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निवेश और मुनाफे का नया ठिकाना बनता उत्तराखंड

शिवप्रसाद जोशी
८ अक्टूबर २०१८

उत्तराखंड में दो दिन के इनवेस्टर्स मीट का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया. करोड़ों रुपयों के निवेश के ऐलानों और समझौता पत्रों की ‘बौछारें’ क्या उत्तराखंड को उसकी बुनियादी मुश्किलों से उबार पाएंगी?

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Indien Narendra Modi  Kedarnath Tempel
फाइलतस्वीर: picture-alliance/Zumapress/L. Kumar

देहरादून में देश के चोटी के निवेशकों की शिखर बैठक में दावा किया गया है कि राज्य में करीब 75 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया जाएगा. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने निवेशकों की अगवानी की और ‘नए भारत' में निवेश का न्योता दिया. अंबानी, अडानी, महिंद्रा से लेकर पतंजलि और अमूल तक नामी गिरामी कारोबारी उत्तराखंड की राजधानी में निवेश सम्मेलन में जुटे. जापान, सिंगापुर आदि देशों से भी प्रतिनिधि मौजूद थे. प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में "स्पेशल इकोनॉमिक जोन" से बड़ा महत्त्व "स्पिरिचुअल इको जोन" का है क्योंकि यहां गंगा और हिमालय हैं. उन्होंने निवेश को अध्यात्म से जोड़ा और उत्तराखंड को पर्यटन का पूरा का पूरा पैकेज बताया.

भारत के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी ने "देवभूमि उत्तराखंड" को "डिजीटल देवभूमि" में तब्दील कर देने का वचन दिया. अडानी समूह के प्रणव अडानी ने उत्तराखंड को "रिसर्जन्ट इंडिया का चमकता सितारा" करार दिया. इस तरह की बहुत सी उपमा और अतिशयोक्ति भरे अलंकारों से निवेश सम्मेलन गूंजता रहा, जिसे "डेस्टिनेशन उत्तराखंड" का नाम दिया गया था. फिर भला पहाड़ों से बढ़ते पलायन, ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे, सिकुड़ती खेती, खिसकती जमीन, कृषि भूमि पर अंधाधुंध निर्माण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों की क्या बिसात. लेकिन निवेश सम्मेलन की निगाह से देखें तो उत्तराखंड असीम फायदों का भूगोल है.

खबरों के मुताबिक अडानी समूह राज्य में 6500 करोड़ रुपये का, महिंद्रा समूह 600 करोड़ रुपये का, पतंजलि 2500 करोड़ रुपये का निवेश करेगा. अमूल, आईटीसी, जेएसडब्ल्यू, पतंजलि अपने अपने ढंग से राज्य में निवेश की बौछार कर देंगे. 4000 करोड़ रुपये का निवेश कर चुके मुकेश अंबानी ने कहा है कि अगले दो साल में राज्य के ढाई हजार से ज्यादा स्कूलों और कॉलेजों को हाईस्पीड इंटरनेट से जोड़ दिया जाएगा. अडानी 5000 करोड़ रुपये मेट्रो प्रोजेक्ट में, 1000 करोड़ रुपये ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट में और 500 करोड़ रुपये लॉजिस्टिक पार्क में खर्च करेगा. यही नहीं ऑर्गेनिक फूड के वितरण का ठेका भी लेगा. महिंद्रा वाले 250 करोड़ रुपये का स्कोर्पियो और बोलेरो का प्लांट लगाएंगें, 100 करोड़ रुपये का ट्रैक्टर बिजनेस शुरू करेंगे और 200 करोड़ रुपये अपने रिसॉर्ट बिजनेस में लगाएंगे. पतंजलि शिक्षा से लेकर फूड प्रोसेसिंग तक में निवेश करेगा. पतंजलि का मुख्यालय उत्तराखंड के हरिद्वार में ही है.

ऑलवेदर चार धाम रोड हो या ऋषिकेश-कर्णप्रयाण रेल लाइन प्रोजेक्ट, बताया गया कि ये निर्माण कार्य उत्तराखंड की दिशा बदल देंगे. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पर्यटन को राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा. उन्होंने 13 जिलों में 13 नए पर्यटन ठिकाने चिन्हित करने की योजना के बारे में बताया कि इसके तहत सभी जिलों में अध्यात्म, हिमालय दर्शन, वॉटर स्पोर्ट्स, ईको टूरिज्म आदि थीम के आधार पर एक-एक पर्यटक स्थल विकसित किया जाएगा. बताया जाता है कि कुल 12 सेक्टरों में 75 हजार करोड़ रुपये के समझौता पत्रों पर दस्तखत हुए हैं. इनमें ऊर्जा, स्वास्थ्य, दवा, वाहन, मैनुफेक्चरिंग, पर्यटन, आईटी और खाद्य प्रसंस्करण यानी फूड प्रोसेसिंग, हॉर्टीकल्चर, फ्लोरीकल्चर, हर्बल, जैवप्रौद्योगिकी और फिल्म शूटिंग शामिल हैं.

निवेश और तरक्की से भला किसे ऐतराज होगा. कौन नहीं चाहेगा आर्थिक विकास. लेकिन जैसा कि उत्तराखंड के नई टिहरी में ही शूट हुई नई फिल्म ‘बत्ती गुल मीटर चालू' का मुख्य किरदार पूछता है- कहां है विकास और कहां है कल्याण. उत्तराखंड की जमीनी सच्चाइयों से बेखबर होकर ऐसे निवेश दरअसल लीपापोती बनकर नहीं रह जाने चाहिए. बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से स्याह- विकास का ये मॉडल तो उल्टा नुकसानदेह हो सकता है. इसीलिए जब समावेशी विकास की बात की जाती है तो उसका अर्थ यही है कि आर्थिकी का लाभ वंचितों तक पहुंचे और वे विकास प्रक्रिया में भागीदार बन पाएं.

समावेशी विकास, सामाजिक और सांस्कृतिक तानेबाने की हिफाजत से भी जुड़ता है. और इसका आशय पर्यावरणीय सुरक्षा और उसकी बेहतरी से भी जुड़ता है. उत्तराखंड में ये एक बहुत नाजुक मसला है. देश के अन्य हिस्सों की तरह यह राज्य भी ग्लोबल वॉर्मिंग से जूझ रहा है. निवेश और निर्माण की आपाधापी के बीच, राज्य की भूगर्भीय संवेदनशीलता की अनदेखी भी नहीं करनी चाहिए. क्या ही अच्छा होता कि जंगलों की कटान, मौसम की मार, लुप्त होते बीज और बंजर होते खेतों की चिंता भी निवेशकों की शिखर बैठक में सरोकारी और कार्रवाईपूर्ण अंदाज में दिखती.

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