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अपराध

पहली बार हाई कोर्ट के जज के खिलाफ एफआइआर दर्ज करेगी सीबीआई

समीरात्मज मिश्र
१ अगस्त २०१९

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मंगलवार को एक ऐसा आदेश दिया जो भारतीय न्यायपालिका में इतिहास बन गया. जस्टिस गोगोई ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी.

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Oberster Gerichtshof Indien
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

सीबीआई ने लखनऊ बेंच के जस्टिस शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण कानून के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया है. उन पर एमबीबीएस कोर्स में दाखिले के लिए एक निजी मेडिकल कॉलेज को फायदा पहुंचाने का आरोप है. इस मामले में सीबीआई निदेशक ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को चिट्ठी लिख जस्टिस एसएन शुक्‍ला पर लगे आरोपों की जांच करने की इजाजत मांगी थी. यह पहला मौका है, जब किसी मौजूदा जज के खिलाफ सीबीआई जांच करेगी.

एसएन शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में नामांकन की तारीख बढ़ा कर कॉलेज की मदद की. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिज रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था. जिसमें जस्टिस एसएन शुक्ला को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने को कहा था. यही नहीं, पिछले साल जस्टिस दीपक मिश्रा भी प्रधानमंत्री को जस्टिस शुक्ला को हटाने के बारे में लिख चुके हैं.

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भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोईतस्वीर: Imago Images/Hindustan Times

मामला लखनऊ में कानपुर रोड स्थित प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से जुड़ा है. यह मेडिकल कॉलेज समाजवादी पार्टी के एक नेता बीपी यादव और पलाश यादव का बताया जाता है. साल 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया यानी एमसीआई ने मेडिकल संस्थान का निरीक्षण किया और यहां बुनियादी सुविधाओं को तय मानकों से कम पाया. इसके बाद प्रसाद इंस्टिट्यूट समेत देश के 46 मेडिकल कॉलेजों में मानक पूरे न करने पर नए प्रवेशों पर रोक लगा दी गई थी.

लेकिन इस आदेश के ख़िलाफ़ प्रसाद इंस्टिट्यूट की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने मेडिकल कॉलेजों को राहत नहीं दी. प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की गई. इस याचिका पर जस्टिस एसएन शुक्ला की बेंच ने सुनवाई की.

जस्टिस एसएन शुक्ला ने सुनवाई के बाद प्रसाद इंस्टीट्यूट को नए प्रवेश लेने की अनुमति दे दी. उनके इस फैसले को लेकर अन्य मेडिकल कॉलेजों के बीच हड़कंप मच गया और इस फैसले के बाद जस्टिस शुक्ला पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे कि उन्होंने किसी लाभ के तहत प्रसाद इंस्टीट्यूट के पक्ष में फैसला दिया.

दरअसल, जस्टिस शुक्ला ने जिस दिन प्रसाद इंस्टिट्यूट के पक्ष में फैसला दिया, उससे दो दिन पहले सीबीआई ने लखनऊ और अन्य जगहों पर छापेमारी की थी. इस मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस आईएम कुद्दूसी का नाम भी आया. आईएम कुद्दूसी के ठिकानों समेत, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मालिकों और उनसे जुड़े सात लोगों के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज किया.

वहीं साल 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने जस्टिस शुक्ला के आदेश पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने मद्रास हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीके जायसवाल की इनहाउस कमेटी से इन आरोपों की जांच कराई.

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. इस पैनल ने जस्टिस शुक्ला को अपने अधिकारों के दुरुपयोग का दोषी मानते हुए इनको पद से हटाए जाने की सिफारिश की.

जस्टिस दीपक मिश्रा ने एसएन शुक्ला को इस्तीफा देने या वीआरएस लेने की बात कही लेकिन एसएन शुक्ला छुट्टी पर चले गए. तब चीफ जस्टिस की ओर से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ संसद में महाभियोग लाने का प्रस्ताव दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील सुरत सिंह कहते हैं कि जस्टिस शुक्ला का मामला अपने आप में अभूतपूर्व है क्योंकि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में कभी किसी जज पर मुकदमा नहीं चलाया गया. उनके मुताबिक, यदि जस्टिस शुक्ला दोषी पाए गए तो उन पर पूरी प्रक्रिया के तहत महाभियोग भी चलाया जा सकता है. लेकिन जस्टिस शुक्ला को सिर्फ महाभियोक के जरिए ही हटाया जा सकता है कि क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने का सरकार के पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने जनवरी, 2018 से ही जस्टिस शुक्ला की न्यायिक सेवाओं पर रोक लगाने का आदेश दिया था. गोगोई ने पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ये सिफ़ारिश भी की थी कि जस्टिस शुक्ला को उनके पद से हटा दिया जाए.

हालांकि जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने की घटनाएं पहले भी हुई हैं और सरकारों को उन्हें महाभियोग के ज़रिए हटाने की सिफारिशें की गईं लेकिन अब तक महाभियोग के जरिए किसी जज को हटाया नहीं गया है.

इस ऐतिहासिक फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस रवींद्र सिंह का मानना है कि न्यायपालिका के लिए इस तरह की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं क्योंकि इससे न्यायपालिका में लोगों की आस्था घटेगी. हालांकि तमाम लोग इस फैसले का यह कहकर स्वागत कर रहे हैं कि यदि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है तो वह भी उजागर होना चाहिए और दोषियों को दंडित भी करना चाहिए.

जस्टिस श्रीनारायण शुक्ला ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में ही वकालत करने लगे थे. यूपी सरकार में वह अपर महाधिवक्ता भी रहे हैं. साल 2005 में एसएन शुक्ला को अतिरिक्त जज बनाया गया और दो साल बाद उन्हें हाई कोर्ट में स्थाई जज बना दिया गया. जस्टिस शुक्ला अगले ही साल रिटायर होने वाले हैं.

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