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पाकिस्तान में ताकतवर होता सुप्रीम कोर्ट

१६ फ़रवरी २०१२

पाकिस्तान में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट नेताओं और सेना के बड़े मामले में खुल कर फैसले सुना रहा है. उससे लगता है कि देश के अंदर अब धीरे धीरे अदालत की ताकत बढ़ रही है. पाकिस्तान अमेरिका का प्रमुख साथी है.

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तस्वीर: Abdul Sabooh

देश की अदालत अभी किसी के प्रभाव में नहीं दिख रही है. कुछ लोगों का मानना है कि पाकिस्तान इस वक्त जिस स्थिति से जूझ रहा है, उसमें अदालत का किरदार बड़ा हो सकता है. पाकिस्तान छह दशक के अस्तित्व के दौरान अधिकतर सैनिक शासन में रहा है. जब भी वहां निर्वाचित सरकार रही है चुने हुए नुमाइंदों पर हमेशा भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं.

अमेरिका का मानना है कि लोकतांत्रिक और स्थिर पाकिस्तान उसके लिए बेहतर साबित होगा. लेकिन अगर वहां सत्ता स्थानांतरित होती है, तो वॉशिंगटन के लिए यह और भी बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है क्योंकि पाकिस्तान में आम तौर पर अमेरिका के खिलाफ भावनाएं तेज होती जा रही हैं. अमेरिका अब तक सीधे तौर पर सेना के साथ संपर्क में रहता था, जो उसके लिए रणनीतिक महत्व का भी था. लेकिन पिछले साल की घटनाओं के बाद पाकिस्तानी सेना और अमेरिका के रिश्ते खट्टे हुए हैं.

टिप्पणीकार सिरिल अलमीदिया ने पाकिस्तान के डॉन अखबार में लिखा है, "नए पाकिस्तान में आपका स्वागत है. यहां स्पष्ट सत्ता केंद्र नहीं हैं, नतीजे कम पक्के हैं और ऐसा कोई नहीं दिख रहा हो, जो एक समय में सबको साथ ला सके या बिखरा दे."

सोमवार को इसकी एक बानगी देखने को मिली. सुप्रीम कोर्ट ने देश के प्रधानमंत्री को अवमानना के मामले में कोई छूट नहीं दी और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का फैसला लिया. इसके बाद अदालत ने सेना से पूछा कि वे बताएं कि सात संदिग्ध चरमपंथियों को पिछले 18 महीने से उन्होंने बिना किसी आरोप के अत्यंत खराब स्थिति में क्यों रखा है. सरकार के कुछ समर्थकों ने इतना तक आरोप लगा दिया है कि अदालत सेना के इशारे पर काम कर रही है और सरकार गिराना चाहती है. और इन सबके पीछे पिछले साल का मेमोगेट कांड है, जिसके तहत आरोप है कि सरकार ने पाकिस्तान में सैनिक तख्ता पलट का अंदेशा जताते हुए अमेरिका से मदद मांगी थी.

Yousuf Raza Gilani Pakistan
तस्वीर: AP

लेकिन सरकारी पक्ष के इस दावे में कोई दम नहीं लगता और न ही कोई सबूत है. उलटे अगर अदालत सेना के खिलाफ भी कार्रवाई कर रही है, तो फिर इस दावे की हवा निकल जाती है. इसके अलावा जजों ने 15 साल पुराने उस मुकदमे की सुनवाई भी शुरू कर दी है, जिसमें आईएसआई पर आरोप है कि वह अपने फायदों के लिए राजनीतिक पार्टियों को पैसा मुहैया करा रही है.

अलमीदिया का कहना है, "हो सकता है कि किसी एक जगह पर अदालत, सरकार और सेना के हित मिल रहे हों. लेकिन अदालत का एजेंडा भी साफ है. इसे ऐसी जगह स्थापित करना है, जहां लोगों में इसका सम्मान और डर हो." सेना के खिलाफ अदालत की कार्रवाई को भी बड़ी बात समझा जा रहा है. अपने 65 साल के इतिहास में पाकिस्तान पर ज्यादातर सेना का शासन रहा है.

मौजूदा चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी 2000 में भी अदालत में थे, जब खुद इसी न्यायालय ने सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ के तख्ता पलट को सही करार दिया था. उनका कहना है कि अदालत दोबारा कभी ऐसा काम नहीं करेगी लेकिन उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि अगर सेना दोबारा सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करेगी तो उनका कदम क्या होगा.

पाकिस्तान की मीडिया ने सेना के प्रति अदालत के इस रुख का समर्थन किया है. हाल के दिनों में वहां मीडिया बहुत ताकतवर हुई है. पाकिस्तान की आम जनता भ्रष्टाचार से छुटकारा और तालिबान के हमलों से बचाव चाहती है. हालांकि लोकतांत्रिक सरकार पर अदालत ने जो कदम उठाया है, वह विवादों में घिर गया है. हो सकता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को कुछ दिन जेल में बिताने पड़ें. उन पर आरोप है कि अदालत के निर्देश के बाद भी उन्होंने देश के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार वाले मामले नहीं खोले हैं.

पाकिस्तान में जाने माने विश्लेषक हसन असकरी रिजवी का कहना है, "मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट हद पार कर गया है. पहले सेना सरकारें हटाती रहती थीं और अब अदालत यह काम कर रही है."

पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के जजों की बहाली राष्ट्रपति करता है. इसके लिए न्यायिक कमीशन की सिफारिश जजों के नाम देती है. जज 65 साल की उम्र तक पद पर बने रह सकते हैं.

अदालती कार्रवाइयों की वजह से पाकिस्तान मुख्य मुद्दे से भटक गया है. इनमें अर्थव्यवस्था को संभालना और तालिबान के खिलाफ संघर्ष प्रमुख है. इसकी वजह से अमेरिका भी पाकिस्तान को इस बात पर जोर नहीं दे पा रहा है कि वह अफगानिस्तान के मुद्दे पर अपना ध्यान केंद्रित करे.

समीक्षाः एपी/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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