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पाक पत्रकारों को मानवाधिकार पुरस्कार

२९ अक्टूबर २०१२

जर्मन संस्थान फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन अपने मानवाधिकार पुरस्कार के जरिए उन संगठनों को बढ़ावा देना चाहता है जो पाकिस्तान के कबायली इलाकों में खतरे से जूझते पत्रकारों का सहयोग करती है.

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तस्वीर: DW/Shakoor Rahim

ट्राइबल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स टीयूजे में शामिल 250 पत्रकार पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सरहदों से अपनी जान पर खेलकर खबरें लिखते हैं, अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मीडिया के लिए. फ्रीडरिश एबर्ट फाउंडेशन के कॉन्स्टांटीन बावाल्ट कहते हैं, "टीयूजे के पत्रकारों ने अपनी जान पर खेलकर हिम्मत दिखाई है और विश्व को अफगान पाकिस्तान सरहद के 'काले कुएं' के बारे में जानकारी देने में मदद की है."

खतरों के खिलाड़ी

पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में फाटा प्रांत कबायली इलाका है. माना जाता है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से तालिबान और अल कायदा के लड़ाके यहां छिपे हुए हैं. अमेरिका का मानना है कि यह लड़ाके अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सैनिकों पर हमला करते हैं और इन इलाकों में अकसर आम जनता पर भी घातक हमले होते हैं. कुछ ही दिनों पहले खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में 14 साल की मलाला यूसुफजई पर घातक हमला हुआ था. यूसुफजई ने बीबीसी के लिए एक डायरी लिखी जिसमें उसने तालिबान के नियंत्रण में अपने शहर और वहां के जीवन के बारे में जानकारी दी थी. मानवाधिकार संगठन एम्नेस्टी इंटरनेशनल के विशेषज्ञ मुस्तफा कादरी के मुताबिक इस हमले से पता चलता है कि पश्चिमोत्तर पाकिस्तान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए कितना खतरनाक है. पत्रकारों को भी हमेशा तालिबान और लड़ाकू गुटों से खतरा रहता है.

स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया इसलिए कुछ ही पत्रकारों पर भरोसा रखती हैं जो अपनी जान को खतरे में डालकर उन तक खबरे पहुंचाते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में जीयो टीवी के नसीर तूफैल कहते हैं, "ज्यादातर पत्रकारों को कबायली इलाकों में जाने की इजाजत ही नहीं है." इसलिए तालिबान और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के बारे में सही जानकारी पाना इतना आसान नहीं है.

बुरी हालत

पाकिस्तान के कानून के मुताबिक अब भी फाटा इलाके में कोई भी स्वतंत्र मीडिया रिपोर्टिंग नहीं कर सकता है. इसलिए इलाके में काम कर रहे पत्रकारों को और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. टीयूजे के वरिष्ठ अधिकारी सफदर हयात दावर ने सरकार से मांग की है कि इलाके से निष्पक्ष जानकारी को बढ़ावा देने के लिए वहां कानूनों में बदलाव किए जाएं, "मैं उम्मीद करता हूं कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल करने के बाद कबायली इलाकों में पत्रकारों और मीडिया की स्वतंत्रता के लिए हालात बेहतर हों."

दावर कहते हैं कि फ्रीडरिष एबर्ट जैसी संस्थाएं इस बात को स्वीकार करती हैं कि विश्व के सबसे खतरनाक इलाकों से जानकारी भेजने की क्या अहमियत है लेकिन पाकिस्तान सरकार अभी तक इस बात को अनदेखा कर रही है. दावर अपने संगठन के जरिए पत्रकारों के लिए काम का बेहतर माहौल और इलाके में तैनात जानकारों के लिए जीवन बीमा की मांग करते हैं, लेकिन इस्लामाबाद में सरकार ने इन मांगों को खारिज कर दिया है.

कबायली इलाकों में काम कर रहे डीडब्ल्यू के रिपोर्टर फरीदुल्लाह खान कहते हैं कि वहां तैनात पत्रकारों को कम पैसे मिलते हैं और उन्हें सुरक्षा भी नहीं मिलती. इसके बावजूद वे इलाकों से जानकारी पूरी दुनिया तक पहुंचाते हैं. इसलिए फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन की तरफ से इनाम उनके लिए बहुत मायने रखता है.

सबसे खतरनाक देश

संयुक्त राष्ट्र सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने इस साल पाकिस्तान को दुनिया में पत्रकारों के लिए मेक्सिको के बाद पाकिस्तान को दूसरा सबसे खतरनाक देश बताया है. दक्षिण एशियाई पत्रकारों के संगठन सैफमा के मुताबिक इस साल दक्षिण एशिया में 17 पत्रकार मारे गए जिनमें से 12 ने पाकिस्तान में अपनी जान खोई. सैफमा के महासचिव इम्तियाज आलम कहते हैं कि आतंकवाद और इस्लामी कट्टरपंथियों पर खबरें लिखना पाकिस्तानी पत्रकारों को खतरे के घेरे में ले आता है. और पत्रकार की मौत के लिए कभी भी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया.

1994 से अब तक हर साल फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन संगठनों या व्यक्तियों को मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित कर रहा है. 31 अक्टूबर को बर्लिन में टीयूजे को औपचारिक तौर पर सम्मानित किया जाएगा.

रिपोर्टः शामिल शम्स/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

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