नेपाल को ख़ुद हल करना होगा संकटः भारत
४ मई २००९आठ महीने पहले प्रधानमंत्री पद संभालने वाले पूर्व माओवादी नेता प्रचंड ने सेनाध्यक्ष रुकमनगुड कटवाल से मतभेदों के बाद इस्तीफ़ा दिया है. इसके बाद नेपाल में सरकार गिर गई है. सोमवार को एक टेलीविजन चैनल पर राष्ट्र के नाम संदेश में प्रचंड ने इस्तीफ़े का एलान किया. नेपाल के राष्ट्रपति रामबरन यादव पर निशाना साधते हुए प्रचंड ने कहा कि सेनाध्यक्ष को बहाल करने का ''राष्ट्रपति का क़दम शांति और संविधान के ख़िलाफ़ है.'' एक दिन पहले ही प्रचंड ने नेपाल के सेना प्रमुख जनरल रुकमनगुड कटवाल को बर्ख़ास्त कर दिया था.
भारत ने कहा है कि इस संकट से नेपाल की राजनीतिक पार्टियों को ही निपटना होगा क्योंकि यह देश का अंदरूनी मामला है. भारत के विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक बयान में कहा है, ''नेपाल में जो कुछ हो रहा है यह उनका आंतरिक मामला है. हम आशा करते हैं कि बदलाव के दौर से गुज़र रहा एक पूर्ण लोकतांत्रिक बनेगा. साथ ही व्यापक राजनीतिक सहमति से नेपाल में संविधान निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा.''
दरअसल नेपाल में पूर्व माओवादी विद्रोहियों को सेना में शामिल करने के मसले पर प्रचंड और सेनाध्यक्ष में मतभेद हो गए थे. प्रचंड चाहते थे कि पूर्व माओवादियों को सेना में शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन कटवाल ने माओवादियों को सेना में भर्ती करने से इनकार कर दिया. इसके अलावा कटवाल ने सेना में भर्ती के लिए कुछ नए नियम भी बनाए जिनके चलते मतभेद और बढ़ गए.
हालांकि इस्तीफ़े का एलान करते वक्त प्रचंड ने सेनाध्यक्ष से हुए मतभेदो का ज़िक्र नहीं किया. प्रचंड ने कहा कि, ''मौजूदा मुश्किल समय को हल करने और शांति प्रक्रिया, राष्ट्रधर्म और लोकतंत्र को बचाने के लिए बातचीत का माकूल माहौल तैयार करना है और इसीलिए मैं उस सरकार से इस्तीफ़ा दे रहा हूं जिसकी मैं अगुवाई कर रहा हूं.''
उधर प्रचंड सरकार में वित्त मंत्री रहे बाबूराम भट्टाराई ने इस राजनीतिक संकट के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराया है. भट्टाराई का मानना है कि भारत नेपाल की सेना में माओवादियों की भर्ती से नाख़ुश था. भट्टाराई ने यह आरोप भी लगाया है कि भारत ने इस पूरे मामले में सेनाध्यक्ष और राष्ट्रपति का समर्थन किया.
रिपोर्ट: ओ सिंह/ एपी, रॉयटर्स
संपादन: जे अशरफ