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समाज

पाकिस्तान के मिट्ठी में हिंदू मुस्लिम रिश्तों की मिठास

९ अक्टूबर २०१८

पाकिस्तान के मिट्ठी शहर में भारत की तरह ही सड़कों पर घूमती गायें दिख जाती हैं. मुसलमान उन्हें नहीं मारते और वे बड़े आराम से सड़कों पर टहलती हैं. बहुत से लोग इस शहर को हिंदू-मुसलमान सौहार्द्र का प्रतीक मानते हैं.

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Pakistan Religion Muslim Hindu
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Tabassum

आमतौर पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक अपने साथ भेदभाव और मुश्किल हालात की शिकायत करते हैं. लेकिन मिट्ठी शहर में रहने वाले 72 साल के शाम दास कहते हैं, "यहां मुसलमान हिंदुओं की आस्था की इज्जत करते हैं. वे यहां गायों को नहीं मारते, अगर ऐसा होता भी है तो दूरदराज के इलाकों में, हिंदुओं के मुहल्लों में नहीं." पाकिस्तान से अलग मिट्ठी शहर की सड़कों में मवेशी बड़े आराम से रहते हैं, कचरे के डिब्बों से खाते या फिर सड़कों पर सोते नजर आते हैं. सड़कों पर चलने वाले रिक्शा और मोटरसाइकिल कभी उनके बीच से रास्ता बना कर चलते हैं तो कई बार बड़े संयम से उनके उठने का इंतजार करते हैं.

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मिट्ठी के मंदिर में महिलाएं और बच्चेतस्वीर: Getty Images/AFP/R. Tabassum

सिंध प्रांत में मिट्ठी मुख्य रूप से हिंदुओं का ही शहर है जहां 60 हजार लोग रहते हैं. करीब 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में यह शहर कई मामलों में अनोखा है. शहर में मौजूद श्रीकृष्ण मंदिर में घुसते ही हिंदू श्रद्धालु घंटी बजाते हैं और उसकी आवाज कुछ ही दूरी पर मौजूद मस्जिद की अजान से मिल जाती है. रंग बिरंगे मंदिर के भीतर कुछ हिंदू आराम से बैठक कर चर्चा में मसरूफ हैं और मंदिर के गेट पर कोई पहरेदार नहीं है. यहां से महज 300 किलोमीटर दूर कराची के किसी हिंदू मंदिर में आप जाएं तो वहां हथियारबंद गार्ड तैनात मिलेंगे. कराची में एक मंदिर के पुजारी विजय कुमार गिर बताते हैं कि इस विशाल शहर में 350 से ज्यादा मंदिर हैं लेकिन अब तो बस दर्जन भर ही ऐसे हैं जिनमें पूजा पाठ हो रही है. वह बताते हैं, "ज्यादातर मंदिर बंद कर दिए गए हैं और उनकी जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा कर लिया है."

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मिट्ठी के मंदिर में पूजा अर्चनातस्वीर: Getty Images/AFP/R. Tabassum

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग से जुड़ी मारवी सिरमेद बताती हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं को जो कुछ झेलना पड़ रहा है, वह इससे कहीं ज्यादा बुरा है. अकसर उन्हें, "उनके धर्म के कारण भारत परस्त मान लिया जाता है, इसलिए उन्हें पाकिस्तान विरोधी समझ कर संदेह की नजरों से देखा जाता है." मानवाधिकार आयोग पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति को "चिंताजनक" मानता है और उसने अपनी सालाना रिपोर्ट में लिखा है, "अगर उनके खिलाफ भेदभाव इसी तरह जारी रहा तो भारत के लिए उनका प्रवासन जल्दी ही पलायन में बदल जाएगा."

एचआरसीपी ने धार्मिक नेताओं के हवाले से लिखा है कि हिंदुओं की सबसे बड़ी समस्या लड़कियों और औरतों के "जबरन धर्मांतरण" की है. बहुत सी लड़कियों का अपहरण कर उनकी मुसलमानों से शादी कर दी जाती है. हालांकि मिट्ठी पर इन बातों का कोई असर नहीं दिखता. यहां हिंदू और मुसलमान मिल जुल कर रहते हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि त्योहारों के मौके पर दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे के जलसे में शरीक होते हैं और मिठाइयां और तोहफे भी बांटते हैं. 35 साल के कारोबारी सुनील कुमार बताते हैं, "जब से मैंने होश संभाला है, हिंदू और मुसलमान के बीच प्यार, सद्भाव और भाईचारा ही देखा है, यह हमारे पूर्वजों के जमाने से कई पीढ़ियों से चला आ रहा है... यह और आगे जाएगा."

मिट्ठी में दो समुदायों के प्रेमपूर्वक साथ रहने के पीछे इसकी भौगोलिक दशा और पुराना इतिहास भी है. यह शहर थारपारकर के शानदार रेतीले टीलों पर बसा है जिसकी सीमा भारत के राजस्थान से लगती है. स्थानीय रिसर्चरों का दावा है कि शांतिप्रिय हिंदुओं ने 16वीं सदी में तब इसकी नींव रखी थी जब चारों तरफ लड़ाई और लूटमार का बोलबाला था. यहां की जमीन उपजाऊ नहीं थी और पानी हासिल करना भी मुश्किल था. ऐसे में, इस जगह ने उन्हीं लोगों को आकर्षित किया जिनके पास ज्यादा विकल्प नहीं थे.

मिट्ठी में रहने वाले 53 साल के इमाम अल्लाह जुरियो कहते हैं, "हम इस इलाके के मूल निवासियों के वंशज हैं और उन्हीं की तरह सकारात्मक सोच वाले और शांतिप्रिय हैं, अहिंसा हमारी जन्मजात दूसरी प्रकृति है." इस शहर में अपराध भी कम है.

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मिट्ठी का कृष्ण मंदिरतस्वीर: Getty Images/AFP/R. Tabassum

हालांकि जिस तरह से पाकिस्तान में धार्मिक चरमपंथ और भड़काऊ भाषणों का बोलबाला बढ़ रहा है, उससे इस शहर के लोगों का मन भी आशंकित है. यहां रहने वाले 24 साल के कंप्यूटर साइंस के छात्र चंदर कुमार मिट्ठी के निवासियों की ओर से कोई समस्या नहीं देखते लेकिन उन्होंने यह भी कहा, "कुछ बाहरी तत्व हैं जो भेदभाव फैलाने की इच्छा रखते हैं. वे यहां की एकता को खत्म करना चाहते हैं."

जमात उद दावा जैसे आतंकवादी संगठन इस इलाके में सक्रिय होने की कोशिश कर रहे हैं.

एनआर/एके (एएफपी)

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