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पाकिस्तान के लिए मदद जुटाने की कोशिशें तेज

१३ अगस्त २०१०

पाकिस्तान में आई भयानक बाढ़ के बाद सरकार बाढ़ पीड़ितों की मदद के प्रयासों को बढ़ा रही है तो जर्मन राहत संस्थाओं ने शिकायत की है कि उन्हें उदारता से चंदा नहीं मिल रहा है.

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तस्वीर: AP

बाढ़ से निबटने के उपायों पर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के बीच दो घंटे की बातचीत के बाद राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा है कि बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सरकार अपने प्रयासों में और तेजी लाएगी. पाकिस्तान का बहुत बड़ा इलाका पानी में डूबा है और लोग घिरे हुए हैं. उन्हें पर्याप्त मदद नहीं मिल पा रही है. प्रधानमंत्री गिलानी ने कहा है कि नुकसान अब तक के अनुमानों से कहीं अधिक होने की आशंका है.

जरदारी और गिलानी ने बाढ़ पर प्रांतीय सरकारों के प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों की बैठक बुलाने का फैसला भी किया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार बाढ़ में कम से कम 1384 लोग मारे गए हैं जिनमें एक हज़ार से अधिक पश्चिमोत्तर प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में हैं.

इस बीच संयुक्त राष्ट्र ने आशंका जताई है कि बाढ़ग्रस्त इलाकों में जारी भारी वर्षा के कारण मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है. विश्व खाद्य प्रोग्राम के पाकिस्तान के लिए जिम्मेदार प्रतिनिधि वोल्फगांग हैरबिंगर ने खाद्य पदार्थों की कमी होने की आशंका भी जताई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार एक करोड़ 40 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं जिनमें से 60 लाख को फौरी मदद की जरूरत है.

अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए अपनी फौरी सहायता में 2.1 करोड़ डॉलर की वृद्धि की है. विदेश मंत्रालय ने वाशिंगटन कहा है कि इसके साथ अबतक बाढ़ पीड़ितों के लिए 7.6 करोड़ डॉलर की सहायता दी गई है. इस राशि का इस्तेमाल विभिन्न राहत संस्थाओं के जरिए लोगों तक खाद्य पदार्थ, पीने का पीनी और दवाएं पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. यह सहायता अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और पाकिस्तानी गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा बांटी जाएंगी. अमेरिकी सरकार इस पर नजर रखेगी कि पाकिस्तानी संस्थाओं का तालिबान से संबंध न हो.

जर्मन राहत संस्थाओं ने फिर से लोगों से बाढ़ पीड़ितों के लिए चंदा देने की अपील की है और कहा है कि वे चंदा देते समय पूर्वाग्रहों पर ध्यान न दें. राहत संगठनों का कहना है कि लोग बहुत उत्साह से चंदा नहीं दे रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान को युद्ध, आतंक और कभी न समाप्त होने वाले संकटों का देश समझा जाता है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ओ सिंह