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नया हुनर सीखकर अपनी तकदीर बदलते भारतीय मजदूर

२५ दिसम्बर २०२०

लॉकडाउन के दौरान लुटते पिटते घर लौटते प्रवासी कामगारों में से कुछ अब अपना कारोबार शुरू कर चुके हैं. कोई मोबाइल स्टोर खोल चुका है तो कोई इलेक्ट्रिशियन का काम करने लगा है. भारत में चुपचाप ये बदलाव भी हुआ है.

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तस्वीर: DW/J. Akhtar

लॉकडाउन के दौरान शुभम सक्सेना ने इलेक्ट्रिशियन बनने का ऑनलाइन कोर्स शुरू किया. उनके ज्यादातर छात्र प्रवासी कामगार थे. क्लास के शुरुआती दिनों तो शुभम यही समझाते रहे कि स्मार्टफोन पर म्यूट बटन कैसे इस्तेमाल करें.

भारत में कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने लाखों प्रवासी कामगारों की रोजी रोटी छीन ली. मार्च से लेकर जून की शुरुआत तक लगे लॉकडाउन की सबसे बुरी मार इन्हीं लोगों पर पड़ी. लाखों प्रवासी कामगार तपिश भरी गर्मी के बीच जब घर लौट रहे थे, तब उनकी तस्वीरें पलायन की त्रासदी बता रही थीं. वापसी की उस पीड़ा के बाद कइयों ने ठान लिया कि अब वे वापस शहर नहीं लौटेंगे. हालांकि गांव देहातों में रोजगार कैसे शुरू किया जाए? यह एक बड़ी समस्या है.

ऑनलाइन ट्रेनिंग

इसी दौरान शुभम सक्सेना ने ऑनलाइन ट्रेनिंग कोर्स शुरू किया. 26 साल के शुभम कहते हैं, "प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाने वाली थी और हमने अपने छात्रों को खुद की दुकान खोलने के लिए प्रेरित किया.” ऑनलाइन पढ़ाई के लिए प्लेटफॉर्म स्पायी (Spayee) और जस्टरोजगार (JustRojgar) जैसी स्टार्टअप कंपनी ने तैयार किए हैं.

शुभम इसे बड़ा बदलाव कहते हैं, "सच तो यह है कि लॉकडाउन के दौरान कई कामगार उद्यमी बन गए, कुछ ने अपना फूड स्टॉल शुरू किया, सब्जियां बेचनी शुरू की और कुछ ने छोटा मोटा कारोबार शुरू किया.”

Delhi Indien Gastarbeiter fahren zurück in die Heimat
लॉकडाउन में घर लौटते मजदूर तस्वीर: DW/M. Raj

एक अनुमान के मुताबिक 10 करोड़ भारतीय दिहाड़ी कामगार हैं. उनके पास कोई रोजगार सुरक्षा नहीं है. ये वो लोग हैं जो भारत की शहरी अर्थव्यवस्था की जान थे. भवन निर्माण, कारखाने खड़े करना, सड़कें बनाना, टैक्सी चलाना या फिर सर्विस सेक्टर, ये सारी चीजें इन्हीं लोगों के जिम्मे रहती हैं. लेकिन इसके बावजूद लॉकडाउन के दौरान उन्हें मायूसी के साथ घर लौटना पड़ा.

सरकारी योजनाएं

घर लौटे प्रवासी कामगारों के लिए कुछ राज्य सरकारों ने रोजगार योजनाएं भी चलाईं हैं. भारत सरकार के स्किल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य 2022 तक 40 करोड़ लोगों को नए हुनर सिखाना है. कुछ ऐसे ऐप्स भी बनाए गए हैं जो कामगारों को अपने कारोबार शुरू करने में मदद करें.

कौशल निर्माण मंत्रालय के सचिव प्रवीण कुमार कहते हैं, "जवनरी में हम एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं, जिसके तहत जिला समितियां इस बात का पता लगाएंगी कि कौन सा हुनर सिखाकर इन कर्मचारियों को बेहतर रोजगार खोजने में मदद मिलेगी. ”

कुमार कहते हैं, "नया ऐप यूजर फ्रेंडली होगा, ये कई भाषाओं में होगा और कामगार अपनी योग्यता को पहचान सकेंगे. हम सस्ते स्मार्टफोनों के लिए भी कोर्स तैयार कर रहे हैं ताकि कामगार इसे इस्तेमाल कर सकें. इसमें प्रैक्टिकल और ऑलाइन ट्रेनिंग मॉड्यूल भी होंगे.”

Delhi Indien Gastarbeiter fahren zurück in die Heimat
तस्वीर: DW/M. Raj

22 साल के अंकित कुमार इलेक्ट्रिशियन बनाना चाहते हैं. वह शुभम सक्सेना की ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं. उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में रहने वाले अंकित कहते हैं, "मेरे गांव में लॉकडाउन के दौरान करीब 90 फीसदी लोग बेरोजगार हो चुके हैं.”

अंकित अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं, "मैंने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा. लेकिन अब मैं कुछ नया सीखना चाहता हूं. इस कोर्स की वजह से मैं बाहर नौकरी खोज सकूंगा और शायद ज्यादा पैसा भी कमा सकूंगा. हो सकता है कि मैं इलेक्ट्रिशियन के तौर पर अपनी दुकान ही शुरू कर दूं.”

नौकरी छोड़ खुद का काम

सेवार्थ संस्था आजीविका ब्यूरो के प्रोग्राम मैनेजर संजय चित्रोरा कहते हैं, "इन कोर्सों की मदद से कामगारों को जोखिम भरे और जिंदगी भर चलने वाले गैर उत्पादक रोजगार से अलग होने का मौका मिलेगा.”

आजीविका ब्यूरो कई स्किल सेंटर चला रहा है. संस्था के मुताबिक कम अवधि के कोर्सों में बड़ी संख्या में लोगों ने खुद को रजिस्टर कराया है. सबसे ज्यादा डिमांड मोटर साइकिल रिपयेरिंग कोर्स की है.

पश्चिमी राजस्थान के राजसमंद जिले में पिछले हफ्ते ही महादेव मोबाइल स्टोर खुला है. स्टोर के मालिक 23 साल के गणेश मेघवाल हैं. लॉकडाउन से पहले वह पड़ोसी राज्य गुजरात में कबाड़ का काम कर रहे थे. लॉकडाउन लगते ही जामनगर में गणेश की नौकरी चली गई.

Indien | Coronavirus Ausbreitung | Landesweite Ausgangsperre
लॉकडाउन की इन तस्वीरों ने लोगों को विचलित कर दिया था.तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir

आपाधापी में घर लौटे गणेश कहते हैं, "मैं डरा हुआ था और जान बचाने की फिक्र थी. मुझे एक महीने तक खुद को क्वारंटीन करना पड़ा. फिर मैंने 100 दिन ग्रामीण कामगार योजना में काम किया. फिर मैंने मोबाइल रिपेयर कोर्स किया और अब मेरी अपनी दुकान है.”

अब गणेश अपने घरवालों के साथ ही रहते हैं. मां बाप भी खुश है कि बेटा उनके साथ रह रहा है. आमदनी के बारे में गणेश कहते हैं, "यहां बहुत सारे मोबाइल स्टोर नहीं हैं और मैं सब कुछ करता हूं, मोबाइल रिपेयर भी करता हूं, रिचार्ज भी. मैं बिल जमा करने में लोगों की मदद भी करता हूँ और एसेसेरीज भी बेचता हूं.”

गणेश की पत्नी भी कुछ नया करना चाहती है, "मैं अब अपनी पत्नी के लिए उसकी पसंद का स्किल कोर्स खोज रहा हूं. मैं कोशिश कर रहा हूं कि वह एक कंप्यूटर कोर्स करे लेकिन उसे टेलरिंग ज्यादा पसंद हैं. कोर्स पूरा होने के बाद वह भी अपना काम शुरू कर सकती है.”

इस बीच शुभम सक्सेना के इलेक्ट्रिशियन ट्रेनिंग कोर्स में नए स्टूडेंट आए हैं. कोर्स चार महीने का है. शुभम कहते हैं, "इंटरनेट की कनेक्टिविटी चुनौती नहीं है, असली चैलेंज लोगों की सोच में बदलाव का है. उन्हें नौकरी करने वाली सोच को बदलकर नई शुरुआत करनी होगी. ये हमेशा आसान नहीं होता.”

ओएसजे/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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