नदियों पर जलवायु परिवर्तन की मार
नदियां करोड़ों लोगों के लिए पानी और पोषक तत्वों का सबसे जरूरी स्रोत हैं लेकिन गर्म होती जलवायु इस कमजोर पड़ते जलतंत्र को नुकसान पहुंचा रही है.
जल ही जीवन है
पृथ्वी पर मौजूद पानी का सबसे बड़ा भंडार सागरों में हैं. पानी का एक बहुत छोटा हिस्सा ही धरती पर नदियों के रूप में बहता है. नदियों का यह पानी ना हुआ तो झील और दूसरी गीली जमीनें भी सूख जाएंगी. जलवायु परिवर्तन के साथ यह समस्या गंभीर होती जा रही है. इससे इंसानों और दूसरे जीवों को एक समान खतरा है.
कई दशकों से हो रहा है जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन कोई नई बात नहीं है. तस्वीर में लेक चाड की 1963, 1973, 1987 और 1997 की स्थिति दिख रही है. बीते 60 सालों में यह करीब 25,000 वर्ग किलोमीटर से घट कर महज 2,000 वर्ग किलोमीटर रह गया है. लंबे समय तक सिंचाई के लिए बने बांधों को इसका कारण माना गया. रिसर्चरों ने पता लगाया है कि इसके पानी में कमी तापमान में उतार चढ़ाव की वजह से है जिसने यहां की अहम नदी कोमादुगु योब को बहुत प्रभावित किया है.
जैव विविधता और भोजन की कमी
लेक चाड इस बात का सटीक उदाहरण है कि जलवायु परिवर्तन कैसे लोगों को खाना और पानी के नए स्रोत की खोज के लिए विवश कर रहा है. इस इलाके में किसानों और मवेशियों के संसाधनों वाले इलाके की ओर जाने की वजह से तनाव को बढ़ते देखा है. दूसरे महाद्वीपों में भी जलवायु परिवर्तन का असर गर्म होते पानी में मछलियों की घटती तादाद नदी में कम होते पानी के रूप में दिखा है.
यूरोप झेल रहा है आंच
इनमें से एक जगह यूरोप है. 2018 की गर्मियों में यहां की विशाल और ताकवर नदी राइन की धार कुंद हो गई और उसका तापामान बढ़ कर 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया. सिर्फ इतना ही नहीं सूखे की वजह से हरा भरी दिखने वाली नदी जो बरसात के मौसम में बहुत कम जीवों का ही घर रह गई. यूरोप के सबसे बड़े नदी जलमार्ग में इतनी जगह नहीं थी कि एक बार में एक से ज्यादा जहाजों को रास्ता दे सके.
पिघल रहे हैं ग्लेशियर
दुनिया के दूसरे इलाके भी ग्लेशियर जैसे पानी के भरोसेमंद स्रोतों को घटते हुए देख रहे हैं. ग्लेशियरों को भारी मात्रा में बर्फ का संग्रह करने के लिए पानी के टावर के रूप में भी जाना जाता है और ये दुनिया में करीब 2 अरब लोगों के लिए पानी का स्रोत हैं. जानकारों को डर है कि तस्वीर में दिख रहा हिमालय अपने एक तिहाई ग्लेशियर इस सदी के अंत तक खो देगा.
हिमालय पर आश्रित दक्षिण एशिया
तस्वीरों में दिख रहे सिंधु नदी बेसिन के किसान कपास और चावल के लिए पूरी तरह हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने पर आश्रित हैं. ये दक्षिण एशिया में बड़े रिवर बेसिन का हिस्सा हैं जिनमें गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां शामिल हैं. कुल मिला कर सिर्फ इन तीन नदियों से 12.9 करोड़ किसानों और 90 करोड़ लोगों को पानी मिलता है.
जंगल की आग भी नदियों के लिए बुरी
धरती पर जंगल की आग अभूतपूर्व तरीके से फैलती जा रही है. तस्वीरों में दिख रहे ऑस्ट्रेलिया की आग जैसी घटनाएं जलवायु परिवर्तन का एक और असर दिखाती हैं. यह आग ऑस्ट्रेलिया के सबसे अहम जल स्रोत मर्रे डार्लिंग वॉटर बेसिन के लिए जहरीली साबित हो सकती है. हवा के साथ उड़ कर आई राख नदियों में समा गई और 26 लाख ऑस्ट्रेलियाई लोगों के लिए पानी को जहरीला बना गई. नदियों में रहने वाले जीवों की तो बात ही मत पूछिए.
काई और डेड जोन
जंगल की आग से उड़ी राख ही नदियों का गला नहीं घोटती है. अमेरिका में हुई भारी बरसात के कारण खेतों से निकले प्रदूषक बह कर नदियों में जा मिले. उसके बाद वे वहां से खुले सागर में पहुंच गए. तस्वीर में जो आप काई जमी देख रहे हैं वह न्यूयॉर्क के तट पर दिखा एक और बुरा असर है. दूसरा बुरा असर है डेड जोन यानी प्रदूषण के कारण ऑक्सीजन से रहित पानी.
ज्यादा बरसात हमेशा अच्छी नहीं
वास्तव में नाइट्रोजन का प्रदूषण मिसिसीपी नदी के लिए भी एक बड़ी समस्या बन गया जो कई अमेरिकी राज्यों से गुजरती है. बाढ़ के पानी में भारी मात्रा में बह कर आई नाइट्रोजन के अलावा शक्तिशाली चक्रवातों के कारण भी नदियों की जमीन बुरी तरह प्रभावित हो रही है और उनका सुरक्षा कवच टूट रहा है.
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