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पर्यावरण बचाने के लिए पेड़ों पर रहते युवा

३० दिसम्बर २०१७

जर्मनी में बिजली बनाने के लिए लिग्नाइट कोयले का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे यहां कुछ लोग खासे नाराज हैं. विरोध जताने के लिए कई युवाओं ने हामबाख के पास बाकी बचे जंगल में पेड़ों पर रहना शुरू कर दिया है.

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Deutschland - Besetzung des Hambacher Forsts durch Aktivisten
तस्वीर: DW/P. Große

जर्मनी के हामबाख में लिग्नाइट की खुदाई की वजह से आस पास का 1000 साल पुराना जंगल साफ कर दिया गया है. 21 साल की साशा (बदला हुआ नाम) छह महीने से यहां हामबाखर फॉरेस्ट में रह रही हैं. इस तरह पेड़ों में रहना गैरकानूनी है. ये जोखिम भरा हो सकता है. साशा कहती हैं, "यहां रह कर हम अपना विरोध जता रहे हैं. हां, पेड़ों में रहना और कुदरत से जुड़े रहना अच्छा तो लगता है लेकिन हमारे लिए यह विरोध का एक जरिया है. और हम यह भी जानते हैं कि हमें यहां से हटा दिया जाएगा. लेकिन मुझे फिर भी यकीन है कि इसका असर होगा. ऐसा भी नहीं कि हमें सिर्फ यहां से हटा दिया जाएगा, बल्कि हमें कैद होगी और हमें जेल भेजा जाएगा."

साशा की तरह ही एक्टिविस्ट इसे अपना आशियाना बना चुके हैं. गर्मी हो या सर्दी, वे यहीं रहते हैं. उनका मकसद है कंपनी को कोयले के खनन से रोकना. खराब किस्म के इस कोयले को लिग्नाइट या ब्राउन कोल कहा जाता है. विरोध कर रहे किम कहते हैं, "चालीस साल से यहां जंगल को काटा जा रहा है, चालीस साल से लोगों को यहां से बाहर निकाला जा रहा है, और चालीस साल से खदानों से होने वाले उत्सर्जन ने लोगों की सेहत को खतरे में डाला हुआ है. और यह सब कुछ कानून की नजरों में ठीक है लेकिन हम जो कर रहे हैं, यहां जंगल को नष्ट होने से बचा रहे हैं, वह गैरकानूनी है!"

खनन की मंजूरी

Köln Hambacher Forst  Menschenkette für Kohleausstieg
तस्वीर: DW/Gero Rueter

पेड़ों को बचाने के लिए इन्हें बहुत सी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. साशा और उनके साथी इस वन को जंगल के मालिक से ही बचाना चाह रहे हैं और मालिक है जर्मनी की बड़ी ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई. अकसर आरड्ल्यूई के सिक्योरिटी गार्ड इन लोगों को पेड़ों पर बने इनके घरों से बाहर निकाल देते हैं. ऊर्जा कंपनी का कहना है कि उसके पास खनन का अधिकार है, वह सरकार से अगले कई दशकों तक ब्राउन कोल के खनन की मंजूरी ले चुकी है.

कंपनी से जुड़े गीटो श्टेफेन कहते हैं, "हामबाखर फॉरेस्ट में पेड़ों पर चढ़कर विरोध करने वाले लोग अब लंबे समय तक ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि हमें वहां खनन की मंजूरी मिल गयी है. जलवायु संरक्षण जर्मन ऊर्जा नीति में इस बात का भी ख्याल रखा गया है कि जर्मनी जैसे घनी आबादी वाले औद्योगिक देश को ऊर्जा के विश्वसनीय और सस्ते स्रोत उपलब्ध रहें."  

सीओटू की सबसे बड़ी उत्सर्जक

ब्राउन कोल ऊर्जा बनाने का साफ तरीका नहीं है. कार्यकर्ताओं के मुताबिक अगर सरकार इसका इस्तेमाल करती है, तो वह पर्यावरण के लिए निर्धारित लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएगी. साशा बताती हैं, "यह खदान पूरे यूरोप में सीओटू की सबसे बड़ी उत्सर्जक है, इसका असर पूरी दुनिया पर होगा. मुझे राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद नहीं है कि वे कुछ भी बदलेंगे, इसलिए मुझे लगता है कि वक्त आ गया है कि हम भविष्य को खुद अपने हाथ में लें."

Köln Hambacher Forst  Menschenkette für Kohleausstieg
तस्वीर: DW/Gero Rueter

लेकिन यह संघर्ष केवल प्रतीकात्मक है क्योंकि हामबाखर फॉरेस्ट का अधिकतर हिस्सा बहुत पहले ही काटा जा चुका है. अब तक ना तो शिकायतों से ही कोई फर्क पड़ा है और ना पेड़ों में घर बनाने से. साल 2050 तक जर्मनी में ब्राउन कोल का इस्तेमाल जारी रहेगा. लेकिन साशा और किम हार मानने को तैयार नहीं. उनकी यह जंग कोयले तक ही सीमित नहीं है, वे लोगों के और प्रकृति के शोषण के खिलाफ लड़ रहे हैं. उनके लिए हामबाखर फॉरेस्ट इन दोनों का प्रतीक है. साशा कहती हैं, "एक तरफ यह खूबसूरत जंगल है, जहां सब हरा भरा और शानदार है. और दूसरी तरफ यह खदान, जहां कुछ है ही नहीं, एकदम सुनसान. मेरे लिए यह एक जंग की शुरुआत है, जिसमें हमें कई चीजों के खिलाफ लड़ना होगा." 
2022 तक जर्मनी में सभी परमाणु प्लांट बंद कर दिये जाएंगे. धीरे धीरे कोयले से भी दूर होने की योजना है. यानि भविष्य में यहां बिजली या तो पानी से बनेगी, या हवा और सूरज की गर्मी से. लेकिन ऐसा होने में अभी वक्त है. और जब तक बिजली बनाने की नयी तकनीक विकसित नहीं हो जाती, तब तक पुराने ही तरीकों से काम चलाना पड़ेगा.

अनाबेला लुत्स/आईबी