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नफरत पर रोक क्यों नहीं लगाता फेसबुक

५ नवम्बर २०१९

‘अपराधी’, ‘बलात्कारी’, ‘आतंकवादी’ और ‘कुत्ते’ जैसे आपत्तिजनक शब्दों वाले नफरत से भरी पोस्ट एक लाख बार तक शेयर की जा रही हैं. आखिरकार फेसबुक ऐसी पोस्ट पर रोक क्यों नहीं लगाता?

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Zensur im Internet
तस्वीर: AFP/Getty Images/I. S. Kodikara

फेसबुक नफरत से भरी पोस्ट पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रहा है. कुछ लोगों का आरोप है कि इसकी वजह से जिससे भारतीय राज्य असम में जातीय तनाव बढ़ रहा है. असम में सोशल मीडिया पर बढ़ती नफरत के खिलाफ अभियान चलाने वाले एक संगठन, आवाज का कहना है कि अमानवीय भाषा का इस्तेमाल अक्सर बंगाली मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए हो रहा है. आवाज के मुताबिक यह वैसा ही है, जैसा कि म्यांमार के रोहिंग्याओं के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था. उसके बाद 2017 में सेना की कार्रवाई और जातीय हिंसा के बाद करीब सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश में शरण लेना पड़ा.

उधर फेसबुक के एक प्रवक्ता का कहना है कि वह नफरत से भरे 65 फीसदी भड़काऊ बयान को विश्व स्तर पर रिपोर्ट करने से पहले ही अपने प्लेटफॉर्म से हटा रहा है. फेसबुक के सामग्री समीक्षक कम से कम 9 भारतीय भाषाओं में काम कर रहे हैं. वे ‘हानिकारक सामग्री को पकड़ने' में प्रशिक्षित हैं.

असम में पिछले दिनों राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की सूची जारी होने से पहले संयुक्त राष्ट्र ने सोशल मीडिया पर बढ़ते भड़काऊ पोस्ट को लेकर चेतावनी दी थी. एनआरसी की सूची में करीब 20 लाख लोग बाहर कर दिए गए थे, जिनमें ज्यादातर बंगाली मुसलमान शामिल थे.

USA Facebook-Zentrale in Menlo Park, Kalifornien | war room 2018
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Chiu

आवाज की कैंपेनर आलफिया जोयाब ने एक बयान में कहा, "फेसबुक का इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए मेगाफोन की तरह किया जा रहा है, असम के कमजोर अल्पसंख्यकों को सीधा निशाना बनाया जा रहा है, जिनमें से ज्यादातर लोग अगले कुछ महीनों में किसी भी देश के नागरिक नहीं रहेंगे.”

अगस्त में जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल होने के लिए नागरिकों को यह साबित करना पड़ा था कि उनका परिवार भारत में 24 मार्च, 1971 के पहले से रह रहा है.

असम, भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक है. वहां सालों से अवैध आप्रवासियों के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है. स्थानीय लोग बाहरी लोगों को अपनी नौकरी और जमीन छिनने का जिम्मदार मानते हैं.

आवाज ने असम और रजिस्टर जुड़ी 800 फेसबुक पोस्ट और टिप्पणियों का विश्लेषण करने पर पाया कि 27 फीसदी पोस्ट भड़काऊ हैं और उसका अनुमान है कि इन पोस्ट को 50 लाख बार देखा गया है.

संस्था ने 213 पोस्ट को चिन्हित किया और फेसबुक को बताया, जिसके बाद सोशल मीडिया साइट ने करीब 96 पोस्ट को हटा दिया. इसमें से एक बयान तो एक निर्वाचित सदस्य का था, जिसका मतलब निकलता था कि जो लोग ‘हमारी मां और बहनों' का बलात्कार करते हैं वो ‘बांग्लादेशी मुसलमान' हैं. इस जनप्रतिनिधि ने लड़कियों को ‘जहर' देने और कन्या भ्रूण हत्या को वैध बनाने की वकालत की थी.

Symbolbild Hate Speech
तस्वीर: DW/P. Böll

म्यांमार में भड़काऊ पोस्ट ना हटाने और 2016 के अमेरिकी चुनाव और ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने को लेकर जनता की राय को प्रभावित करने की नीयत से बने फर्जी अकाउंट के इस्तेमाल को रोकने में नाकाम रहने पर फेसबुक की आलोचना हो चुकी है.

आवाज का कहना है कि नफरत वाले पोस्ट को लेकर फेसबुक आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस पर आश्रित है. असम में सोशल मीडिया पोस्ट की निगरानी के लिए मानव नेतृत्व वाली टीमों की अधिक जरुरत है.

जोयाब कहती हैं, "इन लोगों पर खतरे के बावजूद फेसबुक आवश्यक संसाधनों को इस्तेमाल में नहीं ला रहा है जिससे ये लोग खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. अपनी निष्क्रियता के चलते फेसबुक ऐसे लोगों के उत्पीड़न में शामिल हैं जो दुनिया में सबसे कमजोर हैं."

फेसबुक के प्रवक्ता का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की वजह से भड़काऊ बयान को पकड़ने में सुधार आया है. साथ ही उसने ऐसे टूल्स में निवेश किए हैं जिससे लोगों को अभद्र सामग्री को चिन्हित करने के लिए बढ़ावा मिलेगा.

एए/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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