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नाज़ी दौर की बर्बरता की याद

२७ जनवरी २०१०

जर्मनी में 27 जनवरी का दिन 1996 से नाज़ीवाद के शिकारों और पीड़ितों के स्मृति दिवस के तौर पर मनाया जाता है. 60 साल पुरानी वीभत्स घटनाओं की याद में जर्मन संसद में विशेष समारोह हुआ जिसे इस्राएली राष्ट्रपति ने संबोधित किया.

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अब दुनिया भर के लोग जाते हैं आउशवित्स को देखनेतस्वीर: AP

1945 में 27 जनवरी को सोवियत लाल सेना ने पोलैंड में हिटलर-जर्मनी के बनाए आउशवित्स यातना शिविर के दरवाज़े खोल कर जीवित बचे अंतिम बंदियों को मुक्त किया था. हिटलर ने यूरोप के यहूदियों का सफ़ाया कर देने के उद्देश्य से जर्मनी में और उसके क़ब्ज़े वाले कई अन्य देशों में अनेक यातना शिविर बना रखे थे. अनुमान है कि इन शिविरों में 60 लाख यहूदियों और कुछ अन्य जातियों के लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. उन्हीं को याद करने के लिए और ऐसा फिर कभी न होने देने की प्रतिज्ञा दुहराने के लिए ही जर्मनी में नाज़ीवाद पीड़ितों का स्मृति दिवस मनाया जाता है.

Deutschland Israel Präsident Schimon Peres Rede im Bundestag in Berlin
जर्मन संसद में राष्ट्रपति पेरेसतस्वीर: AP

जर्मन संसद में हुई विशेष स्मृतिसभा को इस बार इस्राएल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेस ने इन शब्दों के साथ संबोधित किया, "हमारे आदिकालीन यहूदी रिवाज़ों में अरामेइश भाषा में एक प्रार्थना है. उस में उन सभी मता-पिता, बहनों-भाइयों और बेटे-बेटियों को याद किया जाता है, जो अब नहीं रहे. इस हज़ारों साल पुरानी प्रार्थना को न तो वे माताएं बोल पाईं, जिनका दुधमुंहा बच्चा उन की गोद से छीन लिया गया, और न वे पिता ही बोल पाए, जिन की आंखों के सामने उन के बच्चों को गैस की भट्ठी में झोंक दिया गया... और न वे बच्चे सुन पाए, जिन का शरीर दाहघर की भट्ठी के धुंए में विलीन हो गया."

65 Jahre Befreiung Auschwitz
मौत की शिविरतस्वीर: AP

संसद में हुए इस विशेष समारोह में जर्मनी के राष्ट्रपति होर्स्ट क्यौलर, चांसलर अंगेला मैर्केल तथा मंत्रिमंडल के बहुत से सदस्य़ भी उपस्थित थे. इस्राएली राष्ट्रपति पेरेस ने कहा, "यहूदी जातिसंहार जीवन की पवित्रता की रक्षा के दायित्व का बोध कराने वाली अमिट चेतावनी है." यहूदियों के प्रति नाज़ियों की घृणा सेमेटिक जाति के प्रति उनकी घृणा भर नहीं थी, बल्कि "यहूदी उन के लिए एक नैतिक ख़तरा बन गए थे."

अपने भाषण में इस्राएली राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि इस्राएल ईरान जैसी सिरफ़िरी सरकारों को कभी स्वीकार नहीं कर सकता, जो संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र की अवहेलना करती हैं. नाज़ियों ने अपने समय में जो मारकाट मचाई थी, उस की एक शिक्षा यह भी है कि लोकलुभावन बातें करने वाली ख़ून की प्यासी तानाशाहियों की कभी अनदेखी नहीं करनी चाहिए.

रिपोर्टः एजेंसियां/राम यादव

संपादनः ए कुमार