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नो मेन्स लैंड में जुड़े हाथों में हाथ

२७ अप्रैल २०१८

स्नेहपूर्ण माहौल में भाई जैसे दो कोरियाई राष्ट्र एक दूसरे के करीब आए. कई कदमों पर सहमति बनी. डीडब्ल्यू के अलेक्जांडर फ्रॉएंड के मुताबिक सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बरसों की खामोशी आखिरकार टूट गई है.

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तस्वीर: Reuters/Korea Summit Press Pool

दोनों बिल्कुल अलग दुनिया से आते हैं: दक्षिण कोरिया से मानवाधिकारों के वकील मून जे इन आते हैं. उत्तर के नेता किम हैं जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति के सबसे विवादास्पद नेता हैं. मून व्यावहारिक रूप से संबंधों को जोड़ने वाले नेता हैं, वहीं किम जोंग दूसरों को भड़काने वाले रॉकेट मैन.

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति खुद एक ऐसे शख्स हैं जो उत्तर से भागे और ताउम्र लोकतंत्र के लिए लड़ते रहे. उनका सामना एक ऐसे नेता से है जो परिवादवादी शासन की तीसरी पीढ़ी में है और अपने देश में भगवान की तरह पूजा जाता है.

इन सब अंतरों के बावजूद दोनों कोरियाई नेताओं के बीच बर्फ तेजी से पिघली. दोनों ने नो मेन्स लैंड में एक दूसरे का गर्मजोशी से स्वागत किया. और, पहली बार उत्तर कोरिया के शासक ने दक्षिण कोरियाई जमीन पर कदम रखा. हाथ में हाथ थे, दोनों ने स्वच्छंद रूप से सीमा को पार किया. मून ने कहा कि ये लकीर अब अलगाव की नहीं बल्कि शांति की प्रतीक बनेगी.

पहुंच के बाहर लगने वाले प्योंग्यांग के नेता सहज लग रहे थे. उनके चेहरे पर मुस्कुहराट और दुनिया भर के कैमरे थे. बच्चों ने फूलों को साथ स्वागत किया, साथ में उनकी बहन भी थी. भोज के लिए दोनों कोरिया के मशहूर व्यंजन तैयार किए गए थे.

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गले लगते किम और मूनतस्वीर: Reuters

खामोशी का अंत

यह मुलाकात एक ऐतिहासिक लम्हा है. दोनों नेताओं की दोस्ताना मुलाकात को देखकर वहां पहुंचे दुनिया भर के करीब 3,000 पत्रकार भी तालियां बजाने लगे. सम्मेलन से उम्मीदें बहुत हैं. इसने कई सालों से जारी खामोशी को तोड़ा है, वह भी बड़े जबरदस्त ढंग से. दक्षिण कोरिया को उम्मीद है कि संघर्ष विराम की जगह अब शांति समझौता लेगा, अमेरिका और उत्तर कोरिया परमाणु निशस्त्रीकरण की तरफ बढ़ेंगे और भाई जैसे दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध स्थापित हो सकेंगे. उत्तर कोरिया परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता चाहता है और सख्त आर्थिक प्रतिबंधों के बीच वह आर्थिक मदद भी हासिल करना चाहता है. फिलहाल प्रतिबंधों की कीमत सबसे ज्यादा उत्तर कोरिया के गरीब चुका रहे हैं.

दोनों पक्ष एक दूसरे को न भड़काने और भविष्य में निरंतर रूप से मिलने पर राजी हुए हैं. सैन्य तनाव को कम करने और दोनों देशों में सरकार प्रमुखों के बीच सीधे टेलिफोन कनेक्शन पर भी सहमति बनी है.

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अलेक्जांडर फ्रॉएंड

अभी वैध युद्धविराम संधि की जगह एक शांति समझौते पर बात हुई है. विभाजन की वजह से बिछड़े परिवारों को भी फिर से मिलाने पर सहमति बनी है, दोनों पक्ष आर्थिक रूप से भी सहयोग गहरा करना चाहते हैं. काएसोंग स्पेशल इकोनोमिक जोन में एक संपर्क दफ्तर खोलने पर भी रजामंदी हुई है.

दोनों के बीच एक सबसे अहम मुद्दे पर भी समझौता हुआ है: दोनों साथ मिलकर कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने पर काम करेंगे. इसका मतलब होगा कि इलाके से रणनीतिक रूप से तैनात अमेरिका के परमाणु हथियार भी हटाए जाएंगे. दोनों देशों ने एक दिन कोरियाई प्रायद्वीप के एकीकरण के साझा लक्ष्य का एलान भी किया. किम ने कहा, "हम एक जैसी भाषा बोलते हैं, हमारा खून भी एक है, हम एक जैसा इतिहास साझा करते हैं, हम एक जैसे लोग हैं. हमें एक दूसरे से लड़ना नहीं चाहिए बल्कि पुनर्मिलन के लिए पुरजोर कोशिशें करनी चाहिए."

जाहिर है, इस तमाम दरियादिली के बावजूद आशंकाएं बनी रहेंगी. सन 2000 और 2007 के द्विपक्षीय कोरियाई सम्मेलनों के दौरान भी कई उम्मीदें जगीं. उस वक्त भी दोनों प्रतिद्ंवद्वी देशों ने भरोसा बढ़ाने के लिए जरूरी कदम उठाने की बात की. उस वक्त भी विभाजन के चलते अलग हुए परिवार अपने रिश्तेदारों से मिल सके, और संयुक्त काएसोंग स्पेशनल इकोनोमिक सेंटर की स्थापना हुई.

लेकिन किसी झाग की तरह ही ज्यादातर उम्मीदें जल्द ही दम तोड़ बैठीं. जैसे ही उत्तर कोरिया अपने परमाणु सपने की तरफ बढ़ा, वैसे ही वार्ता टूट गई.

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तस्वीर: Getty Images

पूर्ववर्तियों से ज्यादा सफल

किम और मून के बीच स्नेह का जो माहौल था, वह अभूतपूर्व लगा. राष्ट्रपति बनने के साल भर बाद ही सोशल लिबरल नेता मून ने अपनी नरम नीति से वह हासिल कर लिया जो उनके पूर्ववर्ती कंजरवेटिव नेता कभी नहीं कर पाए. किम ने भी अपने पिता, दादा और जोखिम भरे परमाणु व मिसाइल कार्यक्रम के मुकाबले कहीं ज्यादा अहम चीज हासिल की है. किम अब अपने कट्टर प्रतिद्ंवद्वी अमेरिका के साथ आंखें मिलाकर बात कर सकते हैं. कुछ हफ्ते पहले यह बिल्कुल अकल्पनीय लग रहा था.

अंतर कोरियाई शिखर वार्ता को फिर से पटरी पर ले आया गया है, बीते समय का तनाव काफी हद तक कम हो चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को भी इसी राह पर चलने की सलाह दी जा सकती है और कहा जा सकता है कि सीधी बातचीत तल्ख ट्विटर पोस्ट से ज्यादा फायदेमंद होती है. कदम दर कदम, सभी पक्ष खोए हुए भरोसे को फिर हासिल करने की कोशिश करेंगे और एक शांतिपूर्ण हल की तरफ बढ़ेंगे. अगर वे ऐसा करने में सफल हुए तो ट्रंप भी अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों के मुकाबले ज्यादा सफल माने जाएंगे.