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समाज

नेपाल के हिंदू उत्सव में हजारों पशुओं की बलि

३ दिसम्बर २०१९

दक्षिणी नेपाल के एक गांव में हर पांच साल में होने वाला उत्सव शुरू हो गया है, जिसमें हजारों पशुओं की बलि दी जाती है. पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद इस बार भी गधीमाई के सम्मान में हजारों पशु मारे जाएंगे.

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Nepal Massenschlachtung von Tieren
तस्वीर: picture-alliance/AP/S. Shrestha

जिस गांव में यह उत्सव होता है, वह भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित है. इसलिए दोनों देशों के हजारों श्रद्धालु यहां जुटते हैं. दो दिन तक चलने वाले इस उत्सव के एक आयोजक रामचंद्र शाह का कहना है कि यहां पर भैंसों, बकरियों, मुर्गों, सूअरों और सफेद चूहों की बलि दी जाती है. उत्सव के पहले दिन सात हजार भैसों की बलि दी जा सकती है. इसके अगले दिन बुधवार को भी दसियों हजार पशुओं की भेंट चढ़ाई जाएगी.

हर पांच साल में होने वाला यह उत्सव दुनिया का अकेला ऐसा आयोजन है जिसमें इतनी बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है. 40 साल के एक श्रद्धालु बिंदेश्वर पड़ोसी जिले से यहां पहुंचे और अपने साथ बलि के लिए बकरा लाए हैं. वह कहते हैं, "मैंने देवी से मन्नत मांगी थी अगर मेरी इच्छा पूरी हुई मैं एक बकरे की बलि दूंगा."

पशु अधिकार कार्यकर्ता यहां होने वाली हजारों पशुओं की बलि का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि 2009 में इस उत्सव में पांच लाख जानवरों की बलि दी गई थी जबकि 2015 में यह आंकड़ा घट कर तीस हजार के आसपास रह गया. लेकिन अब भी हजारों की संख्या में बेजुबानों की बलि पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए बड़ी चिंता का विषय है.

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कड़ी सुरक्षा के बीच मंगलवार को तड़के एक बकरे, एक चूहे, एक मुर्गे, एक सूअर और एक कबूतर की बलि के साथ यह उत्सव शुरू हुआ. इसके बाद एक ओझा ने अपने शरीर के पांच अंगों से रक्त निकालकर कर देवी को अर्पित किया.

इसके बाद तेज धार वाले चाकू और तलवार लिए 200 कसाई फुटबॉल स्टेडियम जितने बड़े मैदान में दाखिल हुए जहां पर हजारों भैसों को रखा गया था. इस नजारे को देखने के लिए उत्साहित श्रद्धालु पेड़ों पर चढ़े हुए थे. आयोजन समिति से जुड़े बीरेंद्र प्रसाद यादव ने कहा, "हमने इसका समर्थन ना करने की कोशिश की लेकिन लोगों को इस परंपरा में विश्वास है और वे यहां पर बलि के लिए अपने जानवर लेकर आते हैं."

Nepal Massenschlachtung von Tieren
तस्वीर: AFP/P. Mathema

यहां हजारों बकरों की गला काट कर बलि दी जाएगी, इसके अवाला हजारों सूअर और कुछ चूहों को भेंट चढ़ाया जाएगा. श्रद्धालु बलि के बाद जानवरों के मांस को पकाने के लिए अपने साथ ले जा सकते हैं या फिर उसे यहां भी छोड़ कर जा सकते हैं जिसे आयोजक दफना देते हैं. बलि के लिए अपने साथ एक बकरे को लेकर आए 30 वर्षीय राजेश कुमार दास कहते हैं, "मैं देवी को मानता हूं. मेरी मां ने मेरे बेटे की अच्छी सेहत के लिए देवी से मन्नत मांगी थी."

अधिकारियों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि पशु बलि की इस परंपरा को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इसे लेकर जागरूकता फैलाने के अभियानों का यह असर हुआ है कि यहां मारे जाने वाले जानवरों की संख्या में कमी आई है. एनिमल इक्वलिटी इंडिया की अमृता उबाले कहती हैं, "मंदिर समिति सरकार और जागरूकता अभियानों से हिली हुई है. यहां बलि किए जाने वाले जानवरों की संख्या में कमी आ रही है."

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स्थानीय अधिकारी पशु बलि के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रहे हैं. जिला अधिकारी फनींद्र मणि पोखरेल कहते हैं कि वे श्रद्धालुओं से पशु के बदले पैसे चढ़ाने को कहते हैं. 2915 में नेपाल सरकार ने बलि पर रोक लगाई थी. इसके एक साल बाद नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी खून खराबे की इस परंपरा को रोकने का आदेश दिया. ऐसे में बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि सदियों से चली आ रही यह परंपरा बंद होगी. लेकिन पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकारी एजेंसियां और मंदिर समिति, दोनों ही इन आदेशों को लागू करने में नाकाम रहे हैं.

Nepal Massenschlachtung von Tieren
तस्वीर: picture-alliance/AP/S. Shrestha

नेपाल की संस्था ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल की निदेशक तनुजा बसनेत कहती हैं, "अब बारी नेपाल सरकार की है कि वह तेजी से कदम बढ़ाए और पशुओं की बलि पर रोक का कानून बनाए, ताकि यह आखिरी मौका हो जब हम गधीमाई में यह भयानक नजारा देख रहे हों."

वैसे इस उत्सव में कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो जानवरों की बलि देने के बजाय कबूतर जैसे पक्षियों को आजाद करते हैं. 20 साल के रवींद्र कुमार यादव भी इन्हीं में शामिल हैं. वह कहते हैं, "हम जानवरों की बलि नहीं देते. इसके बजाय हम कबूतरों के एक जोड़े के साथ देवी की पूजा करते हैं." और इसके साथ ही उन्होंने पिंजड़ा खोला और कबूतर फफड़ाते हुए आसमान में उड़ गए.

एके/एमजे (डीपीए, एएफपी)

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