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परिवारवाद से नहीं उबर पा रही बिहार की राजनीति

मनीष कुमार, पटना
१६ अक्टूबर २०२०

बिहार में बाहुबल की तरह ही परिवारवाद भी राजनीति का पर्याय बन चुका है. नेताओं व कार्यकर्ताओं के समर्पण पर रिश्तेदारी-नातेदारी भारी पड़ती जा रही है. भाजपा को छोड़ यहां अन्य पार्टियां इस दौड़ में काफी आगे दिख रहीं हैं.

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Indien | Wahlen | Virtual Campaign | RJD
तस्वीर: Manish Kumar

बिहार में तीन चरण में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. कौन पार्टी जीत कर आने के बाद क्या करेगी, इसको लेकर दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं. चुनाव प्रचार भी वर्चुअल से हटकर एक्चुअल हो चला है. किंतु इन सबके बीच नेताओं-कार्यकर्ताओं का एक ऐसा वर्ग है जो स्वयं को छला हुआ महसूस कर रहा है. टिकट वितरण की असमानता उन्हें विचलित कर रही है. कहीं बाहुबल-धनबल हावी है तो कहीं परिवारवाद.

वयोवृद्ध नेताओं द्वारा अगली पीढ़ी को स्थापित करने के नाम पर या बाहुबल को छिपाने के नाम पर या फिर जातीय समीकरण के अनुरुप वोट बटोरने के नाम पर इस बार के चुनाव में रिश्तेदारी-नातेदारी काफी महत्वपूर्ण दिख रही है. नेताओं ने इस बार पुत्र-पुत्री, पत्नी, भाई यहां तक कि दामाद व समधी को भी टिकट दिलाने से गुरेज नहीं किया. कहीं-कहीं तो मां-बेटा भी उम्मीदवार हैं. भाजपा को छोड़ लगभग सभी प्रमुख पार्टियों ने भी इसमें दरियादिली दिखाई. जो किसी न किसी कारणवश चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिए गए थे, उन्होंने अपने रिश्तेदारों को मैदान में उतार दिया.

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पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी पीछे नहींतस्वीर: UNI

सभी दलों ने खूब निभाई रिश्तेदारी

राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) व लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने अच्छी-खासी संख्या में नेताओं के रिश्तेदारों को चुनाव मैदान में उतारा है. अब तक की स्थिति के अनुसार राजद ने सबसे अधिक ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं. कांग्रेस में भी यह संख्या दो अंकों में है वहीं 115 सीटों पर लड़ने वाली सत्ताधारी जनता दल यू ने भी परिवारवाद के नाम पर कई सीटें न्योछावर की हैं. हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने तो दामाद व समधन तक का ख्याल रखा है. परिवारवाद के नाम पर लगभग हर तरह के रिश्ते इस बार मैदान में हैं. किसी जगह पर इनका आपस में ही मुकाबला हो रहा है तो कहीं वे अलग-अलग जगहों पर टिकट लेकर चुनाव मैदान में हैं.

राजद में लालू प्रसाद के दोनों बेटे तेजस्वी यादव व तेजप्रताप यादव इस बार भी चुनाव मैदान में हैं. तेजस्वी वैशाली जिले की राघोपुर सीट से तो तेजप्रताप इस बार अपनी पुरानी सीट महुआ की बजाय समस्तीपुर जिले के हसनपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा पार्टी ने प्रदेश राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को रामगढ़ (कैमूर), शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल को शाहपुर (बक्सर), विजय प्रकाश की बेटी दिव्या प्रकाश को तारापुर (मुंगेर), पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि यादव को ओबरा, पूर्व मंत्री श्रीनारायण यादव के पुत्र ललन कुमार को साहेबपुर कमाल (बेगूसराय), क्रांति देवी के पुत्र अजय यादव को अतरी (गया), दुष्कर्म कांड में आरोपित अरुण यादव की पत्नी किरण देवी को संदेश (भोजपुर), रेप केस के आरोपित राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा यादव को नवादा व विधायक वर्षा रानी के पति बुलो मंडल को बिहपुर (भागलपुर) से अपना उम्मीदवार बनाया है. पार्टी ने तो दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के आरोपितों के रिश्तेदारों से परहेज तक नहीं किया.

Indien Schauspieler gewannen Wahl 2019 Shatrughan Sinha
फिल्मस्टार शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा भी चुनावी मैदान मेंतस्वीर: Imago Images/Hindustan Times

बच्चों की मदद से रसूख बचाने की कोशिश

वहीं जदयू ने पूर्व मंत्री स्व. राजो सिंह के पोते सुदर्शन को बरबीघा (शेखपुरा), जर्नादन मांझी के पुत्र जयंत राज को अमरपुर, बाहुबली विधायक धूमल सिंह की पत्नी सीता देवी को एकमा (सारण), मंत्री स्व. कपिलदेव कामत की बहू मीना कामत को बाबूबरही (मधुबनी), हरियाणा के राज्यपाल डॉ सत्येंद्र नारायण आर्य के बेटे डॉ. कौशल किशोर को राजगीर (नालंदा), शेर-ए-बिहार के नाम से चर्चित व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामलखन सिंह यादव के पोते जयवर्धन यादव को पालीगंज (पटना), पूर्व मंत्री नरेंद्र नारायण यादव के दामाद निखिल मंडल को मधेपुरा, सीपीआइ नेता व पूर्व सांसद स्व. कमला मिश्र मधुकर की बेटी को केसरिया (पूर्वी चंपारण) तथा विधायक कौशल यादव की पत्नी पूर्णिमा यादव को गोविंदपुर से प्रत्याशी घोषित किया है. इसी तरह कांग्रेस ने भी अपने कद्दावर नेता सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश को कहलगांव (भागलपुर), पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की पुत्री सुभाषिणी राज को बिहारीगंज (पूर्णिया), निखिल कुमार के भतीजे राकेश कुमार को लालगंज (वैशाली), फिल्म अभिनेता व पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को बांकीपुर (पटना), पूर्व मंत्री आदित्य सिंह की बहू नीतू सिंह को हिसुआ (नवादा) और अब्दुल गफूर के पुत्र आसिफ गफूर को गोपालगंज से टिकट दिया है.

Indien Wahlen Feier BJP Sieg 16.05.2014
परिवार की पार्टी कही जाती है लोजपातस्वीर: UNI

परिवार की पार्टी कही जाने वाली लोजपा ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रामविलास पासवान के दामाद मृणाल को राजापाकर (वैशाली) व पूर्व सांसद स्व. रामचंद्र पासवान के बेटे कृष्ण राज को रोसड़ा (समस्तीपुर) से चुनाव मैदान में उतारा है. जबकि खगड़िया के लोजपा सांसद चौ. महबूब अली कैसर के पुत्र चौधरी युसूफ सलाउद्दीन सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा) से राजद के उम्मीदवार हैं. हम प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी स्वयं तो इमामगंज (गया) से लड़ ही रहे हैं, अपने दामाद देवेंद्र मांझी को मखदुमपुर (जहानाबाद) तथा अपनी समधन व पूर्व विधायक ज्योति देवी को बाराचट्टी (गया) से उम्मीदवार बनाया है. जदयू के टिकट पर ही ओबरा से सुनील कुमार तो राजद के टिकट पर गोह (औरंगाबाद) से भीम कुमार सिंह मैदान में हैं. भीम पूर्व विधायक स्व. रामनारायण सिंह के पुत्र और सुनील उनके भतीजे हैं. बिहार के कई समाचार पत्रों में एकसाथ विज्ञापन देकर स्वयं को सीएम कैंडिडेट घोषित कर अचानक चर्चा में आने वाली प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया भी जदयू नेता व विधान पार्षद विनोद चौधरी की पुत्री हैं जिनके उम्मीदवार सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. पुष्पम प्रिया ने पटना की बांकीपुर विधानसभा सीट से नामांकन किया है.

भाजपा ने लगाई लगाम

दरअसल पुराने नेता अपनी राजनीतिक विरासत को सौंपने के लिए ऐसी व्यूह रचना करते हैं कि पार्टी भी उनके सब्जबाग के नतमस्तक हो जाती है. दांव-पेंच के माहिर इन वयोवृद्ध नेताओं की सजाई फील्डिंग के आगे प्रतिद्वंदी का टिकना वाकई मुश्किल होता है. दरअसल, उनका उद्देश्य अपने जीवन काल में बच्चों को स्थापित कर देना होता है. नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता का कहना था, "अधिकतर नेता वृद्ध हो चुके हैं. समर्पित कार्यकर्ताओं को जगह देने की बजाय वे अपने बच्चों या रिश्तेदारों को अपना स्थान देने की जुगत में रहते हैं, लेकिन क्या वे हमलोगों की तरह पार्टी के लिए पसीना बहाने में सक्षम हो सकेंगे, हरगिज नहीं." वहीं नेताओं द्वारा कार्यकर्ता की जगह अपनों को एकोमोडेट करने के सवाल पर जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं, "काफी हद तक कमी आई है. भविष्य में यह और भी कम हो जाएगी."

प्रमुख पार्टियों में भाजपा ने इस बार पार्टी के अंदर परिवारवाद पर काफी हद तक लगाम लगा दी. कई नेता अपने बेटे-बहू या रिश्तेदार के लिए टिकट मांगते रहे किंतु पार्टी ने उनकी एक न सुनी. यही वजह रही कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे की मंशा भी पूरी न हो सकी. उनके बेटे की जगह पार्टी ने भागलपुर में दूसरे को प्रत्याशी घोषित कर दिया. इसका अपवाद एकमात्र पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह की पुत्री श्रेयसी सिंह रही जिन्हें भाजपा ने जमुई से टिकट दिया है. हालांकि इसके अलावा भाजपा के कई उम्मीदवार ऐसे हैं जो किसी न किसी राजनेता के रिश्तेदार हैं जैसे दीघा (पटना) के विधायक संजीव चौरसिया, बांकीपुर (पटना) के विधायक नितिन नवीन व मंत्री राणा रंधीर सिंह आदि. इस बार वाल्मीकिनगर संसदीय सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में भी महागठबंधन ने पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय के पुत्र शाश्वत केदार को अपना उम्मीदवार बनाया है.

Indien Patna Politikerin Lovely Anand mit Söhnen
लवली और चेतन आनंद के साथ तेजस्वी यादवतस्वीर: Manish Kumar/DW

कई संभाल रहे राजनीतिक विरासत

इन सबों के अतिरिक्त कई ऐसे नाम हैं जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है. इनमें पूर्व सांसद अली अशरफ फातमी के बेटे फराज फातमी, पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद के पुत्र मनोज सहनी, पूर्व परिवहन मंत्री आरएन सिंह के पुत्र डॉ. संजीव, पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह के बेटे द्वय अजय व सुमित, पूर्व मंत्री उपेंद्र प्रसाद वर्मा के पुत्र जयंत वर्मा, पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के पुत्र राहुल कुमार, पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन के पुत्र शहबाज आलम, पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के बेटे चंद्रिका राय व सोनेलाल हेम्ब्रम की पुत्रवधू डॉ. निक्की हेम्ब्रम शामिल हैं. जाहिर है, अपनी विरासत बचाने के लिए ये कहीं न कहीं से किसी न किसी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर फिर निर्दलीय ही चुनाव मैदान में हैं. दरअसल, इस बार कोई ऐसा रिश्ता नहीं दिख रहा जो चुनाव मैदान में न दिख रहा हो. मां-बेटे के रिश्ते का सबसे नायाब उदाहरण बाहुबली नेता व पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद व उनके पुत्र चेतन आनंद हैं जो राजद के टिकट पर क्रमश: शिवहर व सहरसा से किस्मत आजमा रहे हैं. सीवान में तो दो समधी ही आमने-सामने हैं. वे हैं भाजपा से ओमप्रकाश यादव और राजद से अवध बिहारी चौधरी. वाकई, 2020 के इस चुनाव में राजनीति पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों की संख्या काफी होगी.

जबकि राजनीतिक विश्लेषक प्रो. नवल किशोर चौधरी इसे सिंद्धांतविहीन अवसरवादी राजनीति की संज्ञा देते हैं. वहीं पत्रकार कमलेश कहते हैं, "हरेक व्यक्ति को अपनी जीविका चुनने का अधिकार है. सम्मान के साथ रसूख वाली जिंदगी तो हर इंसान जीना चाहता है. राजनेता के रिश्तेदार-नातेदार अगर योग्य हैं तो इसमें बुराई क्या है. हां, अगर वे अयोग्य हैं तो फिर इस बदलते दौर में सार्वजनिक जीवन में वे अपनी जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सकेंगे. वो दिन गए जब किसी की मनमर्जी चलती थी अन्यथा केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं होते." शायद इसलिए लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) के प्रमुख शरद यादव की पुत्री सुभाषिणी राज कहतीं हैं, "मेरे पिताजी का स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं चल रहा. इस वजह से वे सक्रिय राजनीति से दूर हैं. इसलिए यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी है कि मैं उनकी विरासत को आगे बढ़ाऊं." अगर दृढ़ निश्चय और समर्पण की भावना से नई पीढ़ी राजनीति में आती है तो इससे परिदृश्य अवश्य ही बदलेगा. परिवारवाद की आड़ में संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता.

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