं.
पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक संकट की वजह से देश में होने वाले निवेश पर बुरा असर पड़ेगा. पाकिस्तान को अपनी लचर अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) से 11 अरब डॉलर का ऋण लेना पड़ा है. साथ ही सरकार को तालिबान चरमपंथियों की तरफ से भी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. उग्रवादी हिंसा के कारण 2010 के पहले पांच महीनों के दौरान देश में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 20 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली.
एमएक्यूएम फिर सरकार में शामिल हो सकती है
एमक्यूएम काफी समय से सरकार में असहज साझीदार रही है. और अब आखिरकार उसने समर्थन वापल लेने की अपनी धमकी पर अमल कर ही दिया. ऐसे में उसका फिर से सरकार के साथ खड़ा होना मुश्किल दिखाई देता है. वैसे एमक्यूएम को फिर सरकार में वापस लाने के लिए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को बड़ा कदम उठाना होगा. इसके लिए तेल की कीमतों में होने वाले इजाफे को वापस लेना होगा. लेकिन यह कदम उठाना पाकिस्तान सरकार के लिए जरा मुश्किल है क्योंकि आईएमएफ बराबर वित्तीय अनुशासन की मांग कर रहा है.
जरदारी राजनीतिक कदम भी उठा सकते हैं. हो सकता है कि जरदारी को सिंध सरकार में गृह मंत्री और अपने नजदीकी सहयोगी जुल्फिकार मिर्जा को हटाना पड़े. मिर्जा एमक्यूएम के कटु आलोचक रहे हैं. पाकिस्तान की व्यापारिक राजधानी कराची में राजनीतिक रूप से एमक्यूएम का दबदबा है.
गिलानी को हटना पड़ सकता है
जरदारी के सहयोगी जमीयत-ए-उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई) को फिर से सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बनाने के लिए भी कोशिश कर रहे हैं. पिछले महीने ही जेयूआई ने अपने एक मंत्री को हटाए जाने के बाद सरकार से समर्थन वापस लिया है और अब वह विपक्ष में बैठी है. वैसे तालिबान की समर्थक जेयूआई जैसी छोटी पार्टियों को चुनावों में ज्यादा वोट नहीं मिलते हैं, लेकिन सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के जरिए वे लोगों की भावनाओं को भड़काने में पूरी तरह सक्षम हैं. ऐसे में सरकार उन्हें अनदेखा नहीं कर सकती है. जेयूआई के मुखिया मौलाना फजलुर्रहमान प्रधानमंत्री गिलानी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं.
वैसे अभी इस बात के कोई संकेत नहीं है कि गिलानी को हटाया जाएगा लेकिन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच बढ़ते मतभेदों के चलते ऐसी अटकलें हैं कि गिलानी की छुट्टी हो सकती है. कुछ जानकार कह रहे हैं कि अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने की बजाय गिलानी खुद इस्तीफा देना ज्यादा पसंद करेंगे. ऐसे में कुछ पुराने सहयोगी फिर से सरकार का साथ देने को तैयार हो सकते हैं.
सेना का हस्तक्षेप
यह बड़ी दूर की कौड़ी लगती है लेकिन इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता है. पाकिस्तान के इतिहास में आधे से ज्यादा समय तक देश में सेना का ही राज रहा है. अगर सेना के जनरलों को लगेगा कि सरकार नियंत्रण खो रही है तो वे कदम उठाने में जरा देर नहीं करेंगे. लेकिन इससे पाकिस्तान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धक्का लगेगा. इन हालात में बहुत से पश्चिमी दानदाता भी पाकिस्तान से मुंह फेर सकते हैं. खास कर पिछले साल विनाशकारी बाढ़ का सामना करने वाले पाकिस्तान को मदद की बहुत जरूरत है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा एम