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पहले जगहँसाई, फिर जग-प्रसिद्धि

राम यादव१० अक्टूबर २००८

विज्ञान भी सामान्य जीवन से बहुत भिन्न नहीं है. कई बार जिस चीज़ के लिए पहले जगहँसाई होती है, बाद में उसी के लिए नोबेल पुरस्कार तक मिल सकता है. इस बार के चिकित्सा विज्ञान के नोबेल पुरस्कार इसका उदाहरण हैं.

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जर्मनी के हाराल्ड त्सुर हाउज़न ने गर्भाशय-कैंसर के वायरस की खोज कीतस्वीर: AP

चिकित्सा विज्ञान के इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार का पहला आधा हिस्सा जर्मनी के हाराल्ड त्सुअर हाउज़न (Harald zur Hausen) के और दूसरा आधा हिस्सा दो फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ल्युक मोंतानियेर ( Luc Montagnier) और फ्रौंसेस बारे-सिनौसी ( Francoise Barre'-Sinoussi) के बीच बाँट दिया जायेगा. तीनो वॉयरस अर्थात विषाणु वैज्ञानिक हैं. उनकी खोजों ने हमारे समय की दो ऐसी सबसे प्रणघातक बीमारियों से लड़ना संभव बनाया है, जो मुख्यतः यौन-संसर्ग द्वारा फैलती हैं.

जर्मनी के त्सुअर हाउज़न ने 1980 वाले दशक के आरंभ में गर्भाशय-मुख का कैंसर पैदा करने वाले पैपीलोम (Papillom) वॉयरस का और दोनो फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने, लगभग उसी समय, एड्स रोग पैदा करने वाले एचआई (HI) वॉयरस का पता लगाया था.

गर्भाशय-मुख का कैंसर

स्तन कैंसर के बाद गर्भाशय का कैंसर ही महिलाओं को होने वाला दूसरा सबसे प्रमुख कैंसर है. वैज्ञानिक लंबे समय से उसके कारणों के बारे में अटकलें लगा रहे थे. मान कर चल रहे थे कि वह हेर्पेस सिम्प्लेक्स(Herpes symplex) वॉयरस के कारण होता है. हाराल्ड त्सुअर हाउज़न ऐसे पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 1972 में यह परिकल्पना पेश की कि गर्भाशय का कैंसर हेर्पेस नहीं, मानवीय पैपीलोम वॉयरस HPV के कारण होता है. उन दिनों को याद करते हुए त्सुअर हाउज़न कहते हैं:

"हमारी खोज की बुनियाद थीं जननेंद्रियों में मस्से संबंधी पुरानी डॉक्टरी रिपोर्टें. उन्हीं पर हमारा कयास आधारित था और सौभग्य से सही भी साबित हुआ. लेकिन, 1972 से 1982 के बीच हमारे काम को बड़ें संशय के साथ देखा गया."

कारण है पैपीलोम वॉयरस

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नोबेल पुरस्कोरों के संस्थापक अल्फ़्रेड नोबेलतस्वीर: AP

पैपीलोम वॉयरस से आम तौर पर हर स्त्री-पुरुष का पाला पड़ता है. उसकी सौ से अधिक क़िस्में हैं. वह रतिक्रिया, अर्थात यौन-संसर्ग के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचता है. तब भी, सौभाग्य से हर महिला को गर्भाशय का कैंसर नहीं होता, क्योंकि 98 प्रतिशत मामलों में पैपिलोम वॉयरस का संक्रमण एक ही वर्ष में अपने आप ग़ायब हो जाता है. दूसरे शब्दों में, पैपीलोम की सभी क़िस्में कैंसर-जनक नहीं होतीं. उनकी दो कैंसर-जनक क़िस्मों की खोज का वर्णन हारल्ड त्सुअर हाउज़न इस प्रकार करते हैं:

"1960 वाले दशक के अंत और 70 वाले दशक के आरंभ में मैं प्रमाणित कर सका था कि मानवीय ट्यूमर की कतिपय विशिष्ट कोषिकाओं में पैपीलोम की आनुवंशिक सामग्री मिलती है. इसे प्रमाणित करने के लिए उस समय मैंने अपने साथियों के सहयोग से जो विधि विकसित की थी, उसी ने बाद में गर्भाशय-मुख के कैंसर के प्रसंग में भी ऐसी ही खोज संभव बनाया."

आज से तीन-चार दशक पहले के उस समय में अनुमान लगाया जा रहा था कि गर्भाशय के कैंसर के पीछे शायद हेर्पेस सिम्प्लेक्स-2 नाम के वॉयरस की प्रमुख भूमिका होती है.

"हमने ट्यूमर कोषिकाओं वाले कई नमूनों की छान-बीन की, लेकिन उनमें हेर्पेस की आनुवंशिक सामग्री के निशान नहीं पाये. मैं इस बीच अन्य संभावित वॉयरसों की खोज में लग गया था और ऐसी रिपोर्टें देखी थीं कि जननांग वाले मस्से कभी-कभी ख़तरनाक बन जाते हैं. इससे मुझे लगा कि जो वॉयरस जननांग वाले मस्सों में मिलते हैं, वे ही कैंसर का कारण बनते होंगे. हमें वर्षों का समय लगा उन्हें छाँटने और पहचानने में. थोड़ी-सी निराशा भी हुई कि वे गर्भाशय के कैंसर वाली कोषिकाओं में नहीं थे या अपवादस्वरूप ही थे. लेकिन, इन नमूनों ने हमें जैव-रासायनिक परीक्षणों में उन वॉयरस क़िस्मों को पाने में मदद दी, जो आज गर्भाशय-कैंसर की जड़ माने जाते हैं. ये हैं पैपीलोम वॉयरस 16 और 18 (HPV 16, HPV 18)."

पैपीलोम 16 और 18 शरीर की रोगप्रतिरक्षण प्रणाली को चकमा दे कर गर्भाशय-मुख की झिल्ली के भीतर घुस जाते हैं. वहाँ अपनी संख्या बढ़ाने के लिए कोषिकाओं की आनुवंशिक प्रोग्रैमिंग को बदल देते हैं. इससे गर्भाशय-मुख की झिल्ली पर हल्के-हल्के छाले पड़ जाते हैं, जिन्हें डॉक्टर कॉन्डिलोम (Condilome) कहते हैं. यही गर्भाशय-कैंसर की प्रारंभिक अवस्था है, जो समय के साथ कैंसर की जानलेवा रसौली बन सकती है.

मुश्किल उपचार

इस कैंसर का उपचार बहुत मुश्किल है. विश्वभर में हर साल पाँच लाख महिलाओं को यह कैंसर होता है और हर साल तीन लाख की मौत होती है.

इस बीच गर्भाशय कैंसर की रोकथाम का टीका भी बन गया है, यद्यपि उसकी कार्यकुशलता 70 प्रतिशत ही बतायी जाती है. टीके का इंजेक्शन लड़कियों को अपने पहले यौन-संसर्ग या वयःसंधि से पहले, यानी नौ से 15 वर्ष की आवस्था में ही ले लेना पड़ता है.

एड्स के वॉयरस की खोज

Luc Montagnier Nobel Preis für Medizin 2008
फ़्रांस के ल्युक मोंतानियेरतस्वीर: AP

यौन-संसर्ग से फैलने वाला गर्भाशय-कैंसर एक पुरानी बीमारी है, जबकि एड्स एक बिल्कुल नया रोग है. उसके पहले मामले 1981 की गर्मियों में देखे गये थे. अचानक ऐसे लोग बीमार पड़ गये, जो पहले पूरी तरह स्वस्थ थे. उनका शरीर छूत की मामूली बीमारियों से भी लड़ नहीं पा रहा था या शरीर में अजीब-अजीब गाँठें पड़ गयी थीं. बीमारी समलैंगिकों को ही नहीं, विषमलैंगिकों, रक्तस्रावियों और रक्ताधान कराने वालों को भी होने लगी. यह संकेत था इस बात का कि बीमारी का रोगाणु कोई बैक्टीरिया या विषैला पदार्थ नहीं, बल्कि वॉयरस यानी विषाणु होना चाहिये.

सुराग मिला लसिका ग्रंथियों से

फ्रांस में पेरिस के जगप्रसिद्ध पास्त्यौर (Pasteur) इंस्टीट्यूट के प्रोफ़ेसर ल्युक मोंतानियेर और उनकी प्रयोगशाला-सहयोगी फ़्रौंसेस बारे-सिनौसी ने वॉयरस वाली अवधारणा को ही अपनी खोज का आधार बनाया. उन्होंने ऐसे लोगों के रक्त व अन्य कोषिकाओं के नमूने लिये, जो अभी बीमार नहीं थे, पर उनकी लसिका ग्रंथियाँ सूजी हुई थीं. इसे रोगप्रतिरक्षण प्रणाली में कमज़ोरी आ जाने का लक्षण माना जाता है. उन्हें लसिका ग्रंथियों की कोषिकाओं में वॉयरस होने के प्रमाण भी मिले.

25 साल पहले इस तरह की खोज के उपयुक्त तकनीकी साधन भी बहुत कम थे. तब भी दोनो, तब तक अज्ञात एक नये वॉयरस को खोजने, अलग करने और पहचानने में भी सफल रहे. उनकी खोज 1983 में प्रकाशित हुई. शुरू में उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. उस समय कई अन्य वॉयरस-अवधारणाएँ भी चर्चा में थीं. इसीलिए एड्स वाले वॉयरस को एक नया नाम देने में भी समय लगा. उसे Human immunodeficiency virus (HIV) नाम कुछ वर्ष बाद मिला.

एड्स की पहली दवा

मोंतानियेर और बारे-सिनौसी की खोज की बलिहारी से 1987 में एड्स की पहली दवा बाज़ार में आयी. एड्स यद्यपि आज भी एक असाध्य रोग है, इस बीच उससे लड़ने की इतनी सारी दवाएँ बाज़ार में उपलब्ध हैं कि एड्स के रोगी अब एक-दो साल के बदले 10,15 या 20 साल और जी सकते हैं और लगभग सामान्य जीवन बिता सकते हैं. नोबेल पुरस्कार की घोषणा से कुछ ही दिन पहले ल्युक मोतानियेर ने कहा थाः

"वायरस की खोज बहुत महत्वपूर्ण है. नोबेल समिति को इसे स्वीकार करना चाहिये. यह तो एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है."

लेकिन, मोंतानियेर की सहयोगी और सह-विजेता फ़्रौंसेस बारे-सिनौसी को, जिन्हें अपने पुरस्कार की ख़बर कंबोडिया में मिली, इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि अमेरिका के रॉबर्ट गैलो (Robert Gallo) का नाम विजेता सूची में नहीं हैः

Francoise Barre-Sinoussi Nobel Preis für Medizin 2008
फ़्रास की ही फ़्रौंसेस बारे-सिनौसीतस्वीर: AP

"पुरस्कार के साथ जुड़ा है HI वॉयरस का पहचाना जाना. इसमें प्रोफ़ेसर मोंतानियेर और एक पूरी फ्रांसीसी टीम शामिल थी. इसे 25 साल हो गये हैं.... मैं चकित हूँ कि रॉबर्ट गैलो को भी साथ में पुरस्कार क्यों नहीं मिला. मेरी समझ में नहीं आता."

गैलो की दाल नहीं गली

गैलो विजेता-सूची में अपना नाम नहीं पा कर और भी निराश थेः

"मैं झूठा कहलाऊँगा यदि मैं कहूँ कि मैं निराश नहीं हूँ. मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. शायद मेरी उपेक्षा हुई है, क्योंकि मोंतानियेर और मेरे बीच एक सहमति हुई थी. मैंने पहला रिट्रोवयरस पाया था, तकनीक उपलब्ध की थी और सुझाव दिये थे. मैं निराश भी हूँ और चकित भी. लेकिन, यदि अन्य तीन लोग पुरस्कार के सुयोग्य हैं, तो यह भी ठीक है."

बताया जाता है कि गैलो ने एड्स वॉयरस की खोज अपनी बताने के लिए जो फ़ोटो पेश किया था, वह बाद में मोंतानियेर की प्रयोगशला में लिया गया फ़ोटो सिद्ध हुआ. दोनो के बीच यह सहमति भी हुई बतायी जाती है कि एड्स के वॉयरस की खोज का श्रेय मोंतानियेर और उनकी टीम को मिलेगा, जबकि गैलो एड्स टेस्ट की तकनीक विकसित करने का श्रेय पायेंगे. शायद इसीलिए गैलो पुरस्कार घोषणा के समय ख़ाली हाथ रह गये.