1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

ना रुकी पानी की बर्बादी तो होंगे गंभीर नतीजे

शिवप्रसाद जोशी
१८ मार्च २०२१

पानी की गंभीर किल्लत के बीच भारत सरकार ने माना है कि अपर्याप्त, अधूरे और बेतरतीब जल-प्रबंधन से बारिश का अधिकांश पानी बरबाद चला जाता है. पिछले तीन साल से राज्यों में बरसाती पानी के संरक्षण का कोई डाटा भी नहीं है.

https://p.dw.com/p/3qnd2
Zwangsstörungen | Waschzwang
तस्वीर: Imago Images/photothek/T. Trutschel

जल प्रबंधन और बरसात के पानी को बचाने के मुद्दे पर सालों से चर्चा हो रही है और राजस्थान जैसे प्रदेशों में जन पहल भी हुई है. फिर भी हालत इतनी खराब है. भारत के महानगरों सहित कई बड़े छोटे शहर पानी के संकट से जूझ रहे हैं. बारिश के पानी को लेकर सुचितिंत प्रबंधन का अभाव संकट की गंभीरता दिखाता है. घरेलू उपयोग के पानी की लीकेज या अत्यधिक इस्तेमाल के रूप में बर्बादी जो है, सो अलग. खबरों के मुताबिक राज्यसभा में लिखित जवाब में सरकार ने दावा किया कि जल प्रबंधन के लिए देश में कई प्रणालियों का उपयोग हो रहा है, इसके बावजूद बड़ी मात्रा में पानी बहकर समंदर में चला जाता है.

पानी का संकट और जलवायु परिवर्तन

भारत के भौगोलिक क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा सूखाग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है और 12 प्रतिशत क्षेत्र में बाढ़ की आशंका. वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन से बरसात, बर्फ के गलने और पानी की उपलब्धता पर असर पड़ने लगा है. संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पैनल के मुताबिक आने वाले वर्षों में बरसात से जुड़ी अत्यधिकताएं और बढ़ने का अनुमान है, जिनमें कुछ इलाके और जलमग्न होंगे तो कुछ इलाके सूखे रह जाएंगें. मॉनसून की बेतरतीबियां वैसे ही फसल को नुकसान पहुंचा रही है, खाद्य संकट के रूप में जो परिलक्षित होंगे. बीमारियां जो हैं, सो अलग. जल स्रोत पर्याप्त मात्रा में रीचार्ज नहीं होंगे जिसका असर पानी की उपलब्धता पर पड़ेगा. इनके अलावा कमजोर जलप्रबंधन भी इस संकट के लिए जिम्मेदार है.

मसूरी, दार्जीलिंग और काठमांडु जैसे ऐतिहासिक पहाड़ी पर्यटन स्थलों पर पानी का गहरा संकट है. प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल "वॉटर पॉलिसी” में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक बांग्लादेश, नेपाल, भारत और पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले आठ शहरों की जलापूर्ति में 20 से 70 प्रतिशत की गिरावट आई है. विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि मौजूदा हिसाब से 2050 तक मांग और आपूर्ति का अंतर बहुत अधिक बढ़कर दोगुना हो सकता है. ध्यान रहे कि ये 2050 की वही टाइमलाइन है जब तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के चलते माना जाता है कि आधे से ज्यादा भारतीय या अनुमानित 80 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगे.

पानी के अंदर इतना कुछ

पानी के बंटवारे पर अंतर्विरोध और टकराव

भारत के पास दुनिया के अक्षय जल संसाधन का सिर्फ करीब चार प्रतिशत हिस्सा आता है, जबकि दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी यहां बसर करती है. भारत में औसत सालाना बरसात से चार हजार अरब घन मीटर पानी आता है जो देश में ताजा पानी का प्रमुख स्रोत भी है. लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में बारिश की दर अलग अलग है. भारत में करीब 20 रिवर बेसिन हैं. घरेलू, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए अधिकांश रिवर बेसिन सूख रहे हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में पानी की मांग भी एक जैसी नहीं है. कृषि कार्य में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है. 85 प्रतिशत से भी ज्यादा. बढ़ती आबादी की जरूरतें और तेज आर्थिक गतिविधियां भी पहले से संकट का सामना कर रहे जल स्रोतों पर अतिरिक्त दबाव डाल रही हैं.

एक और पहलू इस अखिल भारतीय जल संकट का राज्यों के अधिकारों और पानी के बंटवारे से भी जुड़ा है. कावेरी नदी का सदियों पुराना विवाद जारी है. और आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच पानी के अधिकार को लेकर कोई सर्वसम्मत फॉर्मूला नहीं निकल पाया है. उत्तर का हाल भी बुरा है, पंजाब और हरियाणा के बीच रावी ब्यास नदी को लेकर टकराव होता रहा है. हरियाणा और दिल्ली भी पानी छोड़ने या न छोड़ने को लेकर टकराते रहे हैं. जल प्रबंधन को लेकर नदियों को जोड़ने की विराट परियोजना से एक नदी बेसिन से दूसरे में पानी भेजने की बड़े पैमाने पर व्यवस्था रखी गई है लेकिन इसका जोर सप्लाई बहाल रखने पर है, ना कि पानी को संरक्षित और उसके उपभोग में कटौती पर. नदियों पर अवैध बजरी और रेत खनन ने भी जलसंकट को तीव्र किया है.

जल शक्ति मिशन से 'कैच द रेन' तक

पानी यूं तो राज्य का विषय है लेकिन केंद्र सरकार की ओर से भी कई योजनाओं और कार्यक्रमों के जरिए तकनीकी और वित्तीय सहयोग दिया जाता है. केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 2019 में राष्ट्रीय जल अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत जलसंकट से ग्रस्त देश के 256 जिलों के 2,836 ब्लॉकों में से 1,592 में ये अभियान चलाया गया था. इसी कड़ी में पिछले साल "कैच द रेन” अभियान भी शुरू किया गया है.

भूजल के आर्टिफिशियल रीचार्ज के मास्टर प्लान के तहत एक व्यापक कार्ययोजना पर विचार किया जा रहा है जिसके तहत 185 अरब घन मीटर पानी को उपयोगी बनाया जाएगा. इसके तहत वर्षा जल संचयन और कृत्रिम रीचार्ज के लिए करीब पौने दो करोड़ ढांचे खड़े किए जाएंगे. इस मिशन में मॉनसून शुरू होने से पहले रेन वॉटर हारवेस्टिंग स्ट्रकचर (आरडब्लूएचएस) बनाए जाएंगें जो जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के अनुकूल होंगे और लोगों की सक्रिय भागीदारी से बरसाती पानी से भरे जाएंगें.

देश के 623 जिलों में कैच द रेन मिशन के तहत जागरूकता मुहिम भी चलाई जा चुकी है. पानी के संरक्षण, भंडारण के अलावा पेयजल की गुणवत्ता का प्रश्न भी महत्त्वपूर्ण है. सरकार का कहना है कि पीने के पानी को मौलिक अधिकार घोषित करने का कोई प्रस्ताव फिलहाल उसके ध्यानार्थ नहीं है. बल्कि सरकार के मुताबिक राज्यों के साथ मिलकर, 2024 तक जल जीवन मिशन के तहत देश के प्रत्येक ग्रामीण घर में पीने योग्य नल का पानी लगाया जाना सुनिश्चित किया गया है. सरकार के मुताबिक करीब 80 प्रतिशत ग्रामीण रिहाइशों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 40 लीटर पीने योग्य पानी देने का प्रावधान रखा गया है.

इस्तेमाल पानी को फिर इस्तेमाल करने की तकनीक

जलप्रबंधन के नए तरीकों की जरूरत

जानकारों का कहना है कि भारत की अधिकांश जल योजनाएं और जल विकास प्रशासनिक सीमाओं के दायरे में होता रहा है, इसीलिए देश के जल संसाधनों के प्रबंधन के तरीकों में बदलाव की जरूरत है. भूजल की भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका है. ग्रामीण मांग का 85 प्रतिशत हिस्सा भूजल से ही पूरा होता है, शहरी जरूरतों का पचास प्रतिशत और सिंचाई जरूरतों का 60 प्रतिशत से अधिक. भूजल के दोहन से कई इलाकों में इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल देखा जाता है, जिसकी वजह से भूजल टेबल असंतुलित हो जाता है और प्राकृतिक झरने, तालाब और जलीय चट्टानें सूखने लगते हैं.

भारत जैसे जटिल भूगोल वाले देश में सटीक जलप्रबंधन का अर्थ सिर्फ पानी की सुचारू सप्लाई और सुचारू उपलब्धता से ही नहीं है, इसका अर्थ ये भी है कि कम पानी वाले क्षेत्रों और अत्यधिक पानी वाले क्षेत्रों में पानी का संतुलित और सुचिंतित बंटवारा भी होना चाहिए. 2016 में नेशनल वॉटर फ्रेमवर्क बना था जिसमें संरक्षण और अधिक कुशल उपयोग की जरूरत पर जोर दिया गया है. वर्षा जल संरक्षण में जनभागीदारी की सक्रियता का अर्थ है कि इसमें गांवों, ग्राम पंचायतों, शहरी निकायों, मोहल्लों, कॉलोनियों, एनजीओ और अन्य जरूरतमंदों का एक साथ आना या अपने अपने स्तर पर योगदान करना होगा.

जल संरक्षण पर केंद्रित सरकार के नीतिगत कार्यक्रमों के इतर, जागरूकता के लिए रैलियों, प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं, निबंध और चित्र प्रतियोगिताएं, सेमिनार, पुरस्कार, वार्ताएं, बहसें, वेबिनार, ऑनलाइन कार्यक्रम, सोशल मीडिया एक्टिविटी जैसे अनेक तरीकें अपनाए जा सकते हैं ताकि सभी उम्र के लोग पानी बचाने और खासकर बारिश के पानी के संचटन की अहमियत और अनिवार्यता को समझ सकें.

भारत के भूतिया गांवों की बदलती सूरत