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नेपाल में संसदीय सभा के चुनाव - बदलाव की बड़ी चुनौती

आभा निवसरकर मोंढे९ अप्रैल २००८

नेपाल में आज संसदीय सभा के लिये मतदान होने जा रहा है। चुनावों के पहले कई जगहों से हिंसा के समाचार आए हैं। 17 करोड़ लोग 6 हज़ार उम्मीदवारों के भाग्य का फ़ैसला करेंगे। 55 पार्टियां इन चुनावों में भाग ले रही हैं। सत्ताधारी गठबंधन का मुख्य एजेंडा राजशाही ख़त्म करना, और लोकतंत्र की स्थापना करना

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तस्वीर: AP

है। बहरहाल कम्युनिस्ट पार्टी के एक उम्मीदवार की हत्या के बाद पुलिस और माओवादियों में हुई झड़पों में सात माओवादियों के मारे जाने के समाचार हैं।

चुनाव के पहले जारी हिंसा के बावजूद आज नेपाल में संसदीय सभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इस मतदान के साथ नेपाल के लोकतंत्र बनने का आधार तैयार होगा। ये चुनाव माओवादियों को राजनीति मुख्यधारा में लाने के लिये आख़िरी ठोस कदम होगा। यही नहीं ये चुनाव नेपाल की जनता के लिये बहुत बड़ा परिवर्तन है। राजशाही के अंत पर नेपाल की अधिकतर पार्टियां सहमत हुई हैं। और इसी के साथ सभी पार्टियों की ये ज़िम्मेदारी है कि नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना हो। नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियां और माओवादी सभी की ज़िम्मेदारी है। नेपाली युवा ओम का कुछ ऐसा मानना है कि माओवादी कुछ अलग तरह से राज करेंगे। वे नेपाल को स्विटज़रलैड बना सकते हैं। उम्मीद तो है कम से कम। हलांकि माओवादियों पर हिंसात्मक रवैये के आरोप लगते रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के बी रोकाया बताते हैं कि वे पिछले दस साल से सशस्त्र संघर्ष कर रहे हैं। तो उनके कार्यकर्ताओं को लड़ने की ट्रेनिंग दी गई है। और वे ख़ुद उनके शांतिपूर्ण कामों, क़ायदे, और तरीके से संतुष्ट हैं। उन्होंने सरकार पर दबाव डालने के लिये लोकतांत्रिक, संसदीय तरीके अपनाए।

कुल मिला कर माओवादियों ने सभी स्तरों पर पिछड़े लोगों को मुख्यधारा में लाया। नेपाल में में बहुत सारी जातियों के लोग रहते हैं। सभी नए अधिकार, सत्ता में ज़्यादा भागीदारी चाहते हैं। ख़ासकर तराई इलाके में मधेसी असंतुष्ट हैं। नेपाली कांग्रेस ने डॉइचे वेले को बताया कि तराई में लोगों को सभी क्षेत्रों मे जितनी जगह अधिकार मिलने चाहिये थे उतने नहीं मिले हैं। विकास के नाम पर कुछ नहीं है तीन चार किलोमीटर के बाद इलाका ख़ाली है। कुछ कुछ हिस्सों में तो भारत से होकर जाना पड़ता है।

चुनावों में संघीय संविधान एक बड़ा मुद्दा है। हलांकि संविधान सभा के इस चुनाव से सत्ता में कोई फर्क नहीं पड़ेगा वहां सात दलों वाली गठबंधन सरकार बनी रहेगी। लोकतंत्र के लिये वे सभी एकमत हैं। मानवाधिकार आयोग के सदस्य के बी रोकाया कहते हैं कि वे ख़ुद कह रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों के नेता। सत्ताधारी गठबंधन की सातों पार्टियों में यह एकजुटता अगले दस बारह साल के लिये ज़रूरी है। वे इस बारे में खुली बात कर रहे हैं। और माओवादी नेताओं ने ख़ुद कहा है कि सात धड़ो वाली इस सरकार में किसी भी क़ीमत पर सहमति बहुत ज़रूरी है।

बहरहाल इन चुनावों का होना एक बहुत बड़ा क़दम है और इसके बाद लोगों को बहुत सारी आशाएं हैं, बदलाव और शांति की।

10.04.08