1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नौकरी छीन सकती है क्रिकेट की कमेंट्री

५ मार्च २०१०

भारत भले ही क्रिकेट का दीवाना देश हो लेकिन अगर कोई अपना कामधाम छोड़ ड्यूटी के वक्त क्रिकेट की कंमेट्री सुन रहा है तो उसे यह महंगा पड़ सकता है. स्कोर और चौकों छक्कों के बीच नौकरी जा सकती है.

https://p.dw.com/p/MLdQ
तस्वीर: AP

सुप्रीम कोर्ट के 1989 के फ़ैसले की रौशनी में यह कहा जा सकता है. 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने ड्यूटी के दौरान रेडियो में कमेंट्री सुन रहे एक रेलवे कांस्टेबल को निकाले जाने को सही ठहराया था.

तब जस्टिस एसएच कपाड़िया की एक बेंच ने कॉन्स्टेबल सीसाई बाबू की अपील ख़ारिज कर दी कि उसे नौकरी से निकाला जाना हैरानी भरा और असंगत है. क्योंकि उसे इतनी बड़ी सज़ा सिर्फ़ इसलिए दी गई क्योंकि वह सिर्फ़ रेडियो पर क्रिकेट कंमेट्री सुन रहा था.

कॉन्स्टेबलों के लिए बनी परिषद के सतीश ने तर्क दिया था कि इसमें कोई बुराई नहीं है अगर कोई कर्मचारी क्रिकेट कंमेट्री सुनता है या फिर टीवी पर लाइव मैच देखता है क्योंकि भारत क्रिकेट दीवाना देश है.

बाबू को रेलवे प्रोटेक्शन फ़ोर्स आरपीएफ़ विजयवाड़ा में 1977 में भर्ती किया गया था, और 1989 में में उसे नायक बनाया गया था लेकिन फिर 30 नवंबर 1990 में नौकरी में लापरवाही के आरोप के साथ निकाल दिया था.

लेकिन आंध्रप्रदेश की एक अदालत ने माना कि बाबू कामचोर था लेकिन उसे नौकरी पर बहाल कर दिया लेकिन उसे अगले चार प्रमोशन नहीं दिए जाने का आदेश दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को पलटते हुए कहा था कि ड्यूटी के दौरान क्रिकेट की कमेंट्री सुनना ग़लत है.

रिपोर्ट: पीटीआई/आभा मोंढे

संपादन: ओ सिंह