नागालैंड चुनावों पर अनिश्चितता के बादल
३० जनवरी २०१८तय समय यानी 27 फरवरी को चुनाव नहीं होने की स्थिति राज्य में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है. राज्य विधानसभा की मियाद 13 मार्च को खत्म होगी. राज्य के छोटे-बड़े 11 राजनीतिक दलों ने चुनावों के बायकाट का फैसला किया है. इनमें सत्तारुढ़ नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और सरकार में साझीदार बीजेपी भी शामिल है. उनका कहना है कि दशकों पुरानी नागा समस्या का समाधान नहीं होने तक वह चुनावों में शामिल नहीं होंगे. विभिन्न नागा संगठन चुनावों के एलान से पहले से ही 'साल्यूशन बिफोर इलेक्शन' यानी चुनाव से पहले समाधान का नारा दे रहे हैं. इन संगठनों ने पहली फरवरी को राज्यव्यापी बंद की भी अपील की है. केंद्र सरकार उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) समेत कई संगठनों के साथ शांति प्रक्रिया में शामिल है. उनके बीच इस प्रक्रिया के मसौदा प्रस्तावों पर समझौता भी हो चुका है. हालांकि इसका खुलासा नहीं किया गया है.
नागालैंड में नहीं बदली है जमीनी हकीकत
नगालैंड में परंपरा बनाम संविधान की जंग
ताजा फैसला
नागालैंड में सत्तारुढ़ नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) समेत 11 राजनीतिक दलों ने एक अप्रत्याशित फैसले में 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी के टिकट नहीं बांटने और परचा नहीं दाखिल करने का संकल्प लिया है. राजधानी कोहिमा में सोमवार को नागालैंड ट्राइबल होहोज एंड सिविल आर्गनाइजेशंस की कोर कमेटी और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच हुई बैठक के बाद यह फैसला किया गया.
बैठक के बाद 11 राजनीतिक दलों की ओर से हस्ताक्षरित साझा घोषणापत्र में कहा गया है कि आम लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए टिकट नहीं बांटने और परचा नहीं दाखिल करने का फैसला किया गया है. इस घोषणापत्र पर एनपीएफ के अलावा कांग्रेस, यूनाइटेड नागा डेमोक्रेटिक पार्टी (यूएनडीपी), नागालैंड कांग्रेस, आप, बीजेपी, नेशनल डेमोक्रेटिक पॉलीटिकल पार्टी, एनसीपी, लोक जनशक्ति पार्टी, जद (यू) और नेशनल पीपुल्स पार्टी के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर हैं. राजनीतिक दलों की पहली दो बैठकों में शामिल नहीं होने वाली बीजेपी के प्रतिनिध भी इस बैठक में शामिल थे.
नागाओं के सबसे बड़े सामाजिक संगठन नागा होहो के उपाध्यक्ष एचके झिमोमी कहते हैं, "आम लोगों की आवाज नहीं सुनने वालों को नागा-विरोधी माना जाएगा. वह चाहे किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हो या फिर भूमिगत संगठन से." लेकिन क्या केंद्र सरकार विधानसभा चुनाव कराने के अपने फैसले से पीछे हटेगी? नागालैंड आदिवासी परिषद के अध्यक्ष थेजा थेरीह मानते हैं कि अब राजनीतिक संकट पैदा होना तय है. उनका कहना था कि केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी अब राज्य के नागाओं को उकसाने की गलती नहीं करेगी. थेजा ने कहा कि चुनाव एक संवैधानिक प्रक्रिया है. अब केंद्र सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती. लेकिन अगर चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है तो पहली फरवरी को राज्यव्यापी बंद आयोजित किया जाएगा.
झिमोमी कहते हैं, "अबकी यहां 1998 नहीं दोहराया जाएगा." उस साल नागा होहो और एनएससीएन (आई-एम) की अपील पर कांग्रेस के अलावा तमाम दलों ने चुनाव का बायकाट किया था. नतीजतन कांग्रेस 60 में से 53 सीटें जीत गई थीं.
बीजेपी की ओर से उक्त घोषणापत्र पर पूर्व मंत्री और प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य खेतो सेमा ने हस्ताक्षर किए हैं. नागा संगठनों की कोर कमेटी ने दावा किया कि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष ने सेमा को हस्ताक्षर के लिए अधिकृत किया था. लेकिन दूसरी ओर, पार्टी के पूर्वोत्तर प्रभारी राम माधव ने कहा है कि प्रदेश बीजेपी में किसी भी नेता को किसी कागज पर हस्ताक्षर के लिए अधिकृत नहीं किया गया है. थेजा ने राम माधव के बयान को गलत बताते हुए कहा है कि इस घोषणापत्र पर बीजेपी के हस्ताक्षर की जानकारी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेण रिजिजू को भी है. कोर कमेटी के सदस्य जब बैठक में पारित प्रस्तावों पर पूर्व मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ नागा पीपल्स फ्रंट के मुखिया सुरहोजेली की सहमति लेने उनके आवास पर गई थी तो रिजिजू वहीं मौजूद थे.
चुनाव टालने की जोड़-तोड़
नागालैंड के मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग, उनकी पूरी सरकार और राज्य के कई नागा संगठन उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) के इसाक-मुइवा (आई-एम) गुट के साथ जारी शांति प्रक्रिया का हवाला देकर पहले से ही विधानसभा चुनाव टलवाने की जोड़-तोड़ में जुटे थे. नागा होहो समेत विभिन्न संगठनों ने केंद्र से नागा समस्या का समाधान नहीं होने तक विधानसभा चुनाव टालने की अपील की थी. संगठन के सचिव केई डांग और महासचिव एम होबू ने उम्मीद जताई थी कि केंद्र सरकार स्थानीय परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए नागा समस्या का हल नहीं होने तक चुनाव कराने का फैसला नहीं करेगी.
नागा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) की कार्यकारी समिति ने कहा था कि विधानसभा चुनावों का मौजूदा शांति प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ेगा. ऐसे में केंद्र सरकार को स्थानीय लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए फिलहाल चुनाव टाल देने चाहिए. उसने चेतावनी दी थी कि शांति प्रक्रिया के बीच में चुनाव कराने पर नागा समस्या के शीघ्र समाधान के प्रयासों पर इसका प्रतिकूल असर होगा. लेकिन इन मांगों के बावजूद केंद्र ने तय समय पर ही चुनाव कराने का फैसला किया. चुनाव आयोग के एलान के बाद ही नागा हो-हो ने इन चुनावों के बायकाट की अपील की थी.
थेजा कहते हैं, "यह देशविरोधी आंदोलन नहीं है. हम लोकतांत्रिक तरीके से नागा समस्या के शीघ्र समाधान की मांग उठा रहे हैं. अब जब समाधान नजदीक है तो ऐसे में चुनाव कराना सही नहीं होगा. इससे धुव्रीकरण और आपसी मतभेद बढ़ेगा." नागा नेता झिमोमी कहते हैं, "हम नहीं चाहते कि अगले महीने चुनाव के बाद राज्य के लोग अगले पांच साल में दस सरकारें देखें. हम चाहते हैं कि पहले समस्या हल हो ताकि कानूनी रूप से एक ही सरकार सत्ता में रहे. अब तक तो वैधानिक रूप से चुनी सरकार के अलावा कई भूमिगत संगठन समानांतार सरकारें चला कर राज्य को बर्बाद करते रहे हैं. लेकिन अब इसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता."
इससे पहले बीते सप्ताह नागालैंड ट्राइबल होहोज एंड सिविल आर्गानाइजेशंस ने भी चुनाव आयोग को एक पत्र भेज कर अगले महीने होने वाले चुनावों को टालने का अनुरोध किया था ताकि दशकों पुराने नागा उग्रवाद की समस्या का शीघ्र समाधान हो सके.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार तमाम नागा संगठनों ने जिस एकजुटता का परिचय देते हुए चुनावों के बायकाट का एलान किया है उससे तो नागा समस्या के सुलझने की बजाय उलझने के ही आसार ज्यादा नजर आने लगे हैं.