पर्यटकों के बोझ से हांफती पहाड़ियां
१२ जून २०१९भारी तादाद में पर्यटकों और उनके वाहनों का बोझ बढ़ने से पहाड़ियां कराह रही हैं और पर्यावरण संतुलन गड़बड़ाने लगा है. इलाके में मीलों लंबा ट्राफिक जाम लग रहा है और वाहनों को पार्क करने की जगह नहीं होने की वजह से कई किलोमीटर पहले ही उनको खड़ा करना पड़ रहा है. लगातार बढ़ती भीड़ इसके चलते पानी का संकट भी गंभीर हो हो रहा है. होटलों में जगह नहीं होने की वजह से सैकड़ों लोग कारों में और खुली जगहों पर सोने को मजबूर हैं.
हर जगह भीड़
पूर्वी भारत के सिक्किम और दार्जिलिंग जैसे पर्वतीय केंद्र हों या फिर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के, हर जगह एक जैसा नजारा है. इन पर्वतीय शहरों तक पहुंचने के लिए पहले तो घंटों ट्रैफिक जाम में खड़ा रहना पड़ता है और फिर उसके बाद किसी तरह पहुंचे भी तो न होटलों में जगह और न ही रेस्तरां में. पारा चढ़ने के साथ भारी गर्मी से निजात पाने के लिए कई लोग पहले से बुक किए बिना ही पहाड़ों पर पहुंच रहे हैं. लेकिन उनको यहां गर्मी से राहत भले मिल जाती हो, होटल या पार्किंग की जगह नहीं मिलती. नतीजतन सैकड़ों लोग अपनी कारों में या खुले में रात गुजार रहे हैं या फिर अपनी किस्मत को कोसते हुए वापस जा रहे हैं. दिल्ली से दार्जिलिंग पहुंचे किशोर कुमार सक्सेना कहते हैं, "उत्तराखंड व हिमाचल की पहाड़ियों की भारी भीड़ के वजह से मैंने सपिरवार दार्जिलिंग आने का फैसला किया था. लेकिन यहां भी नजारा वैसा ही है. सड़कों और माल चौराहे पर उमड़ने वाली भारी भीड़ दिल्ली के चांदनी चौक की याद दिला रही है.” वह बताते हैं कि एक छोटे से कमरे के लिए उनको तीन-गुना किराया देना पड़ रहा है.
सिक्किम की राजधानी गंगटोक और दूसरे पर्यटन केंद्रों में भी पर्यटकों की भारी भीड़ है. वहां पहुंचने वाले लोगों को न तो रहने की जगह मिल रही है और न ही घूमने के लिए जगह. कारों के साथ पहुंचने वालों को भी घंटों ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ रहा है. इसके अलावा उनको अपनी कारें होटलों से काफी दूर जाकर पार्क करनी पड़ रही है. मुंबई से यहां पहुंचे मोहन वाधवानी कहते हैं, "कार को पार्क करने के लिए आधे घंटे की दूरी तय करनी पड़ती है.”
हिमालयन हास्पीटैलिटी एंड टूरिज्म डेवलेपमेंट नेटवर्क के सचिव सम्राट सान्याल बताते हैं, "गंगटोक, दार्जिलिंग और कालिम्पोंग जैसे पर्यटन केंद्रों पर तमाम होटल पूरी तरह बुक हैं. अबकी बीते साल से ज्यादा पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं.” लेकिन इसकी वजह क्या है? इस सवाल पर वह बताते हैं कि लोकसभा चुनावों के चलते अबकी पहाड़ियों में पर्यटन का सीजन देरी से शुरू हुआ है. लगातार चढ़ते पारे की वजह से रिकार्ड तादाद में लोग पहाड़ियों की ओर भाग रहे हैं.
उत्तराखंड खासा प्रभावित
उत्तराखंड में नैनीताल, कौसानी, रानीखेत और मसूरी समेत तमाम पर्यटन केंद्रों की हालत भी बेहतर नहीं है. पर्यटन विभाग के सूत्रों का कहना है कि अकेले मसूरी में बीते 25 दिनो के दौरान दो लाख से ज्यादा पर्यटक आए हैं. नैनीताल प्रशासन ने पर्यटकों से फिलहाल शहर में आने की बजाय हल्द्वानी और भवाली जैसी जगहों पर ठहरने की अपील की है. इसकी वजह यह है कि न तो होटलों में कमरे हैं और न ही वाहनों को पार्क करने की जगह. नैनीताल के जिला पर्यटन अधिकारी अरविंद गौड़ आंकड़ों के हवाले बताते हैं कि बीती 20 मई से अब तक चार लाख से ज्यादा पर्यटक इस शहर में पहुंचे हैं. भीड़ की वजह से माल रोड पर पैदल चलना तक मुश्किल हो गया है.
वह बताते हैं कि जिला प्रशासन इस समस्या से निपटने के लिए वाहनों को पार्क करने की नई जगह बना रहा है. प्रशासन ने पर्यटकों से अपने वाहन लेकर नैनीताल नहीं आने को कहा है. फिलहाल झील और प्राकृतक सौंदर्य के लिए मशहूर इस शहर में घुसने से पहले मीलों लंबा जाम लग रहा है.
उत्तराखंड से सटे हिमाचल प्रदेश के शिमला व मनाली जसी जगहों पर किसी भी होटल में तिल धरने तक की जगह नहीं है. हिमाचल प्रदेश होटल एंड रेस्टोरेंट ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गजेंद्र ठाकुर ने पर्यटकों को पहले से बुकिंग कराए बिना इन जगहों पर नहीं आने की सलाह दी है. हिमाचल में तीन हजार से ज्यादा होटल और लगभग डेढ़ हजार होम स्टे हैं. लेकिन 20 जून तक यह तमाम कमरे बुक हैं.
पर्वारणविदों ने मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि पर्यटकों की तादाद तेजी से बढ़ने की वजह से इलाके की आधारभूत व्यवस्था के साथ पर्वारण संतुलन भी गड़बड़ा रहा है. हजारों की तादाद में पहुंचने वाले वाहन इलाके में प्रदूषण बढ़ा रहे हैं. दार्जिलिंग के पर्यावरणविद नरेंद्र लामा कहते हैं, "इस भीड़ के नियमन का एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए. लगातार बढ़ती भीड़ किसी भी समय हादसों की वजह बन सकती है. इसके अलावा पर्यावरण को तो नुकसान हो ही रहा है. संबंधित सरकारी एजंसियों को इस पर ध्यान देना चाहिए.”
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